Wednesday 31 August 2022

460: ग़ज़ल

ख्वाबों का तिलिस्मी काजल लगा लो आँखों में।
मुस्कुराना तुम भी सीख जाओगे मुश्किलों में।।

गंडे,ताबीज,चारागर की जरूरत ही न पड़ेगी तम्हें।
जो देखोगे असल वजूद अपना खुद की निगाहों में।।

रूप,रंग,किरदार जाने कितने बिखेरे हैं दुनिया में।
मौत ही मगर हमको सच्ची लगी सारे छलावों में।।

देते हैं सदा* जब दिल से उसको  जलजलों में घिरके।आता है वो मसीहा बनके  बचाने हमको मुसीबतों में।।
*आवाज 

मिली जो कहीं "उस्ताद" निगाहें माशुके-हकीकी* से।*खुदा
धरी रह जाएगी सारी ये तुम्हारी मयकशी* मयकदों** में।। * शराब पीना     **शराबखाना

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday 30 August 2022

459:ग़ज़ल

दिमाग ज्यादा लगाने की जरूरत नहीं है।
खुश रहने को यार ये कवायद जरूरी है।।

आलिम-फाजिल बनने से भी बात बनेगी नहीं। 
समझना जिंदगी आसान नहीं बड़ी पहेली है।।

किसी भी चौखट पर सजदा थोड़े से फायदे को। 
जनाब ये आदमी की फितरत तो बहुत पुरानी है।।

आओगे कभी तो तुम तकदीर में हजार रंग भरने। 
बस इसी उम्मीद में दरअसल जिन्दगी चल रही है।।

तुझमें मुझमें है फर्क कहाँ बता तो "उस्ताद" मेरे।
दिलों में जब हमारे एक दूजे की तस्वीर छपी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 




458: ग़ज़ल

न उगलते बनता है न हमसे निगलते बनता है।
बड़ी पशोपेश में ये जिंदगी का सच रखता है।।

वो मुझसे रूठके कहीं दूर जा छुपा बैठा है।
मगर बताया ही नहीं क्यों खफा हो गया है।।

चलो हथेली में सरसों भी उगा लेंगे तेरे लिए। 
पर पता तो चले आंखिर हमें करना क्या है।।

बियाबान जंगल में बस टटोलते हुए बढ़ रही जिंदगी।
हाथ पर हाथ धरे भला कब तक कौन बैठ सकता है।।

भूत,प्रेत वहम है चलो हमने ये भी मान लिया।
डर तो मगर अब अपने साए से लगने लगा है।।

दिखाना ही पड़ेगा "उस्ताद" अब किसी पीर,फकीर को।
अगड़म-बगड़म,बेसरपैर की जाने क्यों रोज लिखता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 28 August 2022

457:ग़ज़ल

है इश्क मेरा रंग ला रहा धीरे-धीरे।
निगाहों में चढ़ रहा नशा धीरे-धीरे।। 

बंधे घुंघरू पाँवों के हैं छनछनाने लगते।
गली में उसकी जब भी घुसा धीरे-धीरे।।

यूँ तो अमावस की रात थी काली,घनी बड़ी।
किया जमीं पर सितारों ने उजाला धीरे-धीरे।।

है होश कहाँ बेखुदी का आलम है छाया।
मुहब्बत में तेरी भूला हूँ दुनिया धीरे-धीरे।।

जब कभी सताते हैं दुनियाभर के रंजोगम मुझे।
बांसुरी होंठों से लगी तेरी सुनता सदा धीरे-धीरे।।

रब चाहे तो "उस्ताद" हर चाह होती है पूरी। 
मस्ती में तभी तो हूँ ग़ज़ल लिखता धीरे-धीरे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Saturday 27 August 2022

किससे कहूं

किससे कहूं..........
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सुलगते हुए प्रश्नों की अंतर व्यथा किससे कहूं।
छांव में धूप के एहसास की बात किससे कहूं।।

गर्म रेत पर जलते कदम जो दिख रहे बढ़ते हुए।
बनेंगे यही दरिया रिसते हुए छाले किससे कहूं।।

जुल्फें मेरे महबूब की बिखरी हैं जमीं से आसमां तक।
 उम्र कट जाएगी सारी सुलझाने में गांठें किससे कहूं।।

शीतल झरना जो अधरों को मीठा लग रहा है मेरे।
चीर कर कितने पर्वत शिखर आया है किससे कहूं।।

आसमां सी बुलंदियों छू लेना तो है आसान फिर भी। चुटकियों में मगर फिसल जाते हैं कदम किससे कहूं।।

काले घने स्याह बादलों ने अंधेरा है कायम किया हुआ।
हटेगा यही एक रोज  निकलने से सूरज के किससे कहूं।।

नलिनतारकेश

Friday 26 August 2022

456:ग़ज़ल

मुश्किलें सबकी अपनी-अपनी देखो मुख्तलिफ बड़ी हैं।
किसी को रात में नींद तो किसी को दिन में चैन नहीं है।। 

हीर-रांझा,लैला-मजनू से किस्सों की बात छोड़ो।
तब से अब तलक तो बहुत दुनिया बदल चुकी है।।

सूरज,चांद,सितारे आकाश में बदहवास हैं सारे।
इस जहान से बढ़कर बेचैनियां ऊपर बढ़ गई हैं।।

फासले हैं तो अब करें भी तो क्या करें कहो।
जमाने के बदले हुए चलन की सच्चाई यही है।। 

फटकता नहीं "उस्ताद" घर में कोई भी किसी के। 
जब तलक हद से ज्यादा मजबूरी ही न वो बनी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday 25 August 2022

455: ग़ज़ल

दर्दे चाशनी में डूबे जज़्बातों का सामना रोज करता हूँ। यारों का बस वही गम ग़ज़ल में ढालकर लिखता हूँ।।

जाने क्या बात है हर कोई करता है गमे इज़हार मुझसे। क्या करूँ बस इसे नेमत समझ चारागर भी बनता हूँ।।

बरसात होती है जब भी कभी झूमकर रंजोगम की। 
गुलों को बगीचे में अपने दिल के खिला देखता हूँ।।

चोली-दामन सा रहा है साथ अवसाद,कह़कहों का।
आयेगा तो सही कुछ देर ठहर दूसरा भी जानता हूँ।।

दर्द यूँ तो क्या कम है "उस्ताद" खुद अपनी झोली में।
कलेजे उठता है बवंडर तो सुन अपना भूल जाता हूँ।। 

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday 24 August 2022

454: ग़ज़ल

अमां आओ यार जरा देख भी लो नजारे।
जमीं से आसमां बिखरे जो हैं ढेर सारे।।

छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ तलाशो।
बड़े मुद्दों को रखो जरा तुम किनारे।।

बमुश्किल बारिश झमाझम हो रही है।
आओ जरा छत पर खुलकर नहालें।।

गमों से पाला तो पड़ना है हर रोज तय।
जरा दे जुम्बिश लबों को खिलखिलाएं।। 

जिंदगी एक ढर्रे पर चलती नहीं फॉर्मूले सी।
जोड़ना,घटाना "उस्ताद" चलो भूल जाएं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday 23 August 2022

453: ग़ज़ल

जिंदगी का साथ यूँ तो निभाता रहा खामख्वाह। 
मगर अफसोस भी कभी नहीं हुआ खामख्वाह।।

गजब अफरा-तफरी का माहौल है छाया हुआ। 
ये सोच क्यों ज़ाया करूं वक्त भला खामख्वाह।।

बिछुड़ ही गए हैं जब हम किसी मोड़ पर आकर। 
अब वो लम्हे याद करके तो है रोना खामख्वाह।।

मौज में हर घड़ी दिखे बस ताजगी लिए दरिया।
बहते हुए कहाँ कुछ भी है सोचता खामख्वाह।।

जब तलक अमल में गहरे चस्पा नहीं होती बातें।
है किताबों को "उस्ताद" दोहराना खामख्वाह।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday 22 August 2022

452:ग़ज़ल

किसी को भी यूँ तो खौफ में रखना अच्छा नहीं है।
बेवजह मगर किसी को भी सताना अच्छा नहीं है।।

अगर फेंकोगे पत्थर तो आएंगे एक रोज तुम्हारे ही पास।
इल्ज़ाम यूँ हर घड़ी आसमान पर थोपना अच्छा नहीं है।।

दिले आईने में जरा अपना भी कभी अक्स देखा करो। 
गैरों पर यूँ बात-बेबात उंगलिया उठाना अच्छा नहीं है।।

देखो था न अपने ही हुनर पर नजरस़ानी का वहम बहुत तुमको। 
मान लो यार अब ये भी कि ज्यादा इतराना होता अच्छा नहीं है।।

हम तो पीते रहे हैं उस्ताद सब्र का जाम मुद्दतों से।
हो गया बहुत अब इसे और आजमाना अच्छा नहीं है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

451: ग़ज़ल

चलो जो हुआ अब तक सब भूल जाएं।
गीत मिलकर प्यार के फिर आज गाएं।।

कुछ खताएं हमसे हुई कुछ शायद तुमसे भी।
रात बीती,बात बीती अब बतंगड़ क्यों बनाएं।।

जिंदगी झूले सी कभी नीचे तो कभी ऊपर पैंग भरती। भरकर गलबहियां अब तो हम लबों से लब मिलाएं।।

दो रोज की बमुश्किल नसीब से मिली है हमें जिंदगी।
गिले-शिकवे भूलके सारे इत्र सा आओ इसे महकाएं।।

मुहब्बत नियामत है खुदा की बड़ी ही पाक जानो।
तंगदिली छोड़ "उस्ताद" हम चलो खिलखिलाएं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 21 August 2022

450:ग़ज़ल

तेरा जब कभी भी नाम लेता हूँ।
खुद पर बड़ा एहसान करता हूँ।। 

हैं हर जगह तेरे चाहने वाले तो बहुत।
जान कर भी मगर अनजान रहता हूं।।

प्यार मोहब्बत इश्क यह सब नाम तेरे हैं।
भला कहाँ ये बात कभी भूल सकता हूँ।।

खुश्बू फिजाओं में बस सूंघकर मैं तेरी।
दिले तसल्ली आखिर पा ही जाता हूँ।।

तू मिले या न मिले पाए उस्ताद मुझे कभी।
दिन-रात हर घड़ी बस ख्वाब तेरे ही देखता हूँ।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday 20 August 2022

449:ग़ज़ल

 जाने वाले तो चले जाते हैं चुपचाप छोड़कर।

रह जाते हैं हम यहाँ बेबस बस हाथ मलकर।। 


बुजुर्गों के साए बरगद की घनी छांह से हमारे।

हर कदम जो रखते कड़ी धूप से हमें बचाकर।।


अतिथि कोई रहा ही नहीं जो आए बिन बुलाए।

इतराइए नसीब पर जो आ जाए कोई बुलाकर।।


कुदरत भी रंग बदल रही है देख अब हमारा चाल-चलन। गरजते हैं बादल कहीं तो बरसते है कहीं अलग जाकर।।


कौन बनेगा भला आजकल कहो किसी का यहाँ ज़मानती।

"उस्ताद" खुद से ही चली हैं जब हमने हर चाल छुपाकर।।


नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday 19 August 2022

जीवन-मंथन तब मिलता मक्खन

जीवन-मंथन तब मिलता मक्खन 
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कहीं कनक-घट गरल अपार भरा है।
कहीं मृण-भांड पीयूष पटा दिखता है।
हे परमेश्वर सारा मायावी संसार ये तेरा। 
उलटबांसी सा सच में अबूझ बड़ा है।।

कहीं विलास का उत्कर्ष बड़ा है।
कहीं खाद्य का अकाल पड़ा है।
दो दिन का यह दुनिया का मेला। 
हर पल अद्भुत रोमांच सना है।।

कहीं नवागत का मधुर राग सुना है।
कहीं विछोह का शोक रिस रहा है।
आवागमन के रहस्यमय अनुष्ठान का।
हमको कहाँ अभिप्राय ज्ञात हुआ है।।

कहीं तार-तार रक्त संबंध हुआ है।
कहीं अंजानों से दिल का तार जुड़ा है।
भांग-धतूरे का प्याला पीकर कुछ ज्यादा।
लगता है प्रभु तूने यह सारा संसार रचा है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday 18 August 2022

448:ग़ज़ल

कृष्णजी के जन्मदिन पर सभी को बधाई ।
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सांवली निगाहों के जाम जब से पिए हैं।
बुतखाने में देखिये बुत बने हम खड़े हैं।।

जुल्फों की गिरफ्त में जबसे घिरे हैं।
कहने के काबिल कहाँ कुछ रहे हैं।।

आमद की बात सुनी है हमने जबसे।
रात-रात जग कर बस पहरे दिए हैं।।

एक हल्की सी तान सुनी है दूर से आती हुई।
बस उसी धुन पर हम तो मदहोश हो गए हैं।।

जलवों का तेरे जिक्र करें तो करें कैसे भला।
सुन-सुन के किस्से यारब जवान हम हुए हैं।।

एक नूर तेरा ही हर महफिल में रहा है चर्चे का सबब।
हम तो उस्ताद बस तुझ पर जां-निसार करते हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday 15 August 2022

घर-घर तिरंगा

घर-घर तिरंगा
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बहुत बधाई सभी को स्वतंत्रता दिवस के अमृत-महोत्सव  की।
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घर-घर इठला के अपना आज देखो फरफरा रहा तिरंगा।। 
आजादी के अमृतमहोत्सव पर शान से लहरा रहा तिरंगा।।

जाति,धर्म,वर्ण,संप्रदाय भेद,झुठलाने को तत्पर रहा तिरंगा। 
एकसूत्र बांध हम सबको साथ-साथ,चलना सिखा रहा तिरंगा।।

स्वयं से नई प्रेरणा,नई सीख लेकर बढ़ता ही जा रहा तिरंगा। 
बुलंदियां आकाश की छूने को संकल्पबद्ध दिख रहा तिरंगा।। 

स्वर्णिम भविष्य के कर्म पथ पर अग्रिम भूमिका लिख रहा तिरंगा। 
शान्ति,प्रेम,सद्भाव को विश्व में बढ़ाने हेतु नेतृत्व कर रहा तिरंगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday 12 August 2022

447: ग़ज़ल

उतना ही जानिए जितना जरूरी है। 
यूँ तो सब यहाँ बस मगजमारी है।।

जाने कितने तालों में बंद करके जिंदगी।
हमने खुशियां खुद से ही अपनी रौंदी हैं।।

एक बार पीठ थपथपा तो दो जरा प्यार से।
हार को भूल जीत जाता हर खिलाड़ी है।।

ख्वाबों के महल खड़े होते नहीं बगैर सींचे पसीने से। 
देनी तो पड़ती है हमें कभी न कभी कोई कुर्बानी है।।

यार तेरी वो खनक अब सुनाई नहीं देती आवाज में।
बता तो सही यूँ दोस्तों से बातें छुपाई नहीं जाती है।।

आबे हयात* भरा जाम मिल रहा है "उस्ताद" सबको। 
सही मायने में सजी अब महफिल जश्न ए आजादी है।।
*अमृत 

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday 11 August 2022

446: ग़ज़ल एक अटपटी सी

एक ग़ज़ल कुछ अटपटी सी
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दर्दे दिल को हमारे समझ सके बना कहाँ ऐसा आला है। शरबती निगाहों का यूँ भी बिकता बड़ा महंगा काढ़ा है।।

नादानियां बुढोती में कराती हैं अजब बचकानी हरकतें।
बुतखाने जाने की उम्र में हैं पूछते यहाँ,कहाँ मयखाना है।।

सीरत पर तो नहीं हां खुद की सूरत पर पूरा भरोसा था।
मगर खुलता ही नहीं मोबाइल के पासवर्ड का ताला है।।

किसी रकीब को देकर इज़्ज़त अफ़जाही से अपनी बहन। लेता है जो ता-उम्र बदला कसम से वही असल साला है।।

हर शहर में अपने कारीगरी से बड़ा कमाया नाम जिसने। हुजूर वो हुनरमंद फनकार मुँह में आपके ठुंसा मसाला है।

जुल्फें सफेद हो गई मगर दिल तो काला,स्याह ही रहा।
असल जिंदगी का "उस्ताद" यही तो गड़बड़झाला है।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday 10 August 2022

445:ग़ज़ल

अब तो बस एक तेरी चौखट ही मेरा सहारा है।
वरना तो बता कौन यहाँ मेरा चाहने वाला है।।

सूरज चांद तारों ने तो लिख दिया मेरा नसीब। 
बदल सकता है बस तू अब तेरा ही आसरा है।।

सुनाऊं किससे मैं अपने दर्द ओ गम की कहानी।
हौंसला देकर बस तू ही तो एक सुनने वाला है।।

चरागों को मेरे जब तेल मयस्सर नहीं जलने की खातिर।  भला तेरे सिवा कौन यहाँ मुस्तकबिल बदलने वाला है।।

कमरों की दीवारों में तो अब होने लगी है यार घुटन।
हवामहल में रहने का शौक हमने यूँ ही नहीं पाला है।।

कभी थोड़ी-बहुत हमारी भी सुन लिया कीजिए।
आखिर कहें क्या कुछ हमने आपका बिगाड़ा है।।

"उस्ताद" तुम खामखां कसम से रोते बहुत हो।
देखो टूटी कश्तियों को भी तो वही पार लगाता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday 9 August 2022

444: ग़ज़ल:

चलो आज फिर एक ग़ज़ल लिखी जाए। 
दर्द की सिलवटें कुछ और मिटा दी जाए ।।

बहुत गुमान था जिसकी दोस्ती का हमको।
अब उसकी ही सबसे बेवफाई छुपाई जाए।।

कोई सोता नहीं रात भर इतने पेचोख़म* हैं जिंदगी में।
*मुश्किल हालात 
करीब जाकर अब जरा लोरी तरन्नुम* में सुनाई जाए।।*गाकर

रिमझिम बौछारें जब भिगोती हैं दरीचे* से आकर।*खिड़की 
संग यार दोस्तों के शम-ए-महफिल जलाई जाए।।

हर किसी को है गुमान कि वो ही "उस्ताद" है।
पहले चलो ये खुमारी खुद की ही उतारी जाए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday 8 August 2022

443:गजल

किसी की जिंदगी को क्या खाक हूँ बदल सकता मैं।
चाहत है बस लबों को कुछ देर को खिला दूं जरा मैं।।

हर शख्स जेहन में अपने घूमता है मनों बोझा लादे हुए।
क्या कभी कम कर सकूंगा तोला-माशा भी उसका मैं।।

अलहदा है हर कोई और यूँ कहो तो कोई भी नहीं।
अजब ये भूलभुलैया को कभी ना समझ पाया मैं।।

उफनते जाम भी संभल जाते हैं हलक में जाने के बाद। संभलता नहीं मगर जब छलकने पर आता है मेरा मैं।।

खुदा का बड़ा रहमो-करम है जो नजूमी हुआ "उस्ताद"।
भरके हौसला जुगनू ए रोशनी का मुस्तकबिल बनाता मैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 7 August 2022

442:गजल

रंग जुदा-जुदा हैं कितने ज्यादा इस जिंदगी के।
नाप सकें तो जरा बताइए हमें माप गहराई के।।

हर तरफ चर्चा है बस तेरे नाम की शहर भर में।
कुछ हमें भी तो सिखाइए फन इस कारीगरी के।।

पत्तों में पड़ी बूंदें,मोती सी दूर से चमकती हैं।
किस्से अजब-गजब हैं कुदरत ए निजामी के।।

तुम हमें चाहते हो ये पता तो है यारब दिल से।
बीतें न मौसम कहीं चलते तेरी बहानेबाजी के।।

सुनहरे हर्फ कोरे कागज पर दिल के टांक दिए हमने। जगमगाते रहे नगीनों से ता-उम्र निगाहों में सभी के।।

"उस्ताद" काले घने बादल बेताब हैं बरसने को।
खोलो तो जरा बंद पड़े पल्ले अपनी खिड़की के।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday 6 August 2022

441:गजल

ख्वाब देखने में ही यूँ तो अपनी सारी जिंदगी गुजर गई।
खुदा का शुक्र है फिर भी अब तलक अच्छी गुजर गई।।

यूँ कहें तो दरअसल एक ख्वाब ही तो है जिंदगी।
दो पल भी ठहरी नहीं चुटकी बजाती गुजर गई।।

कुछ लम्हे को ही ठहर जाए काश कभी इत्मिनान से।
देखते ही देखते पर देखिए जवानी,बुढ़ोती गुजर गई।।

अब पेशानी पर बल देकर हाथ मलने से क्या होगा कहो।
सदाकत*,रफाकत** भरी वो पूरी की पूरी पीढ़ी गुजर गई।।* सच्चाई  **मेलजोल 

होता तो होता कैसे दुनियावी प्यार "उस्ताद" कभी किसी से।
मौसम ए उम्र आने से पहले खुद से ही शनासाई* गुजर गई।।*परिचय 

नलिनतारकेश उस्ताद

Thursday 4 August 2022

आजादी का अमृत महोत्सव

भगत शिरोमणि सन्त
तुलसीदास जी महाराज को उनके पावन-पुनीत जन्म दिवस पर "आजादी के अमृत महोत्सव" पर सादर काव्यांजलि  समर्पित है।आपकी एक कालजयी रचना "श्रीरामचरितमानस" जी ने भारत के जन-जन  में "पराधीन सपनें सुख नाहीं" का जो अप्रतिम  अमूल्य योगदान भरा उसका स्मरण  अभिनन्दन  करते हुए।
🙏🥰🚩जय श्रीराम।। जय हनुमान।।

राष्ट्र की "आजादी के अमृत-महोत्सव" का देखिए, श्रीगणेश हो रहा। 
जन-जन की चेतना में,गरिमामयी अतीत का नवबोध हो रहा।।

अपना रक्त-स्वेद बहा,परतंत्रता की बेड़ियों को जिन्होंने काट डाला।
आज उन समस्त राष्ट्र-भक्तों का,कृतज्ञ-भाव से स्मरण हो रहा।।

जिस दीर्घ दासता ने लोप कर दी थी,हमसे ही हमारी   तेजस्वी गरिमा।
उसकी ही पुनर्प्रतिष्ठा को,नव-उमंग से सृजन का प्रयास हो रहा।।

वसुधैव-कुटुंबकम की युगों से,चली आ रही जो अपनी उदात्त भावना।
सबके मंगल कल्याण हेतु,उसी जयघोष का समवेत आवाह्न हो रहा।।

घर-घर तक सभी के विकास की,गंगा सतत निर्बाध बहती रहे।
जाति,पंथ,सम्प्रदाय से भरा पथ,बंधनों से मुक्त अब समतल हो रहा।।

ज्ञान की जो,अपरिमित थाती रही थी हमारी,युगों-युगों से सदा ही। 
उसे ही संवारने,वृहद "राष्ट्र-यज्ञ" का संचालन,प्रति श्वास अब हो रहा।।

नव कीर्ति की स्थापना संग,"स्वर्ण-हंस" बने फिर से, अपना भारत महान।
शांति,प्रेम,त्याग की मधुर धुनों के संचार से,हर हृदय जागृत हो रहा।।

नलिनतारकेश

Wednesday 3 August 2022

440:गजल

दर्द सुन ले बस यहाँ एक आदमी,आदमी का।
फकत इतनी ही चाहत से है अपना तो वास्ता।।

जुल्फों के घने जंगलों में खो गए जब हम।
मिलना कहाँ था कहो फिर कोई भी रास्ता।।

बेकरारी तो दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है।
जाने उनसे कब हो सकेगा आमना-सामना।।

तेरा शहर भी ढल गया है अब तो तेरे ही रंग में।
देता नहीं तवज्जो जब तक न हो कोई फ़ायदा।।

"उस्ताद" हम भी कब तलक करते उनकी चिरौरी।
आंखिर कभी तो सही जागना ही था जमीर अपना।। 

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday 1 August 2022

439:गजल

बिछड़ने को तो मुझसे बिछड़ गया है वो कहने को। 
आया मगर और भी करीब देखो वो साथ रहने को।।

आंखें लड़ा के इश्क कीजिए उससे जी भर के।
जमाने में यूँ तो बहुत कुछ है यारब बहकने को।।

दर्द मिला है जो बड़े नसीब से आपको जिंदगी में।
उठाना है लुत्फ तो न जताइए भूलकर जमाने को।।

दौर एक अजब कसक बन पेशानी पर जा के ठहरा है।
मिल कर भी होगा क्या जब रहा नहीं कुछ सुनाने को।।

बहुत हो गया "उस्ताद" फसाने कब तक लिखें। 
लोरी सुनाने कोई तो आ जाए अब हमें सुलाने को।।

नलिनतारकेश @उस्ताद