Monday, 1 August 2022

439:गजल

बिछड़ने को तो मुझसे बिछड़ गया है वो कहने को। 
आया मगर और भी करीब देखो वो साथ रहने को।।

आंखें लड़ा के इश्क कीजिए उससे जी भर के।
जमाने में यूँ तो बहुत कुछ है यारब बहकने को।।

दर्द मिला है जो बड़े नसीब से आपको जिंदगी में।
उठाना है लुत्फ तो न जताइए भूलकर जमाने को।।

दौर एक अजब कसक बन पेशानी पर जा के ठहरा है।
मिल कर भी होगा क्या जब रहा नहीं कुछ सुनाने को।।

बहुत हो गया "उस्ताद" फसाने कब तक लिखें। 
लोरी सुनाने कोई तो आ जाए अब हमें सुलाने को।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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