Monday, 22 August 2022

451: ग़ज़ल

चलो जो हुआ अब तक सब भूल जाएं।
गीत मिलकर प्यार के फिर आज गाएं।।

कुछ खताएं हमसे हुई कुछ शायद तुमसे भी।
रात बीती,बात बीती अब बतंगड़ क्यों बनाएं।।

जिंदगी झूले सी कभी नीचे तो कभी ऊपर पैंग भरती। भरकर गलबहियां अब तो हम लबों से लब मिलाएं।।

दो रोज की बमुश्किल नसीब से मिली है हमें जिंदगी।
गिले-शिकवे भूलके सारे इत्र सा आओ इसे महकाएं।।

मुहब्बत नियामत है खुदा की बड़ी ही पाक जानो।
तंगदिली छोड़ "उस्ताद" हम चलो खिलखिलाएं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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