Wednesday, 25 December 2019

293-गज़ल उम्र होती है

नौजवानी Happy Christmas to all 
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उम्र होती है यार एक इतराने की।
खुली पलकों में ख्वाब सजाने की।।
टोका-टाकी लाख करे चाहे कोई।
गढ़ती है रोज इमारत फसाने की।।
नशातारी रहती है जिस्म से रूह तक ऐसी।
कहाँ होश है इसे,कदम संभाल चलाने की।।
सूरज,चांद,दरिया सब बांधके मुट्ठी में।
किसे फिक्र रहती भला जीने-मरने की।।
हवा के घोड़े हाँकती,तलाशे-कस्तूरी मसरूफ दिखे। 
"उस्ताद" अजब है कहानी इस नौजवानी की।।
@नलिन#उस्ताद

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