Monday, 30 December 2019

नववर्ष की पदचाप

नववर्ष की पदचाप,अब सबको,स्पष्ट सुनाई दे रही। 
बस दो कदम,दहलीज पर शान से,नूपुर बजा रही।।
सो मन-मयूर,अह्लादित हुआ,बड़ा आज सबका अभी से।
आस भरी सुनहरी उम्मीदें,कलरव सी,अंगड़ाईयां ले रही।।
उत्साह,उल्लास,उमंग से सजावट होती प्रत्येक द्वार-द्वार।
चटक इंद्रधनुषी रंगोली,हर जगह रोशनी सी है,चमक रही।
नव-संकल्प,नव-ऊर्जा की नव-तरंग हवा में मकरन्द सी।
कल्पना की ऊंची उड़ान का सन्देश हर-सांस में भर रही।। 
है करना अलबेला,सार्थक कुछ अब तो हमें नया निस्वार्थ। 
जय-घोष स्वस्तिवाचन से ओतप्रोत प्रज्ञा ये सीख दे रही।।
@नलिन #तारकेश

Sunday, 29 December 2019

296:गज़ल:खुले आकाश में

खुले आकाश में इन परिंदों को उड़ने दो।
दम न तुम मगर यूं ख्वाबों का घुटने दो।।
मासूम कलियों को न तोड़ो ए बागवां।
सुर्ख़ फूल बन उन्हें भी तो महकने दो।।
वह साजिशों से संभल गया फिसल कर भी।
तोहमत कम से कम अब तो मढना रहने दो।।
मिलकर लिखनी है हमें इबारत बुलंदियों की अभी।
बहा के खून गलियों में यूँ हौसलों को न मरने दो।।
जहालत,नफरत भरी सियासत की इन्तेहा हो गई।
"उस्ताद"अमनो चैन की रोशनी मुल्क में होने दो।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 28 December 2019

295-गजल-दाँत मेरे

दांत  मेरे जुबान मेरी ही काटने लगे।
खा के थाली में छेद लोग करने लगे।।
आंख कान मुंह बंद है गांधी के बंदरों के।
कहो कब कहाँ ये नामुराद सच बोलने लगे।।
गंगा जमुनी तहजीब कागजी बातें रह गई।
चलो शेखचिल्लियों के सपने तो टूटने लगे।।
अमन-चैन का ठेका कब तलक ढोयेंगे हम।
लातों के भूत कब तलक बातों से मानने लगे।।
भेड़ियों की बंद हुई जो हुकूमत मैं बंदरबांट। 
गरीब,नासमझों को निवाला ये बनाने लगे।।
फैसला होना चाहिए"उस्ताद"अब तो आर पार का।
बढ़े कदम जो सही राह कहां अब पीछे हटने लगे।।
@नलिन#उस्ताद

294:गजल-नमाज़ जुम्मे की

नमाज जुम्मे की अब हमारे जी का जंजाल हो रही।
आवाज जो थी अमन-चैन की वही बवाल हो रही।। 
जब चाहा तब मतलब-बेमतलब हाथ मोमबत्ती उठा ली। बता इसे सच की मशाल आगजनी खूब कमाल हो रही।। सियासत में अपने फायदे के सौदे तो सभी बांचते हैं।
जनता मुल्क की पर अब रोज़ बेवजह हलाल हो रही।।
ये कैसे नए जमाने के आलिम*,कुकुरमुत्तों से बढ़ रहे।*बुद्धिजीवी 
बयानबाजी ही जिनकी सितमगरों की ढाल हो रही।।
घुसपैठिए जो लूटने को आमदा हैं उन्हें सिर आंखों बैठा रहे।
वकालत उनकी यही तेरी आंख में सूअर का बाल हो रही।। 
ये उल्टी-सीधी कैसी पढ़ाते हो पट्टी तकरीर से अपनी। 
प्यार-मोहब्बत की बातें तो सब महज ख्याल हो रही।।
नेट में फंसा रहे मजलूम,मासूम मछलियां शिकार को।
डिजिटल इंडिया की तबीयत खामखां बेहाल हो रही।।तुम तो जो करो या कहो वो सब सवाब* से है लबालब  भरा।*पुण्य 
"उस्ताद"हमारी ही कथनी,करनी कहो क्यों सवाल हो रही।।
@नलिन #उस्ताद

Thursday, 26 December 2019

राम राम राम

श्री राम
===== 
रविकुल नायक,दीप्तमान-मुखकांति,अमित सजी है।
पीत-झगुली,रेशम तन झीनी,कुंतलराशि घुंघराली है।।
रक्तवर्ण-तिलक,भाल-सुशोभित,अद्भुत छवि न्यारी है। कोटि-कोटि मनोज लजावत, रूपराशि प्रभु प्यारी है।। बांकी लीला देख के इनकी,माया भी सुध-बुध भूली है। शेष,शारदा पार न पाए,कीरती ऐसी अविरल बहती है।।
हृदय-विराजत,तारकेश-छवि पर,चरणाश्रित बलिहारी है।
निर्मल,नील-नयन सी मृदुल देह,आँखन सबके बसती है।। 
जाने कितनी जनम-जनम की,साध ये पूरी आज हुयी है।
अब ना जाना कहीं छोड़ के,तुमसे बस अरदास यही है।।
@नलिन #तारकेश

Wednesday, 25 December 2019

293-गज़ल उम्र होती है

नौजवानी Happy Christmas to all 
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उम्र होती है यार एक इतराने की।
खुली पलकों में ख्वाब सजाने की।।
टोका-टाकी लाख करे चाहे कोई।
गढ़ती है रोज इमारत फसाने की।।
नशातारी रहती है जिस्म से रूह तक ऐसी।
कहाँ होश है इसे,कदम संभाल चलाने की।।
सूरज,चांद,दरिया सब बांधके मुट्ठी में।
किसे फिक्र रहती भला जीने-मरने की।।
हवा के घोड़े हाँकती,तलाशे-कस्तूरी मसरूफ दिखे। 
"उस्ताद" अजब है कहानी इस नौजवानी की।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 19 December 2019

292-गज़ल:जो जो तुमने कहा

जो-जो तुमने कहा था वही हम कर रहे।
जाने बदनाम क्यों अब तुमही कर रहे।।
कलम होनी थी जिस हाथ में इल्म* के लिए।*हुनर         उसी में संग* ले तुम जंग की तैयारी कर रहे।।*पत्थर 
बहस-मुबाहिसा होती हैं रगबत* भरी तहकीक**से।
*प्यार  **जाँच-पड़ताल 
नासमझ तुम तो गालियों की बस जुगाली कर रहे।।
है आसां नहीं पनघट की राहें सभी जानते।
मगर तुम तो राजनीति हिंसा भरी कर रहे।।
आशियाना जलेगा तो महफ़ूज* कौन होगा कहो तो।*सुरक्षित 
ऐसी बात जाने क्यों चिंगारी भड़काने की कर रहे।। 
खौफ,आगजनी की बिसातें भड़का के सरेआम।
"उस्ताद" खरी बात तुम मुल्क से गद्दारी कर रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 18 December 2019

मीरा की भक्ति

पग नूपुर बांध मीरा जो जीवन-पर्यंत मगन भाव से नाची थी।
कृष्ण पर यही तो उसकी अपरिमित,अटूट-अमर निष्ठा थी।
उसकी राह वरना कहो तो क्या कुछ कम रपटीली थी।
हजारों झंझावतों भरी जिंदगी उसकी कंटकाकीर्ण थी।
मगर वह तो कृष्ण-कृष्ण कहते इतनी भाव-विभोर थी।उसे कहाँ फिर जरा देह,मन,बुद्धि,चित्त की सुध-बुध थी।
देह में रहते हुए भी वह असल में देहातीत ही हो गई थी।आत्म रूप से वह अपने प्रीतम के प्रेम पाग में पगी थी।
आठों याम उसकी धड़कनों में सांवले की बंसी बजी थी। अनुराग के मोर-पंख फैलाए,नाचती-कूकती फिरती थी।हाथों में इकतारा,खड़ताल लिए रसधार सी बरसती थी।
विष भी तो वह सहज,सरल सुधा-प्रसाद समझ पीती थी। गली-गली मतवाली वो तो बांवली गोपी बनी फिरती थी। कृष्ण-तत्व को जो बुझ सकी वह तो सच में अलबेली थी।
सदेह समा गई कृष्ण में ये बस अद्भुत मीरा की भक्ति थी।

Tuesday, 17 December 2019

291:गजल:मज़े में कश्ती

मजे में कश्ती हमारी भरोसे राम के चल रही है।
बेवजह ये बात जाने क्यों लोगों को खल रही है।।
यूँ कहने की आदत मुँह-देखी हमारी रही नहीं।
जो कही खरी-खरी तो नाराजगी उबल रही है।।
रात है या सुबह कुछ खबर न रही अब तो।
पाने की तुझे मौज इस कदर मचल रही है।।
कुछ होते रहें सवाब*हमारे हाथों से भी बस।*पुण्य 
वरना तो ये जिन्दगी हर हाल फिसल रही है।।
बेजान थी जो हमारी दुनिया ना उम्मीदी की हद तक।
आहट से मगर उसकी देखो अब ये भी बदल रही है।।
हकीकी*इश्क में"उस्ताद"खामोश हो गया।*ईश्वरीय
तसदीक* को दिले जज़्बात बस ये ग़ज़ल रही है।।*सत्यापन 
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 15 December 2019

290:गजल:इंद्रधनुषी काजल

इंद्रधनुषी काजल लगाते रहे।
काफिलों से अलग बढ़ते रहे।।
मस्ती की पायल हंसी फूलों सी।
जिंदगी का साथ यूँ निभाते रहे।।
अंधेरे तो मिले यूँ हमें हर मोड़ पर।
रोशनी से खुद की राह सजाते रहे।।
उससे मिलने की बेकरारी थी हमें।
सो खुद से भी राज ये छुपाते रहे।।
सुरमई है खुद में ये जिन्दगानी।
सो बेसुरे ही बेवजह कूकते रहे।।
बदनाम काफिर से चाहे"उस्ताद"हुए।
बुतपरस्ती से मगर रूबरू ख़ुद से होते रहे।।
@नलिन #उस्ताद

राम भरत जी

मर्यादा की उत्कृष्ट,पराकाष्ठा हैं अपने राम जी।
तो समर्पण की,एकनिष्ठ प्रतिमूर्ति हैं भरत जी।।
वचन-पालन,वर्ष चौदह,गहन-विपिन भटकते हैं राम जी। चरण पादुका की,सेवा में तत्पर,सतत रहते हैं भरत जी।। कोल-किरात,रीछ-वानर,दुलारते सभी को तो हैं राम जी। 
बन रामसेवक,सकल प्रजा का ध्यान,रखते हैं भरत जी।।   जीत के रण,निशाचर-विहीन धरा को बनाते हैं राम जी।
अयोध्या को बस प्रेम और प्रेम से संवारते हैं भरत जी।।
विभीषण,सुग्रीव को राजपाट-अखण्ड,दिलाते हैं रामजी।
राजमद पंक से तो,"नलिन"से अछूते हैं,अपने भरत जी।।
एक छन राम को मन,बुद्धि,वाणी न बिसारते हैं भरत जी। आँखों में भरत को पुतली सा तभी तो सजाते हैं राम जी।
@नलिन#तारकेश 

Saturday, 14 December 2019

गज़ल:289-गरेबान अपने

गरेबान अपने झांकते रहिए।
खुद से नजरें मिलाते रहिए।।
ख्वाबे तामील में हो चाहे दूरी दरिया सी। 
आंखिरी सांस तक हौंसले से तैरते रहिए।। 
क्या-क्या कहा तेरे खिलाफ किस-किस ने।
बेवजह आप इस पर ना सर खपाते रहिए।।
दूरी हो चाहे लाख आपकी दिलदार से।
शबेरोज शिद्दत से बस पुकारते रहिए।।
रब तो बस जज़्बात का भूखा है "उस्ताद"।
दिल में बसा उसे रस्मे दुनिया निभाते रहिए।।
नलिन #उस्ताद

Friday, 13 December 2019

288:गज़ल-जुल्फ लहरा के

लहरा के जुल्फ जो आंचल खोला उसने।
फलक से चांद सितारों को बटोरा उसने।।
दिले दहलीज पर रख महावर लगे पाँवों को।
जन्नत सा हंसी सजा दिया आशियाना उसने।।
रूप-रंग,जात-पात ये तो बेवजह के शगल हैं।
प्यार है क्या शय* प्यार से समझा दिया उसने।*चीज
शबेइंतजार लो हुआ खत्म शबेवस्ल*हो गई।*मिलनरात्रि
देर हुई तो सही पर शबेरोज* सजाया उसने।।*हर वक्त 
शफक*ए नूर आंखों से उतरता नहीं अब तो।
*क्षितिज की लाली
चौखट "उस्ताद" की जो सर झुकाया उसने।।
@नलिन #उस्ताद

Thursday, 12 December 2019

प्रेम है सूक्ष्म

प्रेम है सूक्ष्म,असीमित अति,इसे स्थूल-देह से न नापिए। 
ये है परम दिव्य-भाव,इसे आप,सदा हृदय में संजोइए।।
सृष्टि दृढ़-आधार है यही,बस इसे सहज आप स्वीकारिए। 
श्वांस डोर बांध इसे,मुक्त गगन नित्य ही,पतंग सा उड़ाइए।
निष्कपट निस्वार्थ होकर सदा,आनंद नित्य ही पाइए। 
कभी ना इसे आप अपने,छुद्र-मलिन सांचे में ढालिए।।
विस्तार है अनंत इसका,आप जरा ध्यान से विचारिए।
जड़-चेतन प्रेम से है सराबोर,उस रसधार से नहाइए।।
है यही ब्रह्मांड की परम-शक्ति,सत्य यही बस एक मानिए।
कर्म,बुद्धि,ज्ञान हैं व्यर्थ के बस,सो सदा प्रेम को अपनाए।।
है जीवन प्रेम-उत्सव दीप्तिमान,हर घड़ी को संवारिए।
देह,मन,बुद्धि,आत्मा को,इसकी सुवास से महकाइए।।
सूत्रधार समस्त ब्रह्मांड के,श्री सीतारामजी को जानिए। 
आप तो बस प्रेम भाव से,श्रीचरण,भाव अश्रु पखारिए।।
@नलिन#तारकेश

Wednesday, 11 December 2019

हुआ नाद ब्रह्म से

हुआ नाद ब्रह्म से,समस्त सृष्टि का आविर्भाव है।
तारकेश-महादेव के डमरू से,बस ये संभाव्य है।।
सप्त स्वरों के विविध श्रृंगार का,ये अद्भुत परिणाम है।
सुर,लय,ताल छंदबद्ध सृष्टि का,रचा समस्त विधान है।। नाभिकीय विखंडन या संलयन से,हुआ काल का प्रवाह है। 
नीलकंठ त्रिनेत्र की,पलक खुली-बंद का,वही तो सारांश है।। 
क्षीरोदधि पर बना विष्णु का,शेषनाग जो रम्य निवास है। ब्रह्मांड की अनंत-आकाशगंगा का,वही सूक्ष्म विस्तार है।।यूं तो सृष्टि में हैं अनेक ग्रह,जहाँ जीवन का अनुमान है। रमणीय धरा में  मगर अपनी,मात्र नवग्रहों का प्रभाव है।।
दुःख,सुख जो है जगत में,वही नीर-क्षीर बाहुपाश है। राजहंस सदृश बनके हमने,होना सदैव विवेकवान है।। साधना और साधना से फैलती कस्तूरी की सुवास है।
मृग मरीचिका न भटके मन तो दिखता रामप्रकाश है।।दृश्य सारा जगत यूँ कहें तो बस एकमात्र आभास है।
हाँ यदि रहें श्रीचरण आश्रित तो अवश्य ही उद्धार है।।
@नलिन #तारकेश

Monday, 9 December 2019

स्थूल से सूक्ष्म

स्थूल से सूक्ष्म को अग्रसर सदा,यही जगत व्यवहार है।
देह तो है एक यंत्र बस,होना असल रूह से सरोकार है।।
बरतना प्रेम,करुणा,दया,निष्ठा यही सब तो सद्व्यवहार है। 
उतारना जीवन में इनको,यही स्वयं पर,एकमात्र उपकार है।।
प्रकृति-पुरुष का मेल सम्यक्,सृष्टि का नियत व्यापार है।
हो एक दूसरे पर सहज समर्पण,यही ईश का विधान है।।
है प्रति श्वास निश्चित,सुकर्म ही सदा रहा सदाचार है।।
प्रारब्ध जो है बदा,वो भी अपने सुकर्म का समाचार है।।
नित्य कर्तव्य कर्म करते,फल का यदि नहीं इंतजार है। विदेह सा फिर तो,वो जीव सदा ही,रहता निर्विकार है।। 
कृपा स्वरूप,जो मिली यह नर देह,हमें ये पुरस्कार है। 
करुणा सागर,श्री चरण प्रभु को,साष्टांग नमस्कार है।।
@नलिन#तारकेश 

287: गजल-खुद से ही

खुद से ही हम तो बतियाते रहे।
मजमून* ग़ज़ल का यूं पाते रहे।।*विषय
दिया है खजाना बेशुमार उसने भीतर। 
डूब के हम तो गहरे बस निकालते रहे।।
ऐसे तो कभी कोई सुनता नहीं हमारी।
सो बिना चूके हम अशआर* सुनाते रहे।*शेर का बहुवचन 
जाड़ों में धूप बमुश्किल है मिलती। 
सो फुर्सत निकाल बस सेकते रहे।।
कहा तो कुछ नहीं उसने हमसे मगर।
दिन के उजाले भी ख्वाब सजाते रहे।।
यूँ खाए तो बहुत धोखे हमने करीब से।
हर कदम फिर भी हंस के ही मिलते रहे।।
अंधेरा है बहुत ये कहने के बजाए।
बस "उस्ताद" हम चराग जलते रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 8 December 2019

286:गज़ल-कट गयी यार जब

कट गयी जब यार सबकी ये जिन्दगी जैसे-तैसे।
उम्मीद है फिर कट जाएगी हमारी भी जैसे-तैसे।। 
लगाना न तुम यहाँ पर दिमाग कतई यार मेरे।
चलो देखो चल तो रही है न जिंदगी जैसे-तैसे।।
बेकार है सच में उसूल-वसूल की बात सारी।
करिए आप जोड़-तोड़ बेशर्मी भरी जैसे-तैसे।। 
आरक्षण की बैसाखी देते रहिए आप जी भरके।
आखिर सरकार आपने भी है चलानी जैसे-तैसे।।
खानी है चैन से अगर आपने हर रोज़ दाल-रोटी।
पी लीजिए बेमन सही घूंट अपमान की जैसे-तैसे।। 
होगी इनायत ऑखिर किसी रोज तो मेरे राम की।
बस इसी उम्मीद में रात अपनी कट रही जैसे-तैसे।।
उसने मुझे बहलाया या कह लीजिये कि मैंने उसे।
बहरहाल काट ली "उस्ताद" ये जिंदगी जैसे-तैसे।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 7 December 2019

श्री राम जय राम

अनन्त गगन से विस्तारमयी एकमात्र श्री राम हैं।
यूँ देव तो अनेक हैं मगर ब्रह्म एकमात्र श्री राम हैं।। 
वाम में सुशोभित जगत-जननी,वैदेही विराजमान हैं।
लखन,भरत,रिपुदमन संग अजर-अमर हनुमान हैं।।
रूप,सौन्दर्य पर आपके शतकोटि मदन द्वारपाल हैं।
भाव-विरल ही नहीं भाव सजल भी एकमात्र आप हैं।।
साधु-सुशील,कुटिल-नीच सबके एक आस-विश्वास हैं।
समस्त-सृष्टि,रोम-रोम सिर्फ समाहित श्री सीता राम हैं।।
"तारकेश"महादेव के आप इष्ट रूप जगत विख्यात हैं।
भक्त समस्त निहार आपको"नलिन"सदृश निहाल हैं।।
@नलिन#तारकेश

Friday, 6 December 2019

285:गजल:कनखियों से देखा

कनखियों से देखा उसने मुझे तो बांवला हो गया। 
हर अदा उसकी जा-निसार*दिल ये मेरा हो गया।।*समर्पण 
कभी-कभार ही दिखा है बमुश्किल वो मुझे ख्वाब में। झलक से एक ही मगर प्यार का शुरू ककहरा* हो गया।।*वर्णमाला alphabet
जुगत कोई मालूम नहीं जिससे वो मुझे चाहने लगे।
हाँ जिसे उसने चाहा वो बस उसका अपना हो गया।।
हर आहट लगता है जैसे साँवला आ गया हो घर मेरे ।
रोज का ही मगर ये तो सिलसिला अब झूठा हो गया।।
स्वांग कर रहा था मैं तो महज यूँ ही उसका होने का।
खुदा जाने "उस्ताद" दिल ये कब उसका हो गया।।
@नलिन#उस्ताद

286:गजल-कैसे भला

कैसे भला बोकर बबूल गुलाब की खेती करोगे।
जिस्म की नुमाइश परोस कहाँ तुम नेकी करोगे।।
धन-पिपासु बनकर तुमने शर्म नैतिकता तो सब बेच दी।
दिखा अश्लील फिल्म/विज्ञापन तुम बस वसूली करोगे।। मर्यादा,संस्कार की जब भी अगर कोई दलील देगा। अभिव्यक्ति की आजादी बता कुठाराघात ही करोगे।। माफी,जमानत हर बात या बस सजा थोड़ी सी देकर। 
आँख पट्टी बाँध,सालों-साल सुनवाई की गलती करोगे।।
वर्दी से बेखौफ,गुंडे-मवाली हर गली जो आम दिख रहे।
लचर शासन-प्रशासन रहे अगर यूँ ही जबरदस्ती करोगे।।
खोह में घुसे रहोगे जब तलक खुद को महफूज समझ के। होंगे अनाचार तब तलक,प्रतिकार जब तक नहीं करोगे।।
जरा सोचो जंगलराज कब तक चलेगा आज के नए दौर में। 
"उस्ताद"कैसे कल्पना साकार तुम भला रामराज की करोगे।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 4 December 2019

284-गजल:हम कभी चुपचाप

हम कभी चुपचाप तो कभी फूटकर रोते हैं। 
मगर जाने क्यों लोग तो यहाँ रोने से डरते हैं।। 
सारा खारापन निकालते हैं ये अश्क आपका।
तभी तो कभी हम बेवजह भी आँख भरते हैं।।
रोने की रस्म अदायगी दिखती है यहाँ आजकल तो।
मेकअप न बिगड़े गिल्सरीन लगा बस सब देखते हैं।।
सूखे दरिया सी महज़ रेत ही बिखरी है ओर-झोर।
तभी सब लोग यहाँ तो किरकिरी से चुभते रहते हैं।।
दुनियावी ख्वाहिशें रोज़ चक्की सा पीसती आपको।
मगर कभी रूहानी जज्बात भी खूब रुलाते रहते हैं।।
मानो ये न मानो मगर सौ फीसदी ये हकीकत रही।
रूह की पाकीजगी हर बड़े"उस्ताद"इसी से पाते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 3 December 2019

283:गजल:यहाँ सिवा तनहाई के

यहाँ सिवा तन्हाई के हमने तो कुछ भी कमाया नहीं। 
किसी से क्या गिला करें जो रब को अपनाया नहीं।। लकीर के फकीर बन जिंदगी सारी गुजार दी। 
नशातारी डूबो गई होश हमें कभी आया नहीं।।
ग़ुरबतों* का रोना रोते रहे बेवजह हम तो।*विवशताओं 
दिया था बहुत उसने मगर हमने समीहा*नहीं।।*प्रयास 
नासमझ हम भटकते रहे,नहीं जाना पाना क्या है। 
बटोरा सारा रेत,कंकर बस जवाहर*संभाला नहीं।।*रत्न
पढ़ाया था"उस्ताद"ने जो सबक हमको प्यार का।
क्या कहें खोट मन की,उसे हमने दोहराया नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 2 December 2019

282:गज़ल:जबसे लौ मेरी

जबसे लौ मेरी तुझसे लगने लगी है।
धड़कन इस दिल की बढने लगी है।।
लाख निकलूं चुपके जो तेरी गली से। 
जोर से ढीठ पायल खनकने लगी है।।
इत्तर-फुलेल लगाने की जरूरत नहीं अब तो। 
अहसास से तेरे रूह भी मेरी महकने लगी है।।
हर जगह तू ही तू अब है दिखता मुझे। 
इश्क में खुमारी गजब ये चढने लगी है।।
क्या लिखूं,कैसे लिखूं जलवों को तेरे।
कलम भी "उस्ताद" बहकने लगी है।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 30 November 2019

281:गजल-अपने हैं जो भी

अपने हैं जो भी,लग रहे अजनबी सभी।
नाचते लग रहे,जैसे बेगानी शादी सभी।।
खुद का ही होश नहीं रहा यहाँ तो किसी को।
अब तो देखो हैं झूम रहे बन के शराबी सभी।।
जिगरा ही नहीं बिके हुए निभाएं कैसे वफादारी। 
लो हुई बातें ईमान की आजकल बेईमानी सभी।।
कसौटी पर कस के कहें सच तो भी हम झूठे।
कहें मगर आप तो जायज हैं बातें झूठी सभी।।
"उस्ताद" कौन और भला कौन शागिर्द कहो तो।
तौले जा रहे अब यहाँ एक भाव रेत,मोती सभी।।
@नलिन#उस्ताद

280:गज़ल-दर्द में तो

दर्द में तो सबसे पहले पूछते हमको।
खुशी में लोग मगर भूल जाते हमको।। 
दर्द न हो किसी को यही चाहते हम तो।
फिर वो चाहे सदा ही भूलें रहें हमको।।
खुदा करे रहें सब ही खुशहाल यहां पर।
दर्द तो किसी के भी तकलीफ देते हमको।।
दर्द में किसी के कैसे खुश हो सकता कोई।
सवाल ऐसे सदा हैरान परेशां करते हमको।।
"उस्ताद" ये दुनिया भी अजब बनाई उसने। 
दर्द  होते ही क्यों समझ जरा न आये हमको।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 28 November 2019

279:गजल-जब तलक हम

जब तलक हम बच्चे होते हैं।
सच कहूँ बड़े भोले होते हैं।।
उम्र बढ़ती जाए जैसे-जैसे।
हम और-और खोटे होते हैं।।
दुनिया का है दस्तूर पुराना।
हर भले काम रोड़े होते हैं।।
लाख इल्मो हुनर चाहे संजो लें।
कभी तो दाँव सारे उल्टे होते हैं।।
"उस्ताद"न कहो दर्द किसी से।
जख्म तब और भी गहरे होते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 27 November 2019

278-गज़ल:तौबा-तौबा हम लिखते क्या हैं

तौबा-तौबा हम लिखते क्या हैं लोग समझते क्या-क्या हैं।
अपने-अपने आईने से दुनियावाले हमें आंकते क्या-क्या हैं।।
सोचते हैं अब न कहें किसी से कुछ भी अब तो कसम से।
यहाँ तो हर लफ्ज़ पर लोग अफवाह उड़ाते क्या-क्या  हैं।।
चलो खैर ये भी ठीक है यूँ कुछ काम तो मिल गया इनको।
वरना तो जुल्म की इन्तेहा इनके खुदा जाने क्या-क्या हैं।।
इस बहाने दुनिया में चलो हमारे भी चर्चे तो हो रहे। 
ये अलग बात कि इल्जाम लोग मढते क्या-क्या हैं।।
वक्त ही नाजुक है बड़ा सवालों में आ रहे"उस्ताद"सब।
बस तमाशा है सितारों का देखिए लिखते क्या-क्या हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 25 November 2019

277-गज़ल:जब भी देखता हूँ

जब भी देखता हूँ मैं खुद को आईने में।
पूछता हूँ उससे तुम कौन हो आईने में।।
बड़ी भोली सी सूरत सादगी भरा मिजाज।
शातिर से यार दिखते नहीं तुम तो आईने में।।
करीने से किया मेकअप तिलिस्म सा जगाता। 
यूँ किस को बरगला रहे हो बताओ आईने में।। 
जो हुआ सो हुआ भूल जाओ बीती बातों को।
जरा खुद से नजरें तो अब मिलाओ आईने में।।
वो तो मासूम सा बस दिखा रहा हकीकत।
"उस्ताद" यूँ पत्थर तो न फेंको आईने में।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 24 November 2019

गज़ल: 276 - चाहतें तुझे पाने की

चाहतें तुझे पाने की हैं मेरी समंदर की लहरों सी।
घूम-फिर के आती हैं अपनी जिद पर बच्चों सी।।
यूं समझता है तू कही-अनकही सब बातें मेरी।
मगर हरकतें हैं तेरी वही फरेबी नाजनीनों सी।।
आया तो था यहाँ तुझसे मिलूंगा बस यही सोच कर। भटकाती रही मगर जिंदगी कहाँ से कहाँ बादलों सी।।
ऑखों में धुंआ-धुंआ सा दिल में बेचैनी है बड़ी।
सुलगती रहेंगी बता कब तलक सांसें अंगारों सी।।
"उस्ताद" बस तेरी इनायतों पर चल रही है जिन्दगी।
वरना तो उम्मीदें सभी लगती यहाँ अब झूठी दलीलों सी।।
@नलिन#उस्ताद

गडल:275-गोदी में अभी

गोदी में अभी खेलते नहीं परिंदे मेरे। 
बाकी हैं प्यार के सबक सीखने मेरे।।
अभी तो चखी नहीं एक घूंट मय की।
लो अभी से हैं मगर पांव बहकते मेरे।।
चल पड़ा हूँ जो उसका दीदारे ख्वाहिश लिए।
हौसला यूं बना कि पाँव नहीं अब थकते मेरे।।
घड़ी की सुईयों का यहाँ भला कौन मुंतज़िर*है।*प्रतिक्षारत
बसे हैं जबसे आँख में लीक से हटे सपने मेरे।।
ये खामखा लगे वर्जिश*किसी को तो लगा करे।*कसरत
बस उसके चरचे ही दिलों के तार हैं छेड़ते मेरे।।
गजल लिख रहा हूँ हर रोज एक नई मैं तो।
"उस्ताद"है अभी जिंदा कलाम यह बताते मेरे।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 21 November 2019

गजल:274-कभी खिलखिलाने रोज़ पड़े

कभी खिलखिलाते रो पड़े,कभी रोते-रोते हंसने लगे। प्यार में जब से हम पड़े अजब हरकतें करने लगे।।
कुछ था नहीं जमीनी बस ख्वाब एक रूमानी रहा।
फसाने को समझ हकीकत यार हम मचलने लगे।। 
एक अजब नशा मदहोशी सी रहती है अब तो।
लोग सरेआम अब तो हमें शराबी कहने लगे।।
वो निभायेगा या साफ मुकर जाएगा वादे से अपने।
बेवजह की इस बेकली से अब तो ऊपर उठने लगे।।
प्यार किया है हमने तो निभायेगा फिर भला कौन कहो।
परवान इस तरह आजादी को बख़ूबी अपनी चढ़ाने लगे।।
प्यार हो सच्चा तो चाहता कहाँ कुछ भी महबूब से।
खुदा का शुक्रिया हम ये बारीकियां हैं समझने लगे।।
जबसे हमारे दिल में उसका दिल धड़कने लगा।
कहो अब कहाँ तन्हा उस्ताद हम रहने लगे।।
@नलिन#उस्ताद

गजल:273-भीगी जुल्फें

भीगी जुल्फें झटक के जो लहराई उसने।
दिले रेगिस्तां आबे-हयात* बरसाई उसने।।*अमृत
हर तरफ,हर गली,हर मोड़ चर्चे हैं उसके।
गजब खूबसूरत ये कायनात बनाई उसने।।
समंदर से जाकर मिलने को बेचैन है दरिया।
दिल में गहरे लगन ऐसी मीठी लगाई उसने।।
होगी हर रोज़ गुफ्तगू मीठी-मीठी अब तो।
बदल के लकीरें नई तकदीर रचाई उसने।।
"उस्ताद"आँखों में सुर्ख गुलाबी डोरे छा गए।
जबसे यकबयक* एक हंसीं झलक दिखाई उसने।।*एकाएक 
@नलिन#उस्ताद

Monday, 18 November 2019

272:गज़ल-आँखों में चढ़ी है

आँखों में चढ़ी है ऐसी गज़ब की खुमारी उसकी।
खुली हो,बंद हो अब तस्वीर मिटती नहीं उसकी।।
सुबह-शाम,हर घड़ी यही चाहत मुझमें है बाकी। 
सुनता रहूँ बस इनायतों की चर्चा अजूबी उसकी।।
वो मेरे आस-पास है खुद ही राज ये खोला उसने।
लो मैं भी सूंघता फिर रहा सांसे महकती उसकी।।
कदम दर कदम ठोकरें खा रहा हूँ जैसे शराबी।
अजब हाल पर मिटती नहीं दीवानगी उसकी।।
बहुत बोलता है इशारों-इशारों में वो तो हमसे हरदम।
समझ सको जो बिखरी जर्रे-जर्रे में खामोशी उसकी।। "उस्ताद"ये नशा भी अजीब है जो उतरता ही नहीं।
दिखाता है कैसे-कैसे अजब मंजर बलिहारी उसकी।।
@नलिन#उस्ताद 

Saturday, 16 November 2019

271:गजल-ख्वाब में भी दिखते रहो

ख्वाब में भी  दिखते रहो तुम तो गनीमत है।
वरना तो ये जिंदगी बस एक जहालत* है।।*अज्ञानता 
हकीकत से रूबरू होना तेरी ही बस इनायत है।
सच तो ये कि होती नहीं कोई ऐसी इबादत है।।
बातें हवा में शेखचिल्ली सी चाहे जितनी बना लें। 
हमको कहाँ पल भर भी रहती ज़रा तेरी हसरत है।।
कूचा-कूचा हर शय जलवा ए कारीगरी। 
भरती हर अदा तेरी हममें बड़ी हैरत है।।
आँखें लड़ाने की सोचना उस आफताब से। 
बड़ी बचकानी भरी बेजा ये तेरी हरकत है।। 
दुनियावी रंगीनियां हर कदम भरमाती रहेंगी ताउम्र ।
भूलना न उसे कभी वरना तो"उस्ताद"फजीहत है।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 15 November 2019

गजल-270:हाथों में पकड़ा दिया

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।सत हरि भजनु जगत सब सपना।(रामचरितमानस 3/38/5)
******************************
हाथों में पकड़ा दिया सबके एक झुनझुना उसने।
गम और खुशी बीच सबको खूब उलझाया उसने।।
हर कोई दूसरे के हाथ की शय से बस हैरान है।
अपने हाथ मिला क्या देखना ये भुलाया उसने।।
हर बात बच्चों सा रोता और मचलता है आदमी।
छोटी-बड़ी हर बात पर हमें बहुत फरमाया उसने।।
सारी दुनिया खड़ी महज ये झूठ की बुनियाद पर।
बस दिखा चांद का अक्स पानी में बहलाया उसने।।
कोई नहीं तेरा"उस्ताद"कागजी लफ्फाजी है सब।
बेवजह के मकड़जाल बारीकी से फंसाया उसने।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 6 November 2019

गजल-269:पीनी शराब

छोड़ दी मैंने शराब पीनी कसम से।
पी के निकलता झूठ नहीं कसम से।।
सच का सरेआम कत्ल हुआ है जब से।
बगैर झूठ जिंदगी न गुजरती कसम से।।
देर-सवेर जीतता था सच एक दौर पहले।
हर कदम अब झूठ की बिकवाली*कसम से।।
*मुनाफे हेतु शेयर या हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया
झूठ पढ़ लो चाहे साफ-साफ आंखों में उसकी।
कहने की हकीकत ये ताब* न रही कसम से।।*हिम्मत 
झूठ भी बेच ले होशियारी से जो पूरा सफ़ेद।
है "उस्ताद" वही नामी गिरामी कसम से।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 5 November 2019

268:गज़ल:आईना अपना तोड़ के आना

आईना अपना तोड़ के आना।
जब भी मिलने मुझसे आना।। 
झूठ न बोलें मेरी निगाहें।
सोच समझ के तू ये आना।।
अमन चैन से दुनिया को रंगने।
ख्याल तास्सुबी* छोड़ के आना।।*कट्टरता 
नामुमकिन सा कोई हर्फ* नहीं है।*शब्द 
सो बिछड़े ख्वाब संजोने आना।।
कदम-कदम में जोश भरा हो।
दिल को ये तू समझाते आना।।
"उस्ताद"वही है इस दुनिया का।
उसको करके बस सजदे आना।।
@नलिन#उस्ताद

267:गजल

गुनगुनाते मस्ती में तुम बढ़ते रहो। 
जिंदगी की नाव बस यूं ही खेते रहो।।
धुंध है छाई आजकल आसमान में।
हटाने की इसको जुगत लड़ाते रहो।।
एहसास गुनाहों का याद करना ही होगा। 
खुद से नजरें चुराकर अब न बचते रहो।।
नस्लें आने वाली करेंगी कभी न माफ हमको।
सो सबक कुछ भले भी खुद को सिखाते रहो।। 
परिंदे,दरख्त,चौपाए सभी हैं खौफजदा हमसे।
हो आदम तो अपनी इंसानियत बचाते रहो।।
क्या हाल-बेहाल कर दिया है कायनात का तुमने। 
"उस्ताद" सोचो वरना तो हाथ  फिर मलते रहो।।
@नलिन#उस्ताद 

Monday, 4 November 2019

गज़ल 266:अपना ही जब न हो सका आदमी

अपना ही ये जब न हो सका आदमी।
गैर का भला क्या खाक होगा आदमी।।
सितारों में दुनिया बसाने का ख्वाब है पाले हुए।
जमीं में ही ठीक से आता नहीं चलना आदमी।।
हवा,पानी,मिट्टी लो ये जहरीले सभी हो गए। 
हद है मगर नहीं अब तलक जागा आदमी।।
यूँ जो ठान कर हौंसले से जब-जब ये चल पड़ा।
नामुमकिन को भी है मुमकिन बनाता आदमी।
भीड़ ही भीड़ है चारों तरफ यूँ तो आजकल।
लीक से हटके भी दिखाता है चलना आदमी।।
शौक तो बड़ा है "उस्ताद" कहलवाने का।
काश पहले थोड़ा ये बन तो जाता आदमी।।
@नलिन#उस्ताद

दो पुस्तकें संगीत पर

इधर मुझे शास्त्रीय संगीत पर आधारित दो पुस्तकें  पढ़ने का मौका मिला।इसमें एक तो ध्रुपद के प्रख्यात गायक गुंडेचा बंधु के द्वारा शीर्षस्थ संगीतज्ञों  से संवाद पर आधारित है।इस पुस्तक का नाम है "सुनता है गुरु ज्ञानी" इसमें कुल 11 उस्तादों से संवाद है जिनमें उनके गुरु जिया फरीदुद्दीन डागर के साथ ही अन्य चर्चित उस्ताद शामिल हैं।इनमें पंडित भीमसेन जोशी,पंडित जसराज, पंडित हरिप्रसाद,किशोरी अमवकर,अमजद अली खान साहब जैसी संगीत की  दिग्गज  हस्तियां शामिल हैं।क्योंकि यह संवाद स्वयं एक प्रबुद्ध ख्याति प्राप्त गुंडेचा बंधुओं के द्वारा हुआ है तो स्वाभाविक  ही इसमें संगीत की बारीकियों पर गहन विचार-विमर्श और संवाद हुआ है। इस तरह की यह मेरी समझ में पहली और विलक्षण कृति है जिसका संगीत के रसिक लोग अवश्य आनंद उठाना चाहेंगे।दूसरी पुस्तक भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित तो है पर इसका आधार फिल्म के गीत-संगीत से जुड़ा है। इसमें उन ढेर सारे गानों की  जानकारी है जो बताती है कि वह संगीत के किन आधारभूत रागों पर पल्लवित पुष्पित हुए हैं।शिवेंद्र कुमार सिंह और गिरिजेश कुमार जो मूलतः पत्रकार हैं उनके द्वारा यह एक रचित रोचक प्रशंसनीय कृति है। "रागगिरी" पुस्तक में संगीत की कुछ बुनियादी बातों को समाहित करते हुए 66 रागों को आधार बना कर ढले लोकप्रिय गीतों का जिक्र है तो वहीं  पुस्तक को अधिक पठनीय बनाने के लिए उस गीत- संगीत ,गायक या अन्य  किस्म के  संबंधित जुड़े किस्से सम्मिलित किये गये  हैं जिससे पुस्तक  की रोचकता में वृद्धि  हुई है।कुल मिलाकर दोनों ही पुस्तकों ने मुझे शास्त्रीय संगीत पर नई जानकारी  दी सो आपसे इन्हें मुखातिब  कर  रहा हूॅ।

Saturday, 2 November 2019

गज़ल-265:अपने ही शहर में

अपने ही शहर में हमें तो कोई भी जानता नहीं।
रहे किसी के कातिल नहीं सो पहचानता नही।।
ये सच नहीं कि मैं झूठ कभी बोलता नहीं।
हाँ किया हो वादा तो फिर पीछे हटता नहीं।।
भीड़ तो बढ़ रही खूब जहीन आलिम फाजिलों की। मुश्किल यही कि आदमी अब भी कोई मिलता नहीं।।
आँख से दर्द है कि बढ़ता ही जा रहा बिछुड़ने का। 
हद ये है आँख से एक भी कतरा क्यों रिसता नहीं।। 
मुद्दतों बाद मिले हैं उनसे तो दुआ-सलाम भी हुई।
जाने क्यों फिर भी रिश्ता पुराना सा महकता नहीं।।
लिखने को तो लिखता रहा हूँ खोल कर अपना दिल।
तौबा मगर जज़्बात कभी भी मैं अपने बेचता नहीं।।
समझाता था उन सबको उनके ही भले की बात मगर।
"उस्ताद"की बात पर अमल यहाँ कोई करता नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 1 November 2019

गजल-264:चेहरे से हटा कर जुल्फें

चेहरे से हटा कर जुल्फें फिर बार-बार गिराते हैं।
अपनी अदाओं से कातिल वो तो बस जलाते हैं।।
बहुत गुरूर है अपने जिस्म की रानाई* का।*सुन्दरता 
तभी तो हुजूर हमें भाव बहुत दिखाते हैं।।
निगाहों से निगाहों का पैमाना टकरा के जो है छलका।
इल्जाम देखिए अब किस पर ख़ूबसूरती से लगाते हैं।।
मिलाते नहीं निगाह ये भी एक अजब किस्सा रहा।
गैर की पर आड़ ले अक्सर वो हमें ही सुनाते हैं।।
ठुकरा दिया अपना जिन्हें शागिर्द बनाने से। 
वही खुद को अब असल "उस्ताद" बताते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 31 October 2019

गजल:263-हमारी हर आह पर सवाल है

हमारी हर आह पर सवाल है।
ये उसका जुल्म भी कमाल है।।
इनायत होती है जब उसकी तुझ पर।
समझ आता उसका हुस्नो जमाल है।।
भटके हुओं को दिखाने रास्ता।
जल रहा वो जैसे एक मशाल है।।
वो भी निकला फकत बेवफा।
दिल में मेरे यही एक उबाल है।।
आंखों में खटक जाए जो कोई।
करता उसे वो तो बस हलाल है।।
समझा ही नहीं कोई हमें यहां।
"उस्ताद"बस यही तो मलाल है।।
@नलिनी #उस्ताद

Friday, 25 October 2019

गजल-262:मिलें हों दिल तो

मिलें हों दिल तो हाथ मिलाने की कीमत नहीं।
हों न मिले तो फिर मिलाने की भी जरूरत नहीं।।
दिलों की धड़कनों से अपनी तुम जान जाओगे।
जो प्यार करोगे असल तो पूछोगे कैफियत*नहीं।*हाल/समाचार
हो अगर अंजान हकीकत से तुम किसी की।
लगाना उस पर कभी ठीक बेबात तोहमत*नहीं।।*झूठा इल्जाम
दुनियावी बातों में हिसाब-किताब से किसे एतराज है।
बात ये मगर कतई जायज होती कभी मुहब्बत नहीं।।
प्यार से बोलो लगाओ जरा काफिर को भी गले।
लगता है की है तुमने कभी ठीक से इबादत नहीं।।
खुशियों से कह दो "उस्ताद" लिख रहे गजल।
दहलीज पर ठहरें अभी गमों से फुर्सत नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 23 October 2019

गजल-261:दिल आज परेशान है

जाने क्यों दिल आज परेशान है।
हकीकत से दुनिया की हैरान है।।
जब तुझमें भी वही रब जो मुझमें बसा हुआ। 
तो भटकता काहे अजनबी सा अनजान है।। 
जिंदगी की तलखियाँ*सच कहें तो।*कड़ुवापन
तेरा-मेरा अक्सर लेती इम्तहान है।।
घर सजाने का ख्वाब तो है नेमत भरा।
तो खुद से बनाता क्यों तू तालिबान है।।
चाँद-सितारों को चूम रही जब सारी दुनिया।
ये किस जहालत* को"उस्ताद"तेरी उड़ान है।।*मूर्खता
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 22 October 2019

गजल-260 :जन्नत के ख्वाब

जन्नत के ख्वाब हमें वो दिखाने आए हैं। दुनिया की हकीकत से जो बचते आए हैं।। 
होते हैं तेरे-मेरे बीच कुछ ऐसे शख्स भी।
हर भले काम जो खलल डालते आए हैं।।
न करो बात नामुराद सियासतदानों की। अंगुलियों पर इन्साफ ये नचाते आए हैं।।गद्दार हैं रहते कुछ हमारे मुल्क के भीतर ही।
दुश्मनों से जो नापाक हाथ मिलाते आए हैं।।
नाजनीनों को हल्के में लेने से बचिए हुजूर। 
ये तो अदाओं से जिलाते ओ मारते आए हैं।।
खैरमकदम* किस-किस का कहो करते फिरें हम।*अभिनन्दन  
यहां तो सभी खुद को "उस्ताद" बताते आए हैं।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-259 : बेपरवाही में

बेपरवाही में भी इतना एहतियात*तेरे पास रहे।*सावधानी
गुलों के साथ खेल मगर कांटों का एहसास रहे।।
जिंदगी को समझना हो अगर तुझे सही मायने में।
दोस्त ही नहीं दुश्मनों के साथ भी इजलास*रहे।।*बैठक/बातचीत
एक तार की चाशनी में डुबोने का फन हो अगर हांसिल। 
तेरे-मेरे रिश्तों में कहाँ जरा भी कोई खटास रहे।।
पर्दादरी रहेगी किससे भला बता तो सही।
हर कोई जब तेरे लिए अपना ही खास रहे।। 
दुआ कर ले खुदा कबूल बस यही एक चाह है।
जब तलक है सांस तब तलक वो मेरे पास रहे।।
अदना सा आदमी भला देगा क्या किसी को।
नामुमकिन भी है मुमकिन जो उसकी आस रहे।। 
जुड़ें जो बेतार के तार परवरदिगार से तेरे। 
फिर भला"उस्ताद"क्यों तू कभी उदास रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 18 October 2019

गजल-258 :खरामां-खरामां

खरामां-खरामां यूँ ही चलते रहो।
हवा की मानिंद चुपचाप बहते रहो।।
जल्दबाजी की जरूरत जरा भी नहीं।
सुकूं से फैलाके पंख तुम उड़ते रहो।।
जिंदगी मिली है ये जो नसीब से उसके।
दरिया ए मौज हर हाल बस लेते रहो।।
घूरे के दिन भी बदलते हैं यारब ।
दिल को उम्मीद ये दिलाते रहो।।
दुनिया ए दस्तूर रहा है टांग खींचना।
तुम तो अपनी ही मस्ती में फिरते रहो।। बेझिझक बिंदास अपने दिल की करो।
भीतर ही भीतर मगर तुम न कुढते रहो।।
आएगा"उस्ताद"दर पर तुझसे वो मिलने।
शिद्दत से तुम तो इबादत बस करते रहो।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-257:परवाने को

परवाने को अपनी मंजिल मिली थी।
आँखों में उसे एक चिंगारी दिखी थी।।
यूँ ही नहीं उमड़ा है प्यार उसके लिए।
देखते ही दिल में एक बाती जली थी।।
खुले आसमां में डोलते हों जैसे बादल।
उसकी अदा उसे यूँही बिंदास लगी थी।।
हवा में हिचकोले खाती पतंग के जैसे।
बातों से अपनी वो तो पलटती रही थी।।
परिंदों की तरह चहचहाना बात-बेबात।
आदत ये उसको बहुत पुरानी पड़ी थी।।
मुद्दतों"उस्ताद"जज्बात रोके हुए था।
बरसात तो गोया अब ये थमनी नहीं थी।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 17 October 2019

गजल-256:घुट-घुट के

घुट-घुट के यूँ न आप जिया कीजिए।
कहीं न कहीं तो दिल लगाया कीजिए।। नादानी में भी छुपी है कुछ बात बड़ी।
बच्चों से ये जरा सीख लिया कीजिए।।
बहुत बदल गया है ये जमाना हुजूर।
जरा चश्मा तो अपना नया कीजिए।।
पेशानी में बल क्यों पड़ते हैं आपके।
लबों को कभी तो खिलाया कीजिए।। जमाना दिखता है आप जैसा देखना चाहें। खुद का दामन तो कभी टटोला कीजिए।।
"उस्ताद"दो घड़ी की है ये जिंदगी केवल।महकिए और सबको महकाया कीजिए।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 16 October 2019

गजल-255:हमें याद करना

फुर्सत मिले तो हमें याद करना।
कभी हमारी भी पूरी मुराद करना।
माना हम नहीं हैं काबिल तेरे।
कभी तो मगर इमदाद* करना।*मदद
दूसरों को शिकस्त देने से पहले।
खुद के भीतर जरा जिहाद* करना।।*धर्मयुद्ध
घोड़ा-गाड़ी,सोना-चाँदी छोड़ कर।
प्यार की हांसिल जायदाद करना।।
हर जगह अंधेरा गला घोंट रहा अब तो।
इल्म ओ हुनर से इसे आबाद करना।।
हो जाती है गुस्ताखी हर किसी से।
माफ हमें तू"उस्ताद"करना।।

@नलिन*उस्ताद

Monday, 14 October 2019

गजल-254: निगाहों में उसकी एक समंदर

निगाहों में उसकी एक समंदर बसता है।
तभी तो वो शायद नमकीन लगता है।।
मचल के तोड़ देता है समंदर सब किनारे।
आसमां से जब भी चांद इशारे करता है।। डूबना भी चाहो तो कहां आसां है डूबना। मौजों से अपनी वो ही किनारे पटकता है ।।
जाने कितनी नायाब राज छुपाए हैं सीने में। बाहर से चाहे ये बड़ा ही खामोश रहता है।।  हो चाहे जमाना समंदर के जैसा भरमाता बड़ा गहरा।
"उस्ताद"को तो बस ये बाजीचा*-ए-अतफाल**लगता है।।*खिलौना **बच्चे
(बच्चों का खिलौना)
@नलिन#उस्ताद

साईकिल की सवारी

एक पहल छोटी ही सही
☆☆☆卐卐卐☆☆☆
आओ पैडल मारें एक सुकूं भरी जिंदगी पाने के लिए।
आओ साइकिल चलाएं हम धरा को बचाने के लिए।।
पहल ऐसी सार्थक करनी तो होगी कभी ना कभी।
बना के मुहिम क्यों ना करें कुछ जमाने के लिए।।
यूं तो कदम बहुत छोटा है इस दिशा में ये एक।
बूंद-बूंद से है भरता धड़ा बस यह दिखाने के लिए।।
सुधरेगा स्वास्थ्य इससे न केवल हमारा बल्कि चमन का भी।
काम आएगी ये तरकीब भी धन अपना बचाने के लिए।।
जो फिटनेस रहेगी तो मुट्ठी में रहेगा जमाना हमारे।
वरना तो हर कवायद बताओ करते हैं हम किसके लिए।।
स्वच्छ भारत मुहिम हो या प्लास्टिक- मुक्त धरा की अपील।
करना तो होगा हमें ही नया कुछ रोकथाम करने के लिए।।
@नलिन#तारकेश

Saturday, 28 September 2019

गजल:253 आबे हयात

मुझे कहाँ रदीफ,काफिया मिलाना था।
अपन को तो बस दिल ये बहलाना था।।
जरा सी शिकायत से रूठ जाते हैं लोग।
सो कहीं न कहीं गुबार तो निकालना था।।
नजदीक रहकर भी जब तन्हा ही रहना हो। बेवजह फिर तो किसी से दिल लगाना था।। होठों पर पपड़ियाँ निगाहें गेसूओं से ढकीं।
चट्टान के नीचे एक गमे तो दरिया बहना था।।
सभी मुसाफिरों की मंजिल है आफताब*।
*सूरज(सूर्यात्माजगतश्चक्षु)
मकसद रूह का बस सजना-संवरना था।।
गर्म रेत चल के"उस्ताद"नंगे पाँव आ गया।
उसे तो हर हाल आबे-हयात* गटकना था।।
*अमृत
@नलिन#उस्ताद

Friday, 27 September 2019

पिताश्री की कलम से

यह भी खूब रही
○●○●○●○●लघुकथा
हमारे कार्यालय के एक सहायक ने अपने 2 दिन के आकस्मिक अवकाश के आवेदन पत्र में यह उल्लेख किया कि उनके पैर में कील गड़ गई है जिसके कारण वे कार्यालय उपस्थित होने में असमर्थ हैं। 2 दिन बाद जब वे कार्यालयआए तो उनके दाहिने हाथ के अंगूठे में पट्टी बंधी थी और पैर ठीक अवस्था में प्रतीत होते थे। हमारे अधिकारी ने भी इस पर ध्यान दिया और अपनी आदत के अनुसार उनसे पूछ लिया "क्यों डियर पैर की कील क्या अंगूठे के रास्ते बाहर निकल गई है।अवकाश लेने वाले उन सहायक की दशा देखने लायक थी।भुलक्कड़ स्वभाव के कारण उन्हें याद ही नहीं था कि उन्होंने पैर में कील गड़ने का बहाना बनाया था।
         =========
जब याद आ जाती तुम्हारी
○●○●○●○●○●○●○●कविता
जब याद आ जाती तुम्हारी।
अधीर मन हो जाता है भारी।
भाग्य की रेखाओं में खींची हैं-
विरह की घड़ियां तुम्हारी-हमारी।।
उस बार का वह मधुर मिलन।
जो हो गया अब एक स्वपन।
क्या फिर कभी मिलन के बादल-
बुझा सकेंगे मेरी विरह जलन?
पावस ऋतु के ये काले बादल।
पीड़ा छिपाए हुए अपने आंचल।
लायेंगे संदेश मेरा ये तुम तक।
बहाना न अपने नैनों का काजल।।
        =========
होनहार
○●○●कविता
एक क्षण न पहले हो सकेगा,
कार्य तेरा इस जगत में।
जो लिख दिया है उस ईश ने,
हर बात होना अपने समय में।।
शक्ति कितनी ही खर्च कर,
नर अगर चाहे बदलना।
उस घड़ी का कठिन है,
अपने समय से पलटना।।
हो कर ही रहती है होनहार,
ये मानना पड़ता है सबको।
कर्तव्य करना धर्म अपना,
छोड़ उसी पर फल की आशा को।।
     ==========

गजल-252:बरसात हो रही

मुद्दतों बाद आज ऐसी बरसात हो रही। तबीयत से भीगो भारी बरसात हो रही।। बच्चे खुश हैं बड़े रेनी डे जो हो गया।
चलाने गली में कश्ती बरसात हो रही।।
सूखा सा रहा सावन औ निकला सूखा भादो।
असौज*के जाते-जाते सारी बरसात हो रही।*आश्विन मास
मिजाजे लखनऊ है शुरू से ही ऐसा।
सो ये उसमें ही ढली बरसात हो रही।।
उमस जा के दुबकी गुलाबी ठंड है छाई। लाने लबों पर हँसी बड़ी बरसात हो रही।।निकालो"उस्ताद"जो है दुछत्ती में संभाली। छलकाने को जाम आज ऐसी बरसात हो रही।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 25 September 2019

गजल:251:मेरा नाम लेना था

उसकी जुबां को मेरा नाम लेना था।
जमाने को फिर तो हैरान होना था।।
आँखों से आँखें जो मिल गईं।
रूह को हर हाल महकना था।।
उसके सिवा  नहीं कोई अपना।
बस यही हमें यार समझना था।।
चेहरे-मोहरे से तो बड़ा भला लगा मुझे।   किसे खबर थी रंग उसने बदलना था।।
आँगन से बगैर बरसे गुजर गया बादल।
जाने किसने उसे ये पाठ पढ़ाया था।।
दांव उल्टा तो कभी सीधा ये तो लगा ही है।
इन बातों से कहाँ कब तक झिझकना था।।
पी जो उनकी निगाहे पैमाने से मय।
उस्ताद का वाजिब बहकना था।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 24 September 2019

गजलः250-खुद बदलना था

दरख़्त से इतना सीखते तो अच्छा था।
लद जाएं जो फल तो हमें झुकना था।।
आँसू बरसाने में कोताही ना करना।
वरना ये दिल तो अंदर ही घुटना था।।
जाड़ा,गर्मी,बरसात हैं मौसम के नजारे। इनका तो हमें हर-हाल लुत्फ लेना था।।
हर घड़ी की फितरत अलग है जनाब।
तालमेल यहाँ तो बस यही बैठाना था।।
वो बुलन्दियों पर चमके सूरज सा तो क्या।
लकीरों को हाथ की हमें खुद बदलना था।।
सफर में जिन्दगी के जो सुकूं चाहो तुम।
"उस्ताद"के मानिन्द खाली हाथ रहना था।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 23 September 2019

गजल-249:छनक रही

हर कदम के साथ मेरे पायल छनक रही।
लगता है मेरे साथ-साथ तू भी बहक रही।।
यूँ तो तुझसे बिछड़े एक जमाना हो गया। खुशबू तेरे ख्याल की अब तक महक रही।। फूल ही फूल खिले अहसास के आसपास। शबे महताब सी इस अमावस रौनक रही।।आने की बस उम्मीद में बहारों का मौसम।
टोली हर डाल-डाल परिंदों की चहक रही।।
चलते-चलते जो मंजिल के निशां दिखे। निगाहें थके राही की फिर से चमक रही।। होगा आमना-सामना माशूके हकीकी से। दिले धड़कन तेज लो"उस्ताद"धड़क रही।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 22 September 2019

गजल-248:रात दीवाली हो गई

असली-नकली की पहचान मश्किल बड़ी हो गई।
पेट में आजकल तो सबके ही लंबी दाढ़ी हो गई।।
अपने-पराए सभी चाल चलने में गहरी मशगूल हैं।
शतरंज की बिछी बिसात सी ये जिंदगी हो गई।।
सारे चैनल तो दिन-रात कानफोड़ू बहस कर रहे।
काजी जिसे बोलना था बंद उसकी बोलती हो गई।।
किताबें तो खंगाल ली बच्चों ने सारी की सारी।
कुछ हमसे ही देने में रिवायत*की कमी हो गई।।*परम्परा
प्रोडक्ट ही हो गए हों रिश्ते-नाते सभी जब।
एक-दो साल से ज्यादा कहाँ गारंटी हो गई।।
जिस्म से जेहन सभी खुले-बाजार से सजे हैं।
ये इज्जत-आबरू नीलाम सबकी हो गई।।
काम निकल जाए तो फिर कोई पूछता नहीं।
अब नई ये यूज एंड थ्रो की पाॅलिसी हो गई।
आँखों में"उस्ताद"जबसे इश्के-हकीकी* छा गया।*ईश्वरीय
लो हमारी तो दिन होली,रात दीवाली हो गई।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 21 September 2019

गजल-246:छूने में आसमां

छूने में आसमां खड़ी नई मुश्किलें हो गईं।
शायद ज्यादा ही नाजायज चाहतें हो गईं।
रात भर सोया नहीं समझाता रहा उनको।
अजीबोगरीब बच्चों की फरमाइशें हो गईं।।
गलत तू भी नहीं गलत वो भी नहीं जरा सा।
अलग एक मंजिल की लेकिन तकरीरें* हो गईं।।अभिव्यक्ति/बयान
बदल रहे जमाने की क्या दुश्वारियाँ*कहें हम।*मुश्किलें
चुनौतियाँ तो हर दिन खड़ी मुँह बाए हो गईं।।
अब तो हर कोई काबिल"उस्ताद"हो रहा।
फलसफा*झाड़ने की फजूल जरूरतें हो गईं।।*तर्क/ज्ञान
@नलिन#उस्ताद

गजल-247-दुखती रग

दुखती रग जो मैंने हाथ रख दिया था। 
कुछ कहे बगैर वो फफकने लगा था।।
नजूमी हूँ पढ़ पाता हूँ जो चेहरे के तासूर को।
खुदा की इनायत का ये एक छोटा सिला था।।कहें किससे भला तकलीफ और कौन सुने। सभी का हाल-बेहाल यहाँ एक जैसा था।। दफ्न कर नहीं सकते न ही कह सकते किसी से।
दर्दे सैलाब का दरिया रेतीली आँख रिसता था।।
निगाहों में चमक का तबसे अलग ही अंदाज है।
जबसे गुफ्तगू का उससे एक मौका मिला था।
लकीरों में हाथ की दिखते हैं चांद,तारे सभी। हाथ धोकर तभी तो"उस्ताद"पीछे पड़ा था।।

@नलिन#उस्ताद

Thursday, 19 September 2019

गजल:245 -वक्त रंग बदलता है

वक्त भी गिरगिट सा क्या गजब रंग बदलता है।
बुलंदियाँ देता है तो कभी नेस्तनाबूद करता है।।
लाने का मुसलसल भले दिनों का जो दावा करे।
लीडर वो दरअसल अपना ही भला चाहता है।।
एक बरसात ने दिलकश बड़ा माहौल कर दिया।
ये मौसम भी न जाने क्या-क्या गुल खिलाता है।।
अजब रंग नए रोज दिखाती है सियासत हमको।
भरने साहब का टैक्स वो हमसे चंदा माँगता है।।
मरता है आम आदमी तो चुहलबाजी सूझती है उसे।
मिला एक दिन मिलावटी सामान तो नेता बौखलाता है।।
निठल्ला बैठना ही जब उसके नसीब में मढा हो।
जाने फिर क्यों खरीदना वो एक घड़ी चाहता है।।
समय रूकता नहीं ये तो सच है किसी के लिए भी।
मगर बुरा दौर आसानी से कहाँ भला गुजर पाता है।।
गए नहीं लगता बहुत दिनों से हुजूर हंसीन वादियों में।
खेलने शिकार तभी तो उन्हें कश्मीर याद आता है।।
चलेंगी न मगर रंगे सियार सी ये हरकतें तुम्हारी।
"उस्ताद"हर आदमी अब अपना हिसाब मांगता है।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 18 September 2019

गजल:244-दिल समूचा उसका

जिस्म की परवाह नहीं ये नया हो जाएगा।
ये तो बता किस जनम तू मेरा हो जाएगा।।
यूँ तो रहता है हर घड़ी तू साथ हर जगह  मेरे।
मगर यह एहसास सच्चा कब भला हो जाएगा।।
झीना सा पर्दा हटना तो तय है हमारे बीच से।
जानना ये है वक्त इसका कब पूरा हो जाएगा।।
उम्मीद की लौ टकटकी लगा दर पर तेरे जल रही।
क्या यह चिराग इस बार भी यूँ ही फना हो जाएगा।।
बहुत बेचैनी भी अच्छी नहीं यूँ तो उस्ताद। मिटेंगे फासले जब दिल समूचा उसका हो जाएगा।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-243 शहनाईयाँ

होने को हकीकत हर ख्वाब तैयार है।
हुआ उसे जब से उसका दीदार है।।
फिजा में दिख रही है अभी से नायाब छटा। होगा आगे क्या उसे बस इसका इंतजार है।।
कदम दर कदम सांसो का संग सिलसिला चल पड़ा।
लेने को दिलकश आकार ये आशियाँ तैयार है।।
आँखों में उसके नूरअब कुछ अलग ही दिख रहा।
यूँ अभी तो बस शुरू हुआ प्यार का इजहार है।।
राहें अलग-अलग मिल गईं खूबसूरत मोड़ पर।
करने खैरमकदम* लो यहाँ मंजिल भी बेकरार है।।स्वागत
बजने लगी"उस्ताद"दिले दहलीज पर शहनाईयाँ।
नजदीक आ गई बारात कानों में पड़
रही पुकार है।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 17 September 2019

गजल-238: चाहता है

गम और खुशी से अछूता दिखाना चाहता है।
वो तो दरअसल मुझे खुदा बनाना चाहता है।।
समझता हूँ मैं उसकी सारी चालाकियाँ।
करना वो अपना उल्लू सीधा चाहता है।। बेतरतीब बिखरे हैं सभी रंग जमाने के।
गमगुसार*बस उन्हें सजाना चाहता है।।*संवेदनशील
यकीनन बड़ा खूबसूरत है कुदरत के साथ रिश्ता।
खुदगर्ज मगर आदमी इसे दोहना चाहता है।।
मट्टी,आकाश,आग,पानी,हवा से बने हैं हम सब।
वो जाने फिर भला क्यों हमें बाँटना चाहता है।।
जिस्म की बात तो होगी चलो जब तक वो साथ है।
"उस्ताद"मगर नब्जे रूह अब टटोलना चाहता है।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 16 September 2019

गजल-237:आदमी

भीतर जो कहीं से टूट जाता है आदमी।
नाराज तभी किसी से होता है आदमी।।
थक-हार जब तन्हा भटकता है आदमी।
सहारा हर कदम तब ढूँढता है आदमी।।
हर किसी की है यहाँ फितरत अलग-अलग।
कहो तो कब भला ये समझता है आदमी।।
चाहो जो फूल तो उसके काँटे भी चाहना।
ये सोच कहाँ मगर बना पाता है आदमी।।     
शहर दर शहर तलाश करते थक गया सवाब*।*पवित्र कर्म
भीड़ मिली बस उसे कोई न मिला है आदमी।।
जमीं,आसमां बुलन्दियों के झन्डे तो गाड़ दिए।
खुद को भी जीतना था ये भूल गया है आदमी।।
आ जाती हैं जब गले-गले उलझनें नई-नई।
"उस्ताद" की कदर तभी पहचानता है आदमी।।

@नलिन#उस्ताद

234-गजल: बैठ आईने के सामने

बैठ आईने के सामने इबादत करता हूँ।
वो बसा है मुझमें बस ये सच मानता हूँ।।
फंतासी*में बहकने का,जरा भी है शौक नहीं मुझे।*कल्पना
नवाजा जो उसने,बस उस काम से काम रखता हूँ।।
ढूंढू उसे,भला दर-दर भटक कर,क्यों मैं उसे। धड़कनों में अपनी,जब उसे रोज ही सुनता हूँ।
जिंदगी का दस्तूर,असल निभाने की खातिर।
लबों पर हंसी,जेहन में बस सुकून रखता हूँ।।
सुबह हो,शाम हो ये तो बस उसका इख्तियार है।
भला मैं कहाँ इसकी जरा भी फिक्र करता हूँ।।
प्यार और प्यार दुनिया में रहे हर तरफ बस। खुदावंद से महज इतनी मैं दरकार रखता हूँ।।
मुफलिसों का बनके हमदर्द जो उनके आंसू पी सके।
उसे ही उस्ताद दरअसल मैं अपना खुदा चाहता हूँ।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 14 September 2019

पितरों को

पितरों को श्रद्धा-सुमन
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आए हैं पितर दूर से,जरा इनका मान तो कीजिए।
थके-मांदे हैं ये,आप इनका सत्कार तो कीजिए।।
मिलने चले आए हैं ये,प्यार के वशीभूत हो हमसे।
बस भाव के भूखे हैं ये,सो भावांजलि तो दीजिए।।
पाला था इन्होंने हमको,न जाने कितने जतन से।
दिए थे जो संस्कार उनका,थोड़ा तो पालन कीजिए।।
कैसी चल रही  जिंदगी आपकी,जानने को हैं उत्सुक बड़े।
दरियादिली दिखा किसी गरीब की,आप भी मदद कीजिए।।
करुणा,दया,मदद का कभी भी,कोई यूँ तो है विकल्प होता नहीं।
सो इनमें ही रूप नारायण,या कि फिर पितर का तलाश लीजिए।।
आज जो भी हैं हम-आप सभी,पितरों के अति पुण्य प्रताप से।
वो ऋण तो है उनका अतारणीय,पर श्रद्धा से स्मरण तो कीजिए।।
भादो की पूनम से लेकर,आश्विन के घोर अमावस सोलह दिनों।
कम से कम किसी एक दिन,पितरों को अपने श्रद्धा से नमन कीजिए।।
@नलिन#तारकेश

Friday, 13 September 2019

231-गजल:खैरात हो गई

बाद एक मुद्दत जो उससे मुलाकात हो गई। लो उमस भरी रात चुपचाप बरसात हो गई।।
महकता है हर ख्वाब जागने के बाद भी अब तो।
हकीकत की देखो ये नई गजब शुरुआत हो गई।।
दबी थी दिल में जो दुआ एक जमाने से। कबूल होना ये खुदा की करामात हो गई।।
लगे हैं फूल खिलने बंजर जमीं में हर तरफ। प्यार की बड़ी ये दिलों को सौगात हो गई।। हौंसला दिया जो उस्ताद ने चलने का हमें। कामयाबी तो जैसे सदा को खैरात हो गई।।
@नलिन#उस्ताद