Sunday, 7 August 2022

442:गजल

रंग जुदा-जुदा हैं कितने ज्यादा इस जिंदगी के।
नाप सकें तो जरा बताइए हमें माप गहराई के।।

हर तरफ चर्चा है बस तेरे नाम की शहर भर में।
कुछ हमें भी तो सिखाइए फन इस कारीगरी के।।

पत्तों में पड़ी बूंदें,मोती सी दूर से चमकती हैं।
किस्से अजब-गजब हैं कुदरत ए निजामी के।।

तुम हमें चाहते हो ये पता तो है यारब दिल से।
बीतें न मौसम कहीं चलते तेरी बहानेबाजी के।।

सुनहरे हर्फ कोरे कागज पर दिल के टांक दिए हमने। जगमगाते रहे नगीनों से ता-उम्र निगाहों में सभी के।।

"उस्ताद" काले घने बादल बेताब हैं बरसने को।
खोलो तो जरा बंद पड़े पल्ले अपनी खिड़की के।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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