चाटुकारिता परमपददायी (व्यंग लेख)

 



मानव बुद्धिजीवी प्राणी है। जन्म से ही उसकी आंखों में एक नहीं अनेक सपने बसते हैं। करोड़पति, अरबपति होने के। आलीशान कोठियों, फार्महाउसों के। लग्जरी कारों, सुख-संपत्ति, विलासिताओं की प्रचुर सामग्रियों को भोगने के। तो इनको हासिल करना ही उसका उद्देश्य रहता है। भारत जैसे देश में पढ़ाई से, उद्यम से, खेलकूद (क्रिकेट छोड़कर) से इस तरह के सपनों के साकार होने की संभावना रेगिस्तान में पानी मिलने से भी अधिक कठिन है। वैसे भी इन क्षेत्रों के इच्छुक होनहारों या प्रैक्टिकली मतिमंदों की अगर बात करें तो अपने देश में इनकी स्पीशीज (जाति/किस्म) खुदा के फ़ज़्ल से बहुत कम है। अधिकांश लोग दूसरे के कंधों पर बंदूक रख कर दागने में महारत किए रहते हैं। वैसे जिस परमपददायी साधना-सिद्धी की बात मैं कर रहा हूं वह उतनी कठोर, असभ्य सी दिखने वाली साधना भी नहीं है। चाटुकारिता की साधना और सिद्धि तो बड़ी कोमल, मृदु, रसभरी है। इसमें जैसे शिव का सिर से लेकर पैर तक संपूर्ण रूप में जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक शर्करा, मधु आदि से विविध अन्य सामग्रियों/विधियों द्वारा पूजन किया जाता है। पूरे भाव से, तन-मन-धन से उसी प्रकार यह भी की जाती है। उस अभीष्ट व्यक्ति से वरदान पाकर अपने जीवन को कृतार्थ करने हेतु। वैसे कभी-कभी क्या प्रायः यह एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती। जैसे शिव के साथ उसके परिवार और गणों की पूजा अपने अधिक व्यापक हित में की जाती है उसी प्रकार यहां भी उस अभीष्ट व्यक्ति के परिवार, सेक्रेटरी खास चपरासी और ड्राइवर की पंचोपचार या षोडशोपचार जैसा उपयुक्त हो समय, काल, परिस्थिति अनुसार वैसी ही पूजा की जाती है। वैसे यह उतनी भी सरल और सहज नहीं है जितनी पढ़ने में लग रही होगी। दरअसल किताबें पढ़ने से ज्ञानचक्षु खुलते तो सभी बुद्ध हो जाते। वो तो कुछ दिव्यात्माएं होती हैं जो अपने पूर्व जन्मों के संस्कारों/कर्म के बलबूते इस चाटुकारिता के क्षेत्र में झंडे गाड़ती हैं। यह तो जितनी मधुर साधना है उतनी ही क्लिष्ट भी है। जिस ‘क्षुरस्यधारा’ का जिक्र कठोपनिषद करता है भवसागर से तरने के प्रक्रिया के लिए वैसी ही समझदारी, फंूक-फंूक कर चाकू की धार पर नंगे पांव चलने की जरूरत चाटुकारिता की साधना में भी पड़ती है। इसकी साधना में कितने और कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं यह तो एक सिद्ध मुख ही सही-सही वर्णित कर सकता है। यह श्रीफल (नारियल) के उलट बाहर से कोमल प्रतीत होने वाला और अंदर से कठोर फल है। जिसे पचा पाना अच्छे-अच्छों के लिए संभव नहीं है। हां, लेकिन जिन्होंने इसे पचा कर सिद्धि प्राप्त कर ली उनसे अधिक ‘तन-मन-धन’ से सुखी अन्य कोई नहीं। चाटुकार अपने आप में अत्यंत शक्तिशाली प्रजाति है। वह अपनी इस साधना में सिद्धि प्राप्त कर ले तो ‘जल को थल’ और ‘थल को जल’ बना कर प्रस्तुत करने में प्रवीणता हासिल कर सकती है। ऐसी एक कहानी भी प्रचलित है कि एक सनकी राजा की प्रतिदिन की सनक से पीड़ित प्रजा की मौज हेतु कुछ चाटुकारों ने उस राजा को एक दिव्य वस्त्र भेंट किया। दरअसल वस्त्र वगैरहा वह कुछ नहीं था बस एक छलावा था जिसकी विशेषता अत्यंत बढ़ा चढ़ाकर पेश की गई थी। राजा क्योंकि भांग खाए सा ही था सो मान गया और चाटुकारों के कहने पर अपनी अपी दिव्यता को दिखाने प्रजा के सम्मुख अकड़ कर दिव्य वस्त्रों-वस्तुतः नंगे ही निकल पड़ा। सब चाटुकार राजा के सामने उसकी दिव्यता में लगे चार चांद का वर्णन कर रहे थे और मन ही मन प्रजा संग पूरी मौज ले रहे थे। पर एक छोटे सरल और भोले बालक ने ‘राजा नंगा है’ कह कर उसकी दिव्यता का भंडाफोड़ कर दिया। बाद में राजा ने चाटुकारों का क्या किया कहानी में तो वर्णित नहीं हैं पर चाटुकारों के परिवार में प्रचलित मान्यता अनुसार चाटुकारों ने राजा को बहला-फुसला कर उसकी दिव्यता उसे ओढ़ाई रखी और खजाने से उसके एवज में खूब धन उगाहा। पर लेखक इस तरह के जोखिम न लेने की सलाह देता है जब तक इस क्षेत्र की पद्मश्री या उच्च पुरस्कार उसे न मिल जाएं। वैसे तो लोग अब बड़े सयाने हो गए हैं। इस तरह के पुरस्कार लौटा कर भी चाटुकारिता कर लेते हैं।
वैसे इसके सिद्ध साधक इसमें शामिल रिस्क फैक्टर की बहुतायत से आगाह करते हैं। असल में इसमें तय नहीं होता कि व्यक्ति विशेष जिसकी हम चाटुकारिता करने जा रहे हैं और जिसे फिलहाल हम बॉस, माईबाप कर संबोधित करेंगे हमारी किस बात से कब हत्थे से उखड़ जाए और कब लाड़ में अपने बगल में बैठा ले। फिर चाहे बातों का संदर्भ दोनों ही समय एक सा ही क्यों न रहे। बहुत मंझने के बाद यानी ढेर सारे अनुभव के बाद ये बातें समझ में आती हैं। किस तरह से अपनी ही कही बात को साहब के अनुकूल बनाना है यह भी बेहतर आना चाहिए। अभी जैसे कहा कि साहब कभी लाड़ में अपने बगल में बैठाना चाहे या कभी अपनी उतरन कमीज, पैंट, जूता आदि देकर आशीष मुद्रा करे तो आपको अच्छी तरह से मालूम होना चाहिए कि इसमें ढेर सारे डूज़ एंड डोंट्स है। अर्थात क्या करने योग्य है क्या नहीं। वैसे तो इसकी लिस्ट काफी लंबी है और इस पर  एक ‘चाटुकारिता महापुराण’ तो लिखना शेष है पर क्योंकि इस फील्ड के लोग बड़े घुन्ने यानी घिसी रकम होते हैं तो वो अपने अनुभवों को साझा बमुश्किल ही करते हैं। तो खैर जितना मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञान हुआ है उतना आपसे शेयर कर रहा हूं। जैसे बगल में बैठाए जाने पर भी वहां न बैठना बल्कि तुरंत चरणों पर बैठना बेहतरीन भविष्य बनाएगा। वहीं कमीज के बजाय पैंट, पैंट के बजाय जूते लेना कहीं श्रेष्ठ है। भरत राम जी की चरणपादुका से कितनी यशकीर्ति के भागीदार बने यह किससे ढका छुपा है। ये अलग बात है उनकी भावना अलग थी पर भावना अलग-अलग होने पर भी कभी-कभी परिणाम समान हो सकते हैं। अतः पौराणिक, धार्मिक, सामाजिक आदि आख्यानों से सीख लेते रहनी चाहिए। आपको कूप-मंडूक बन कर काम नहीं करना है। हां उसे नए जमाने से मिला कर फ़्यूजन बना कर पेश करें फिर चाहे कितने ही कंफ्यूजन रहे आपकी गाड़ी। एक बार चल पड़ी तो चल पड़ी। फिर किसकी हिम्मत है ‘आपकी सफलता आपने किस तरह से पाई’ यह पूछने की।
वैसे शुरू-शुरू में इस फील्ड में सफलता सुनिश्चित करने हेतु बड़े से बड़ा त्याग करना भी आना चाहिए। उसके लिए दिल मजबूत होना चाहिए। यूं भी इस फील्ड में अब गलाकाट प्रतिस्पर्धा पहले से कहीं और तीव्र हो गई है। अब तो लोग साहब की (वो साहिबा भी हो सकती है) खुशी के लिए कई कीमती, अनमोल सामग्रियों के साथ ही साथ अपने तन-मन-धन को सर्वस्व अर्पित करने के लिए प्रस्तुत रहते हैं। कई-कई विरले साधक तो अपनी जर, जोरू, संतान को भी निःसंकोच साहब की प्रसन्नता हेतु समर्पित करते रहते हैं। इसका लाभ भी उन्हें और उनके परिवार को बहुतायत में मिलता है। इसमें कतई संदेह नहीं पर इसमें अपने ‘जमीर’ को पूरी तरह ‘देश निकाला’ देना पड़ता है। यह आसान काम तो नहीं। स्थित प्रज्ञ साधक ही यह कार्य कर सकते हैं। लेकिन दिखाई देता है। सौभाग्य से इस कलिकाल में ऐसे साधकों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। वैसे भी यह विकास की 21वीं सदी में होने वाली दौड़ है। कुछ लोग इस दौड़ में न शामिल होने के लिए अभिशप्त आजकल की भाषा में होते हैं। तो ऐसे लोग दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंके जाते हैं। यद्यपि अव्यावहारिक और भोले होने से उन्हें यह समझ नहीं आता कि यह दंड उन्हें क्यों दिया जा रहा है? सो बार-बार चाटुकारिता के वरद हस्त के पुण्य प्रभाव से मृत्युकाल में भी पुनः-पुनः कायाकल्प कर ‘नवयौवन’ प्राप्त करने वालों को वो बड़ी जिज्ञासा से, फटी-फटी आंखों से आंख मलते हुए इस प्रक्रिया को देखने और समझने की कोशिश करते है। पर निर्बुद्धियों को जो जन्म से अंधे हों उन्हें अपना नाम ‘नयनसुख’ रखने पर भी क्या हासिल होगा भला? सो ऐसी दुर्लभ प्रजाति के संरक्षण हेतु लेखक यह लेख लिख रहा है। आशा है इसे पढ़कर जो उनके हित हैं उन्हें चेता कर ‘चाटुकारिता की महिमा’ से अवगत कराएंगे और उनके लिए सरकारी या गैर सरकारी ‘चाटुकारिता प्रशिक्षण’ शिविर लगवाए जाने को आंदोलन, धरना, प्रदर्शन आदि कार्य करेंगे। इससे इन गरीब, शोषित वंचितों की दहलीज पर थोड़ा-थोड़ा ही सही लालिमा लिए सुंदर भविष्य का सूरज। प्रकाश की किरणों को पहुंचा सकेगा सो अब का चुप साधि रहा बलवाना आइए चाटुकारिता का बिगुल बजा, गाल बजाएं और अपने-अपने ‘अभीष्ट व्यक्ति’ जिससे अपना स्वार्थ सधता हो फिर वो साहब हो, साहिबा यानी मैडम हो अधिकारी हो, नेता हो, सांसद हो, सभासद आदि कोई भी लग्गू-भग्गू क्यों न हो उसके चरणों में चाटुकारिता से भरा साष्टांग प्रणाम करें। और अपनी हैसियत में जितना कुछ हो परिवार सहित तन-मन-धन न्यौछावर करें। पुनः-पुनः स्मरण करना चाहूंगा और पूर्ण आश्वस्ति भी दूंगा कि यह घाटे का सौदा कतई नहीं है। अतः पूरे भाव से चाटुकारिता की चाशनी में जलेबी सा गोल-गोल घुमा कर अपना पूरा शरीर शर्करा से भर लें। जिससे साहब, आपके माईबाप उसका स्वाद लें तो हल्के से मुस्कुराते कहें क्या बात है और आपके सभी प्रतीक्षित कार्य दुष्कर, दुःसाध्य होते हुए भी तत्काल फलदायी हो जाएं। जय हो चाटुकारिता की। 
अंत में चाटुकारिता के क्षेत्र में नए शामिल हुए और इसमें शामिल होने के इच्छुक लोगों के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स के साथ इस लेख को समाप्त करना चाहता हूं।
1. आपको लचीला होना होगा ऐसे मानो आपके पास मेरळदंड हो ही नहीं। जमीर जैसी वस्तु विस्फोटक है उसे दूर फेंक कर सेवा करें।
2. क्षमा मांगने में संकोच छोड़ना होगा। यह काम बार-बार किया जा सकता है।
3. बॉस इज ऑलवेज राइट, बॉस हमेशा सही होता है यह पुरानी कहावत कंठस्थ कर लें और बहस कतई न करें।
4. बॉस के ख़ास लोगों से कोई पंगा न लें। फिर वह चाहे आपसे कितना ही जूनियर चपरासी, ड्राइवर आदि ही क्यों न हो।
5. साहब/मैडम का कुत्ता या मैडम/हबी को तो अपना परम गुरळ मानकर पूरी इज्जत करें। साहब/मैडम तो साक्षात परमेश्वर हैं ही।
6. उनकी प्रत्येक पसंदीदा चीजों/रळचि के क्षेत्रों को ताड़ने और संजीवन बूटी की तरह उसका पूरा पहाड़ लाने में कोई कसर न छोड़ें।
जैसा पहले भी कहा इस सबकी सूची लंबी है और वर्षों के अनुभव से आती है तो खैर उसकी चिंता से मुक्त, सच्चे मन से सेवा में लगे रहें। अगर आपने सही आदमी को पकड़ा है तो आपकी साधना थोड़े ही दिनों में रंग लाएगी और आपके पास वह सब होगा जिसको भोगने के लिए आपने इस धरा पर जन्म लिया है और इससे न केवल आपका बल्कि आपके परिवार, कुल, इष्टमित्रों सभी का तेजी से विकास होगा और विकास जिस तेजी से (आपकी समर्पण की निष्ठा के आधार पर) होगा निःसंदेह उतनी ही तेजी से आपके पीछे भी चाटुकारों का दल आगे-पीछे डोलेगा। यही आपकी वास्तविक सफलता की निशानी होगी।

No comments:

Post a Comment