Monday 13 March 2017

रंग गयी रंग भरी एकादशी तन-मन मेरा इस बार होली में



रंग गयी रंग भरी एकादशी तन-मन मेरा इस बार होली में।
भगवद-कृपा से हो गया संत-साक्षात्कार मेरा इस बार होली में।।
यूँ तो बस माया के वशीभूत लगते हैं चक्कर तीर्थ और मंदिर में
अकस्मात्,प्रारब्धवश पर जाना पड़ा संत-धाम इस बार होली में।।
साक्षात् माँ कात्यायनी विराजती मिली वीरभद्र आश्रम,ऋषिकेश में
असीमित कोटि सूर्य सम दिव्य सिद्धि गात दर्शन,इस बार होली में।।
श्री युगल निर्मल पावन चरण जीवनमुक्तागार,तारकेश माँ-महाराज के
पूरन-कमला जैसे बसे क्षीरसागर परमानन्द सराबोर,इस बार होली में।।
निर्विकार,करुण,निर्लिप्त-नलिन नयन डूबे दिखे समाधि में।
इंद्रधनुषी आशीष के क्या खूब रंग बरसे,इस बार होली में।।
प्रेम,दया,वात्सल्य,विरक्ति,त्याग के रंग मस्त चढ़े हृदय में।
भगवामय हो गया सृष्टि का ओर-छोर.इस बार होली में।।       

Saturday 11 March 2017

कान्हा कैसी होली खिलाई इस बार फाल्गुन में



कान्हा कैसी होली खिलाई इस बार फाल्गुन में
तन-मन रंग गई केसरिया मैं तो इस बार होली में।
आयी थी चंचल-चतुर सखियों संग बड़ा इठलाते झुण्डन में
कान्हा तू अनाड़ी बड़ा खिलाड़ी रंग गयो इस बार होली में।
ब्रज अहीर होलियारिन तेल पिलाय लाई थी बड़-बड़ लठ्ठ संग में
रह गई अकड़ सब धरी,फिसल प्रेम सब तेरे इस बार होली में।
नारद(मीडिया) आग लगा उकसायो बहुत इस बार फाल्गुन में
कान्हा हम तो फँसी तेरी रसीली बतियन फिर इस बार होली में।   

केसरिया होली इस बार फाल्गुन में




हो गया अबीर-गुलाल"केसरिया"इस बार होली में
"नरकेसरी"का जादू चला गली,क़स्बा इस बार होली में। 
"गजराज"को जकड़ गिराया उसके ही जाति घड़ियाल ने 
खिसियायी बिल्ली खंबा नोच रही इस बार होली में। 
"साईकल"की अपनी हवा निकाल दी खुद शैतान बच्चे ने 
बाप,चाचा से रूठ"आ बैल मुझे मार"हुआ इस बार होली में। 
बावलां"हाथ"तो अपना ही जला बैठा इस बार होलिका दाह में
"झाड़ू" इस बार खूब लगाई सबने कूड़े-कचरे के अम्बार में
हर तरफ खिला भगवा निर्मल "नलिन"इस बार होली में।   

Thursday 2 March 2017

#आदियोगी #शिवेन सह मोदते


#आदियोगी #शिवेन सह मोदते

आदियोगी तुम तो हो अनन्त,सृष्टि के आधार
सत्यं-शिवं - सुंदरं के,अविस्मरणीय अवतार।
आदि - अंत से परे तुम्हारा,है अबूझ आकार
अवतरण चर-अचर जगत में,अकथनीय उपकार।
एक दृष्टि नष्ट करते,'नलिन' नयन विकार
हाथ द्वय त्रिशूल डमरू,कंठ-सर्प हार।
कपूर देह लपेटे,भोग-विलास बना क्षार
आशुतोष कृतकृत्य हम,बार-बार तुम्हें निहार।
ग्रहण कर स्वयं हलाहल, विश्व देते सुधोपहार
योगयोगेश्वर-अखण्ड अविचल,सदा-सदा के निर्विकार।
महादेव अंश हम तेरे हैं सभी,करते नमन बार-बार
शिव भाव बसे उर हमारे,यही सदा करुण पुकार। 

Wednesday 1 March 2017

अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम फर्ज़ी सेक्युलरवादी



जला दो किताबें सारी जो बनाती हैं तुम्हें फ़र्ज़ी सेक्युलरवादी
जब समझते ही नहीं तुम क्या है देशभक्ति,कौन है आतंकवादी।

किस मिट्टी के बने हो क्यों है तुम में घटिया षड्यंत्रकारी होशियारी
ज़मीर बेच,कुत्सित घृणित सोच से शर्मसार करते हो शहादतें सारी।

अपनी रोटी सेकने, शराब,चंद गोश्त के टुकड़े,चाँदी की तश्तरी
माँ भारती के आँचल पलते - बढ़ते, करोगे क्या अब यही गद्दारी।

काटोगे पेड़ क्या जिस पर बैठ मांगते हो अभिव्यक्ति की आज़ादी
जड़मूर्खो बहुत हो गया अब नहीं सही जाती हमसे देश की बरबादी।  

निष्पक्ष हो अगर तुम और हो इतने ही बड़े उदारतावादी 
अपनी सहुलियत से क्यों देश को बरगलाते हो अवसरवादी।