Wednesday 22 September 2021

396: गजल- मोबाइल मीनिया

मोबाइल मीनिया 

ये कौन सा खिलौना लग गया है हाथ हमारे।
इशारों पर अब जिसके हम खुद ही हैं नाचते।।

आए-जाए कोई या बैठे बगल सब अपनी बला से।
हम तो बस लुत्फ उठा रहे घर में बैठ जमाने भरके।।

सूझता अब कुछ नहीं रात है कि दिन पसरा हुआ। 
लगता यहीं सारी दुनिया आ गई हमारे शिकंजे में।।

अपनी अलग एक दुनिया बसा ली सबने अब तो।
हो मगन उसी में सक़ते के आलम* डूबे दिख रहे।।
*समाधि की अवस्था

 गूगल बाबा ने "उस्ताद" के इल्म को ठंडा कर दिया।
अब तो आता ही नहीं कोई उनके हाथ-पांव दबाने।।

@नलिनतारकेश

Tuesday 21 September 2021

395: गजल- दुनिया कहाँ समझ पाया हूँ

ये दुनिया कहाँ अब तलक समझ मैं पाया हूँ।
अटक तभी तो ना,हां की मंझधार जाता हूँ।।

भूलभुल्लिया से हैं रास्ते यहाँ सब तरफ देखिए।
बाहर निकलते भी दामन कहीं फंसा लेता हूँ।।

हर तरफ चकाचौंध रंग-बिरंगी अजब-गजब है यारब।
ख्वाबों के बिखरे कांच जब-जब टकटकी लगाता हूँ।।

मशक्कत कितनी करी,हर बार बहानों की फौज से। 
मगर है जन्नत यहीं,कहाँ इसके सुबूत जुटा पाया हूँ।।

सिवा तन्हाई के कौन सी शय देती है सुकून कहो तो।
पूछता हूँ "उस्ताद" से मगर हर बार खामोश पाता हूँ।।

@नलिनतारकेश

Monday 20 September 2021

394: गजल- फैसले कौन खरे उतरे?

लीजिए दो दिन हुए भी नहीं जलजले से निकले।
जनाब बौछार की फिर से फरमाइश करने लगे।।

गर्मी,सर्दी,बरसात ये तो आयेंगी जिंदगी में आपकी।
डरते भला क्यों हैं फिर आप इम्तहानों से इन हल्के।।

दर्द के जाम हलक से उतरने पर भर देते हैं खुशी।
सीखिए जिन्दगी में सबर और समझौते भी करने।।

कारखानों की तरह नहीं हांकिए हसीन जिंदगी को।
कठपुतली बनाके क्यों मासूमियत हैं इसकी छीनते।।

"उस्ताद" छोड़ दिया कीजिए कुछ तो परवरदिगार पर भी।
वैसे कहिए फैसले आपके अब तलक कौन से खरे उतरे।।

@नलिनतारकेश

Friday 17 September 2021

393: गजल- किस्मत गले लगायेगी

यार के दीदार को जब लगन सच्ची लग जायेगी।
कहो कौन सी भला चट्टान जो तुझे रोक पायेगी।।

प्यार तो है मासूम शय* गुलों से भी ज्यादा मुलायम।*वस्तु
जो आए अपने पर तो देखना यही सब को डरायेगी।।

हैं राहें रपटीली बड़ी जो मंजिल को उसकी तरफ जातीं। रखना हर कदम को फूंक-फूंक वरना तुझे यही गिरायेंगीं।

पत्थरों को भी जैसे लहरें छूकर बना देती हैं शालिग्राम*। जज्बात निकले दिल से गहरे तो किस्मत गले लगायेगी।।
*भगवान 

चाह के तो देखिए पूरी शिद्दत से एक बार उसे"उस्ताद"। कायनात भी भला कहाँ आपकी हसरत ये रोक पायेगी।।

@नलिनतारकेश

Thursday 16 September 2021

392: गजल- उस्ताद जी सोमरस गटक रहे

पुरजोर जोश में कल रात से बादल बरस रहे।
खिले तन-मन सभी जो हाल तक झुलस रहे।।

कहो पता था किसे गजब ऐसा भी हाल हो जायेगा।
देख सैलाब पानी का सब रुकने को इसके तरस रहे।।

देता है छप्पर फाड़ के खुदा जब अपनी पर आए तो।
मुँह छुपाए खड़े हैं सभी कल तक जो थे तंज कस रहे।।

तरबतर हो गए घर की दहलीज लाँघी जो उन्होंने।
मुसाफिर तो हर दिन के जैसे बस यहाँ परबस रहे।।

उठाना अंदाज़े लुत्फ हर आदमी का तो जुदा रहा है। 
देख मौसम सुहाना "उस्ताद" जी गटक सोमरस रहे।।

@नलिनतारकेश

Wednesday 15 September 2021

391: गजल- मौसम हुआ गुलाबी

मौसम हुआ गुलाबी तो ग़ज़ल ये लिखने लगा।
जो याद आई तुम्हारी तो सजदा मैं करने लगा।।

बादलों से बूंदे नाचती आकर मुझे जो छू रहीं।
हूं तुम्हारे बहुत पास अहसास सच होने लगा।।

परिंदों की चहचहाहट आँगन में कूकती है सुरमई।
लो तुम्हारी आवाज भी अब हर ओर मैं सुनने लगा।।

पत्ते हरे दरख़्त के अंगड़ाई ले जवां हो गए सारे।
खयाल में डूबा इस कदर कि तुम्हें ही देखने लगा।।

अब तो हवा भी मनचली हो साथ बहा ले जा रही मुझे। "उस्ताद" खुशबू से उसे पता तेरा शायद मिलने लगा।।

@नलिनतारकेश

Tuesday 14 September 2021

राधाष्टमी की भक्तों को बहुत बहुत बधाई

राधाष्टमी की हार्दिक बधाई सभी भक्तों को
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कृष्ण को राधा ने जबसे आत्मरूप पूर्णतः स्वीकार कर लिया। 
भक्त का अपने ऐसे प्रभु ने बनना सेवक स्वीकार कर लिया।।

अब तो राधा के बस भ्रू-विलास का ही अनुसरण करते हैं प्रभु जी।
जगन्नाथ होकर भी भक्त के इशारों पर नाचना स्वीकार कर लिया।।

अब बिना राधा के कहो कौन सुनने को तैयार है बाँसुरी श्याम की।
कृष्ण को ही जब से राधा ने अपना प्राणाधार स्वीकार कर लिया।।

हंसी,ठिठोली या रूठ कर जिद खुद को मनाने की करती हों राधारानी।
कृष्ण ने बेहिचक हर प्रस्ताव राधा का चुपचाप से स्वीकार कर लिया।।

मृदुल "नलिन" चित्त भक्तों को जबसे ब्रजेश्वरी का ज्ञात ये सामर्थ्य हुआ।
कृष्ण को छोड़ सबने तबसे ही राधा को अपना भगवान स्वीकार कर लिया।।

                      ।। जय जय श्री राधे ।।
@नलिन तारकेश

390: गजल- हिन्दी का परचम फहराया जाए

390: गजल- हिन्दी का परचम फहराया जाए 

जुबां में आओ अब तो यूँ शहद घोला जाए।
मादरे जुबां में ही प्यारी गुफ्तगू किया जाए।।

जेहन में ख्वाब बुनते हैं हम जिसके सहारे।
लबों से उन्हीं लफ्ज़ों को गुनगुनाया जाए।।

गुलामी की जंजीरें हमें अब तो तोड़नी होंगी।
जुबां को अपनी हर हाल तरजीह दिया जाए।।

यूँ तो अच्छा है कि जानिए जितनी भी जुबानें। 
मगर क्योंकर अपना ककहरा भुलाया जाए।।

उर्दु ये अपनी मौसी बनी है हिन्दी के ही चलते।
चलो ये राज असल अब सबको बताया जाए।।

जो जोड़ती है दिलों को गहरे जड़ों से "उस्ताद"।
अपनी बोली का उसी आओ परचम फहराया जाए।।

@नलिनतारकेश

Monday 13 September 2021

389: गजल- दामन ना छोड़िए

दिल में मस्ती औ जुनून आँखों में अपनी घोलिए। 
इनसे मिलने की कवायद इस तरह शुरू कीजिए।।

खायेंगे ये तो भाव बहुत ही हसीं सबसे ज्यादा जो ठहरे। 
हर हाल अब आप इनके नखरे उठाना सीख लीजिए।।

यूँ ना आसानी से गिरफ्त में प्यार की आयेंगे सरकार ये। दिल खोल उड़ेल अपना सब कुछ दरियादिली दिखाइए।।

हैं चाहने वाले एक नहीं इनके हजार मारे-मारे फिर रहे। दूसरों से अलग हटके जरा रूमानियत अपनी जताइए।।

भरम में हजार डाल जुल्फें छिटक बच के निकल जाएंगे। किसी भी कीमत मगर छोड़ने की भूल दामन न सोचिए।।

ये तो हैं उस्तादों के भी बड़े "उस्ताद" जानिए कसम से।
जनाब यूँ मुगालते में भी कभी इनको हल्के में न लीजिए।

@नलिनतारकेश

Saturday 11 September 2021

388: गजल- अपना एक गांव बसा लीजिए

अपने भीतर एक गांव अपना बसा लीजिए। 
खुशहाल जिंदगी का मंजर यूँ सजा लीजिए।।

दौर बड़ा अजब अफरा-तफरी का है आया।
कश्ती किसी भी तरह अपनी बचा लीजिए।।

साजिन्दे साथ दें या ना दें ये उनकी मर्जी।
तरन्नुम में आप तो बस पूरा मजा लीजिए।।

गुलशन में हैं खिले गुल यूँ तो किसम-किसम के।
जो लगे कोई अजीज उसे अपना बना लीजिए।।

यूँ ही नहीं "उस्ताद" हर किसी को नसीहत बांटिए।
जरा तो होशोहवास खुद का भी लेखा-जोखा लीजिए।।

@नलिनतारकेश

Friday 10 September 2021

387: गजल-मां कहाँ अब लोरी सुनाती है

बिस्तर पर जाते ही नींद नहीं आती है। 
मां कहाँ आकर अब लोरी सुनाती है।।

बीत गया बचपन जो जमाने के पैमाने से।
अभी भी उसकी याद कुछ गुदगुदाती है।।

आईने में देखा तो उम्र कुछ ढलती दिख रही।
निगाह मगर आज भी उतनी ही शरारती है।।

यारी-दोस्ती,इश्क-मुश्क को याद अब क्योंकर करें।
बिन बुलाए मेहमान सी वो तो जेहन आ ही जाती है।।

आँखों में काला चश्मा चढ़ा भी लें तो क्या हासिल।
सर चढ़के मट्टी की महक राज सब गुनगुनाती है।।

तजुर्बा बढ़ा तो सवाल भी हर कदम जिरह करने लगे।
सो कहो "उस्ताद" कहाँ पहले सी नादानी निभती है।।

@नलिनतारकेश

Thursday 9 September 2021

386:गजल -निगाहों से

जरूरी नहीं है जुबां से ही सब बोला जाए।
आओ निगाहों से कभी तो कुछ सुना जाए।।

लफ्ज़ निकलते हैं तो कुछ बेसुरे भी होते हैं।
सो चलो अब आंखों से ही सुरमई हुआ जाए।।

दिल समझता है ज्यादा गहराई से ईशारों का ककहरा। 

हुजूर दावा ये आजमाइश अब करके देख लिया जाए।।

नैन हों काले,भूरे जैसे भी,होने लगते हैं गुलाबी।
सामने जो अपने महबूब का दीदार किया जाए।।

कहो कौन सी अदा जो निगाहें नहीं फुसफुसाती हैं।
बस जरूरी है इन्हें सलीके औ सुकून से पढ़ा जाए।।

निगाहों के रस्ते ही मिलकर दिल से दिल धड़कते हैं। 

इससे ज्यादा कहो और क्या "उस्ताद"कहा जाए।।

Wednesday 8 September 2021

385: गजल-- बन के बच्चा

जलवों का भला तेरे  जिक्र कहो कैसे किया जाए।
आफताब* ए रोशनी क्यों अब जुगनू दिखाया जाए।।
* सूर्य 

पास होकर दूर और दूर होकर भी पास है हमसे।
अबूजा है बड़ा तू किसी को कैसे समझाया जाए।।

कहते हैं आलिम सभी बसता है दिल में ही हमारे।
है फुर्सत किसे मगर जो धड़कनों को सुना जाए।।

रवायत को जमाने के हिसाब से खूबसूरत मोड़ दो।
जरूरी नहीं ये कि हर बात के लिए बस लड़ा जाए।।

बहुत हो गया गुरूर हमें सिर पर सफेद बालों का अपने।बनके बच्चा आओ जरा फिर से "उस्ताद" रहा जाए।।

@नलिनतारकेश

Tuesday 7 September 2021

384:गजल- अना को दे शिकस्त

अना*को दे शिकस्त अब गुरूर आ रहा है।*स्वाभिमान 
 जमाने में चलन ये नया बहुत छा रहा है।।

जिसे देखिए वो कहे खुद को खुदा आजकल।
आईना भी गैरत* से खुद ही चटक जा रहा है।।*शर्म 

हर तरफ बस होड़ है दौलत,शोहरत कमाने की।
हथेली में अनजान वो अपनी अंगारे उगा रहा है।।

फूल,चांद,तारे,दरिया से कहो तो किसे प्यार है।
हर शख्स तो बस यहाँ जमीं बंजर बना रहा है।।

हुकूमत काबिज़ रहे ता उम्र बस खूं से रंगी चाहे।
खतरा सिर पर तालिबानी सोच का मंडरा रहा है।।

अमन का पैरोकार बताया था जिसने खुद को सदा।
इंसानियत को "उस्ताद" वही आज दफना रहा है।।

@नलिनतारकेश

Saturday 4 September 2021

383 - गजल:गुफ़्तगू ए दिलदार

तबले की थाप संग जुगलबंदी झंकार ए सितार हो रही। अपने महबूब से निगाहें जबसे मुद्दतों बाद चार हो रही।।

दिल ए आसमां में इंद्रधनुषी रंग बिखर गए हैं हर तरफ। देखिए उनसे पहली ही मुलाकात कितनी शानदार हो रही

परिंदे चहचहाने लगे अरमानों के फिजा में घोलते शरबत।
यूँ अभी तो शुरुआत भी नहीं गुफ्तगू ए दिलदार हो रही।।

कदम चलते हैं कभी तेज-तेज,तो कभी सहम जाते हैं।क्या कहेंगे,कैसे कहेंगे बस यही सोच हर बार हो रही।।

लबों पर उनका नाम दिल में जुनून लिए फिरते हैं अब तो। बनाने उन्हें "उस्ताद" अपना लगन हद से पार हो रही।।

@नलिनतारकेश

 

Friday 3 September 2021

382 :गजल - बैठो तो सही

किसको पता तैरता ये खत मेरा किधर जाएगा।
भटकेगा यूँ ही उम्र भर या हाथ चारागर* जाएगा।।*चिकित्सक 
उतना ही मुट्ठी भरो जितना संभाल सको तुम।
यूँ भी सब रेत है यहाँ कुछ देर बिखर जाएगा।।

पैसे तो कमा लिए मगर सुकून गवां बैठे लोग।
बटोरने वही अपने गाँव ये सारा शहर जाएगा।।

जो काबू कर सको दिल को अगर तुम अपने।
देखना जहां हांकोगे हमारा वहीं पैकर* जाएगा।।*जिस्म 

बैठे जो रह गए महज तकदीर के ही भरोसे हम।
मिला मौका बगैर तदबीर चुपचाप गुजर जाएगा।।

कुछ देर बैठो तो सही "उस्ताद" के आस्ताने में जरा।
कसम से देखना मिजाज फिर और भी निखर जाएगा।।

@नलिनतारकेश