Sunday 27 December 2020

ज्योतिष के आलोक में नवधा भक्ति ******************************


व्यक्तिगत रूप में मुझे संत शिरोमणि "तुलसीदास जी" द्वारा रचित "श्री रामचरितमानस" से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ अन्य कोई लगता ही नहीं है। कारण सीधा सा है कि एक रूप में यह इतना सहज,सरल,सीधा-साधा,समझ में आने वाला ग्रंथ है कि अल्पबुद्धि मुझ जैसे लोगों को भी इसमें रसानंद की अनुभूति(फिर चाहे अल्प ही), स्वतः अवश्य ही हो जाती है।भक्ति मार्ग के साधकों के लिए तो यह अमृततुल्य है ही, श्रीहरि के पुनीत चरणोदक जैसा।इसमें ही अरण्यकांड (तीसरा सोपान) के अंतर्गत भक्तिमति देवी शबरी के साथ संवाद में श्रीराम ने  नवधा भक्ति का जो उपदेश दिया है वह अत्यंत लोकप्रिय है।कुछ प्रभु की कृपावश ज्योतिष में रुझान के चलते इसका जब तारतम्य जांचने लगा तो विचार आया कि भक्तजन यदि चाहें तो ज्योतिष के मानक/सूत्रों के हिसाब से भी अपने जीवन में इसका सटीक चुनाव कर सकते हैं जो कि उनके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है।हमारे शास्त्रों में भक्ति 9 प्रकार की स्वीकार की गई है।
 श्रवणं, कीर्तनं, विष्णोः स्मरणम, पादसेवनं। 
 अर्चनं, वंदनं, दास्यं, सख्यमात्म निवेदनम्।। 
जैसा कि हम जानते हैं ज्योतिष का ज्ञान हमें अपने भूत,वतॆमान,भविष्य का सम्यक ज्ञान प्रदान कराने वाला दैवीय विज्ञान है और इसका वास्तविक उपयोग भी यही है कि इसे हम आत्मनुभूति के लिए अधिक काम में लाएं न की भोग-विलास की प्राप्ति सम्बन्धित जिज्ञासाओं के समाधान हेतु।
जैसा कि हम जानते हैं कि अंक ज्योतिष में 9 अंकों का विशेष महत्व है।इसके द्वारा हम अपनी जन्म तारीख से मूलांक व जन्म तारीख,जन्म माह,व जन्म वर्ष के जोड़ द्वारा भाग्यांक निकालकर भविष्य का सटीक विवेचन कर पाते हैं। उदाहरणार्थ जन्म विवरण  यदि 29/10/2019 है तो इसमें मूलांक 2+9=2 होगा। 
वहीं भाग्यांक 2+9+1+0+2+0+1+9= 6 होगा। मूलांक,भाग्यांक का हमारे व्यक्तित्व में बड़ा योगदान रहता है।
इसी प्रकार नौ ग्रहों सूर्य,चंद्र,मंगल,राहु,बुध,शनि,केतु,बृहस्पति,शुक्र
का   9 अंकों से सीधा संबंध स्थापित किया गया है।तो क्यों न हम अपनी मूल प्रकृति को अंकों/ ग्रहों के स्वभाव द्वारा समझ-बूझ कर अपने लिए नवधा भक्ति का चुनाव करें जो हमारे लिए बहुत लाभदायक रह सकता है।
अंक ज्योतिष के अनुसार अंकों का ग्रहों से जो संबंध है उसकी चर्चा अब हम करते हैं।जैसे 1 का अंक सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है, 2 का अंक चंद्रमा का,3 का अंक बृहस्पति का,चार का अंक राहु का,5 का अंक बुध का,6 का अंक शुक्र का,7 का अंक केतु का, 8 का  अंक शनि का और 9 का अंक मंगल का प्रतिनिधित्व करता है। 
सामान्यतः हम सभी जानते हैं कि सूर्य(1 अंक) ग्रह- तेजस्विता, स्थिरता,दृढ़ता,आत्मा का कारक है और हमारे अहम् को भी दर्शाता है। इसी प्रकार चंद्र (2 अंक)ग्रह - चंचलता,मनन-विचार करने वाला संवेदनशील होता है ।बृहस्पति (3अंक) ग्रह- सेवाभावी, ज्ञानवंत, आज्ञाकारी, निष्ठापूर्ण होता है।राहु (4अंक) ग्रह  - संघर्षशील,विचरण करने वाला,मिलने-जुलने में रूचि रखने वाला होता है।
बुध  (5अंक) ग्रह- ढुल-मुल स्वभाव ,संगत का गहरा असर पड़ने वाला होता है।शुक्र (6अंक)  ग्रह- भोग विलास के संसाधनों में स्वछंदता/प्रीति का, केतु  (7अंक) ग्रह-  रहस्यात्मक्ता, समाज से अलग स्वयं को  सीमित रखने वाला होता है।शनि  (8अंक) ग्रह-दुःखी, असंतोषी/आत्मसंतोषी,गंभीर  और एकाकी जीवन के प्रति लगाव वाला होता है।मंगल  (9अंक) ग्रह- अपने बाहुबल से आत्ममुग्ध,बेपरवाह,अनियंत्रित सा व्यवहार करने वाला होता है।
तुलसीदास जी ने जो क्रम अपनी रामचरितमानस में नवधाभक्ति का अरण्यकांड के अंतर्गत दिया है वह अगर हम देखें तो लगता है कि वह ज्योतिष के सूत्रों से सामंजस्य को वास्तविक रूप में स्थापित करते हुए ही लिखा गया है। यूं हम जानते ही हैं कि तुलसीदास जी ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे तो यह आश्चर्य का विषय भी नहीं है। अब हम श्रीरामचरितमानस में नवधा भक्ति (दोहा 34 से 36 के मध्य)को पढ़ते हैं।इसमें लिखा है- "प्रथम भगति संतन कर संगा" अर्थात् संतों का संग करना चाहिए उनका आशीष लेना चाहिए और सेवा करनी चाहिए ।अब यदि इसे हम भाग्यांक और मूलांक 1अंक/सूर्य ग्रह से संबंधित करके देखें तो हमें यह बिल्कुल सटीक लगता है क्योंकि इसमें सूर्य के जैसे संतों का ,जो निर्विकार भाव से सभी के लिए आलोक प्रदान करने को प्रस्तुत रहते हैं उनकी ही सेवा की बात करता है। दूसरी भक्ति में "रति मम कथा प्रसंगा"-यहां पर श्री हरि कथा से प्रेम उसका बार-बार पठन-पाठन व निदिध्यासन की बात कही गई है जो कि 2  मूलांक व भाग्यांक /चंद्र ग्रह से प्रभावित  चंचल,अधिक विचार करने वाले, संवेदनशील  स्वभाव वालों के लिए बहुत ही उपयुक्त प्रतीत होती है।तीसरी भक्ति जो है उसमें "गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भक्ति अमान" यानी कि निराभिमानी होकर अपने गुरु के चरण कमलों की सेवा उनकी आज्ञा अनुसार जीवन यापन करना है। यहां हम देखते हैं कि  बृहस्पति ग्रह को गुरु भी कहते हैं।अतः यह भी बहुत उपयुक्त लगता है।चौथी भक्ति "मम गुन करइ कपट तजि गान"- जो बात कही गई है वह राहु ग्रह से संबंधित है जो कि खुद को चतुर मानते हैं और बावजूद इन्हें बहुत  संघर्ष करना पड़ता है। लोगों से मिलने-जुलने की प्रवृत्ति रखने  वाले 4 अंक के लोगों को अतः श्रीहरि के गुणों का बिना छल-कपट के स्वार्थ रहित हो लोगों के मध्य कहना, उसका प्रचार-प्रसार करना उपयुक्त भक्ति कही जा सकती है।"मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा ।पंचम भजन सो वेद प्रकासा" इसमें 5 वीं भक्ति को जो क्योंकि बुध ग्रह से संबंधित हो जाती है अतः इसमें व्यक्ति अपने ढुलमुल स्वभाव और संगत के गहरे असर को सही रूप में  लेते हुए सात्विक प्रकृति के लोगों के संग को बनाते हुए दृढता पूर्वक  सिद्ध मंत्रों द्वारा जैसे "ओम नमः शिवाय", "ओम नमो भगवते वासुदेवाय",आदि  द्वारा  अपनी भक्ति को सही राह दिखा सकता है।"छठ दम सील बिरति  बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धर्मा" इस छठवीं भक्ति के माध्यम से हम शुक्र ग्रह का संबंध स्थापित करते हैं। क्योंकि शुक्र इन्दिय जनित भोग-विलास और इंद्रिय-सुखों का कारक है तो इसमें हमें इस प्रकार की प्रवृत्ति रखनी चाहिए जिससे कि हम इंद्रिय निग्रह यानी कि सुंदर चरित्र वाले कार्यों को करें और सज्जन व्यक्ति के लिए जो मान्य आचरण है उसका व्यवहार करें। सातवीं भक्ति में "सातवँ सम मोहि मय जग देखा।मोते संत अधिक कर लेखा।।" में हम केतु ग्रह के अनुरूप कह सकते हैं कि "सीय राम मय सब जग जानि" या कहें जगत को राममय देखना और संतों को श्रीहरि से भी अधिक सम्मान देना उपयुक्त लगता है।8 अंक के मूलांक वाले या की भाग्यंक वाले लोगों के लिए कहा गया है कि "आठवँ जथालाभ संतोषा।सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।" इसमें कहा है कि शनि ग्रह से प्रभावित व्यक्ति को सभी स्थितियों अपने को प्रसन्न रखते हुए  कार्यों को करना चाहिए। तो वह अष्टम  भक्ति को सहजता से पुष्ट  करते हुए आत्मिक उन्नति कर सकता है। और अंत में "नवम सरल सब छलहीना।मम भरोस हिय हरस न दीना।।" इसमें नवीं भक्ति जो मंगल ग्रह से संबंधित है यानि कि 9 नंबर से  तो उसमें व्यक्ति को  अपने बाहुबल से लोगों की  मदद करनी चाहिए तथा बिना किसी भेदभाव के और साथ ही साथ निष्कपट रह कर हर्ष व दैन्य/दीनता कि अति से बचते हुए सहज, सामान्य हो जीवनयापन करना चाहिए जिससे कि उसका भक्ति मार्ग में सरलता पूर्वक पथ प्रशस्त हो सके।
अन्त में, यदि आपका मूलांक, मूल्यांकन एक ही है तब तो उस भक्ति प्रकार को आप द्वारा अपनाया जाना तो हर प्रकार से उत्तम है।वहीं मूलांक अलग और भाग्यांक अलग हो तो इसका आशय यह है कि आपको इनसे संबंधित  दोनों प्रकार की भक्ति मार्ग का अवलम्बन लेना चाहिए। 
वैसे यह लेख तो सिर्फ भक्ति मार्ग में आकर्षण बढ़ाने हेतु स्वान्तः सुखाय ही लिखा गया है।लेकिन अगर इससे किसी अन्य साधक का भी मन खिंचे,श्रीहरि जी (ईश्वर) की ओर तो यह आनन्द का ही विस्तार है। 
               卐 ॐ तत् सत् ॐ 卐
नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर सभी को समर्पित। 
@ नलिन पाण्डे "तारकेश"

Wednesday 5 August 2020

सुस्वागतम् श्रीराम आपका कलियुग में



      सुस्वागतम् श्रीराम आपका कलियुग में 
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जन-जन,सबके आकुल-व्याकुल थे मन-प्राण भरत से वर्षों से।
निर्निमेष बाट जोह रहे थे,कब आएंगे श्रीराम अपने ही घर में।।
त्याग-बलिदान किया सर्वस्व,जाने कितनों ने एक युग से।
शुभ घड़ी,निहारने का प्रतिफल जिसका पाया हम सबने।।
बीती सदियां पांच,हर दिन-हर रात जिसके एक युग से।
झेले छल-प्रपंच,अनगिनत कुछ अपने तो कुछ गैरों से।।
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा लांघी,कभी न जिसने स्वयं के जीवन में।
उस पर कितने अमर्यादित वार किए कुछ अपने ही जयचंदों ने।।
पर चलो हुआ पटाक्षेप,राम कृपा से जैसे-तैसे इन सब से। अब तो सज सँवर तैयार हो रही,राम की नगरी भव्यता से।।
उत्साह,उल्लास का रंग अनूठा,गजब है छाया आज सबके ही मन में। 
नवयुग का आह्वान करता कालचक्र प्रतीत हो रहा है देखो  कण-कण में।।
दीप जले,शंख बजे हर घर-घर गली-गली भूमंडल में।
देव,यक्ष,नर-नारायण सब दिखते अति प्रसन्न,मगन से।
भूतो न भविष्यति,हम सब हिन्द के वासी हैं आज मन्त्र-मुग्ध से।
राम कृपा से अभिभूत हम खुद को पाते धन्य हुई इस देह में।।
नलिन पाण्डे "तारकेश"

Thursday 23 January 2020

315:गजल-दर्द हो गहरा



दर्द हो गहरा अगर तो मिलता खुदा है।
ये रिश्ता प्यार का अजब ही होता है।।
संभला रहे दिले सीप तो बने नायाब मोती। 
छलक जाए अगर तो बस खारा ही रहता है।।
दर्द हो हद से ज्यादा तो छलकेगा ही आंखिर।
पर छुपाने का इसे भी कुछ को हुनर आता है।।
काजल लगा के वो आंख का सैलाब छुपाते रहे।
टूटा अब बांध तो खुदा कसम जलजला बना है।।
वो मिलेगा दर्द से तो खुद को ही छलनी कर लिया।
"उस्ताद"जानता कहाँ दर्दे पैमाना उसका बड़ा है।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday 22 January 2020

314:गजल :ज़ुल्फ़ों से जो उसने

कल लिखी ग़ज़ल की ही अगली कड़ी जो आज के वक्त में लड़कियों के मिजाज पर एक अलग पक्ष को छूती हैं:On Demand:

522/20:को उसने

ज़ुल्फ़ों से जो उसने अपनी घौंसला सजा लिया।
अरमान भरे दिलों को बखूबी उसमें बसा लिया।।
उगे हैं पंख अभी नए ओ खुला आसमां दिख रहा।
सो उड़ने का बेरोकटोक उसने बस मन बना लिया।।
हवाओं के रुख़ से अब बेखौफ़,बेखबर रह रही है वो।
दिखाने अपना हौंसला जमाने से सारे ही पंगा लिया।।
अलहदा,कुछ फुलटाॅस,मौज-मस्ती भरा हो रोज़ अब।
मिज़ाज बिन्दास सा बेढब बड़ा सो नया अपना लिया।।
"उस्ताद" मूँदो अपनी आँखें या खोलके बस देखो।
सवालों के हल का अपने खुद से ही बीड़ा उठा लिया।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday 21 January 2020

313:गजल:बन्द आंखो से भी देखती है

521/20

बन्द आँखों से भी देखती है।
लड़की हर बात समझती है।।
कहा तो जरूर कि वो भगवती है।
भोगती मगर वही सब ज्यादती है।।
तुम ही नहीं समझ पाए उसे।
वरना तो वो करामाती है।।
घर बनाती है वो खंडहर को।
बाती सी रौशनी बिखेरती है।।
लाकर कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा।
शिद्दत से वही कुनबा सहेजती है।।
प्यार,जज़्बात के नायाब रंग सारे।
सबके दिलों में वही तो भरती है।।
बयां करें उसकी खूबियों क्या-क्या।
गाँठे तो उस्ताद वही खोलती है।।
@नलिन#उस्ताद

Monday 20 January 2020

312:गजल-वो आए भी तो

वो आए भी तो माघ*में बरसात लेकर।*जनवरी माह
ठिठुरते मौसम अजब हालात लेकर।।
मलाई आरक्षण की मुफ्त में खाकर।
कर रहे मुल्क कमजोर खैरात लेकर।।
पढ़ा ही नहीं या खुदा जाने दिल में चोर है।
धरना दिए हैं बेफजूल बस सवालात लेकर।।
दूर-दूर तक मौजूं*ही नहीं जब टकसाली**इनकी।
*तथ्य **प्रमाणिकता 
भड़काते फिर रहे हैं लोग महज जज्बात लेकर।।
सहरे रौशनी को जब खींचके लाए हैं आफताब सब।
उस्ताद जाने अड़े हैं क्यों कुछ लोग रात लेकर।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday 18 January 2020

311:गजल-रंग गिरगिट से

518/20:

रंग गिरगिट से बदलते हैं। 
ये चेहरे आईने से डरते हैं।।
पैसा,हैसियत,सियासत की खातिर।
ज़हर जितना कहो लोग उगलते हैं।।
ग़ैरों का भी बढ़ता है हौंसला।
जब अपने ही हमें छलते हैं।।
इन्हें तो बख्श दो ख़ुदा की खातिर।
ये नौनिहाल मासूम सब फरिश्ते हैं।।
तकदीर भी बदल जाती है "उस्ताद"।
उसे तदबीर से जब हम घिसते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Friday 17 January 2020

310:गजल-रागे उल्फ़त

रागे उल्फ़त जो जहाँ में छेड़ दिया उसने। 
नफरतों को दिलों से खदेड़ दिया उसने।।
वो दिखा जो मुद्दतों बाद एक महफिल में।
जख्मों को पुराने सब उधेड़ दिया उसने।। 
दरे हयात* खोलने को ही उठा था वो तो।*जीवन का मार्ग 
ठिठक फिर जाने क्यों भेड़ दिया उसने।।
बंजर दिखा जहां भी जमीन का टुकड़ा।
सींच के प्यार से बो एक पेड़ दिया उसने।।
किया था "उस्ताद" ने बस इश्क का जिक्र।
खबर में मगर कुछ उलट ही घुसेड़ दिया उसने।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday 16 January 2020

309:गजल-महावर जबसे



महावर दिल में जबसे उसने चस्पा की है।
जीने की ख्वाहिश फिर मुझमें जवाँ की है।। 
गरेबाँ में अपने झांक कर वो देख तो लेता।
बेवजह ही नहीं लम्हों ने उससे खता की है।।
वो लगााए इल्जाम चाहे जितने भी उस पर।
पहल कर दरअसल उसने ही नीचता की है।।
हर तरफ छाने लगा था जब अन्धेरे का कोहरा।
उसने दुनिया में उम्मीदे आफताब ज़िन्दा की है।।
देने वाला है वही,यहाँ बस में किसी के कुछ नहीं।
उस्तादी भी उसने ही "उस्ताद" को अता की है।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday 15 January 2020

मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें

 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें 
***************************************
श्रीगणेश हुआ आज से,शुभ उत्तरायणी महापर्व का। 
प्राची दिशा,मकर राशिस्थ मार्तंड के,नूतन प्रवेश का।
देवलोक में भी हुआ प्रारंभ,षटमास के प्रभातकाल का।
मंगल,समस्त-विधान धरा में,हुआ प्रवाह पुण्यकाल का।।
महत्व है आज विशेष,त्रिवेणी में डुबकी लगा स्नान का।
वासना से सहज मुक्ति प्रदायक,स्निग्ध से आलोक का।।
पटाक्षेप शनैः शनैः होने लगा है,मौसम ये शीत ऋतु का।
प्रशस्त वहीं मार्ग दिख रहा,सुभग वसंत के आगमन का।।
जीवट भरा अतुलनीय उल्लास दिखा,जन-मन-मृग का।
मृदुल हरित दूब पर,उत्साह से मस्त,चौकड़ी भरने का।।
आशाओं की पतंग,गुनगुनी धूप सीने में भर,उड़ाने का।
इंद्रधनुषी-रंगों से सराबोर,आकाश तक उसे,पहुंचाने का।।
यह पर्व सीमित नहीं,है अनन्त अद्भुत समेटे विस्तार का।
जो बनाए,खगोलीय घटना से तारतम्य,श्रेष्ठ मानवता का।।
@नलिन#तारकेश

Tuesday 14 January 2020

308:गजल:-रास्ता अगर भूल जाऊँगा

514/20:
रास्ता अगर भूल जाऊँगा अपने दिलदार का।
देखूँगा कैसे भला मुखड़ा सलोने सरकार का।।
कठिन है डगर पेंचोखम भी कुछ कम नहीं।
थकूँगा तो कहाँ होगा दीदार बाँके यार का।।
भटक रहा हूँ जाने कितने-कितने जनम से।
नतीजा निकले तो सही कुछ मनुहार का।।
जिसकी खातिर खोई सुध-बुध सारी अपनी।
सिला कुछ तो मिले उसपे किए एतबार का।।
बस वो रहे और वजूद पूरा पिघल जाए मेरा।
फसाना है बचा"उस्ताद"बस यही दरकार का।।
@नलिन#उस्ताद

Monday 13 January 2020

307:गजल-जब भी तेरा

512/20:

जब भी तेरा जिक्र करता हूं। 
दिल में अपने सुकूं देखता हूं।।
बहुत दिनों बाद आज आई है धूप।
छत में औंधे पड़े कमर सेकता हूँ।।
खनक सुनी जो उसकी सदा*में।*आवाज़ 
मिल गयी मंजिल समझ गया हूं।।
हर दिन की गहरी मशक्कत के बाद।
बस एक अदद यार इतवार ढूंढता हूं।।
सारे जहां में खिलें गुल हर जगह ही।
कांटों का ताज तभी सर पहनता हूं।।
भरने की ख्वाहिश है उड़ान बहुत ऊँची।
सो"उस्ताद"परिन्दों से पंख रखता हूँ।।
@नलिन#उस्ताद

306:गजल-हमें उसकी जरूरत है

513/20:

हर कदम हर सांस हमें उसकी जरूरत है।
जिंदगी दरअसल तभी ये खूबसूरत है।।
लिखा क्या तर्जुमा*कर रहे हो क्या।*अनुवाद 
अजब सुखनफहम* तेरी जहालत है।।*विद्वान 
जम के दौलत,शोहरत तुम सब बटोरो मगर।
राह अंगारे बिछाना ये कौन सी सियासत है।। 
हुजूर उतारते हैं क्यों आईने पर आप नाराजगी।  
सुना नासाज* आजकल दुश्मनों की तबीयत है।।*खराब 
बता रहे एक जमाने से कौन सीता,कौन राम।
नासमझ बन रहे फिर क्यों अजब महाभारत है।।
दिलों में हो दिल से प्यार सबके लिए। 
"उस्ताद" यही एक सच्ची इबादत है।।
@नलिन#उस्ताद

Friday 10 January 2020

305:गजल-सोचता हूँ जमाने में

सोचता हूँ मैं यूँ ही तो नहीं आया हुंगा भला जमाने में। 
किसी का कर्ज उतारना,चढ़ाना रहा होगा जमाने में।।रोशनी बाँटने को मशाल मजबूत जिस हाथ में थमाई थी। बुझा कर उसने न जाने क्यों पकड़ ली हंसिया जमाने में।।
जाओ तो कहते हैं गुस्ताखी न करो आरामरखाने आने की। 
जाएँ नहीं तो कहते ढिढोरा पीटें बुलाने को क्या जमाने में।। 
कितना संजीदा,मासूम,सादगी भरा,अलहदा दिखता है।
कत्ल करने निकलता है जब हुस्ने यार मेरा जमाने में।। आलिम-फाजिल जितने तथाकथित जो घूम रहे यहाँ।
चलन आँख,कान मूंदकर चलने का बढ़ रहा जमाने में।।
उसे भी तो गहरी लत लगी है फसाने रोज़ नए गढ़ने की।
कहाँ वो आसानी से है भला जीने,मरने देता जमाने में।। टूटे प्याले औ बिखरी शराब मिली मयकदे की तफ्तीश में। 
बेवजह अब बदनाम "उस्ताद" हुआ तो हुआ जमाने में।।
@नलिन#उस्ताद 

Thursday 9 January 2020

304-गजल:खिले फूलों की करो बात

510/20:

खिले फूलों की करो बात,उड़ते परिंदों की करो बात। 
खिलखिलाने की कहो बात,चहकने की तुम कहो बात।।
जलती आग रहने दो बस चूल्हे की चौहद्दी तक।
आग नफरतों की अब जलाने की छोड़ दो बात।।
संग* हाथ लेकर संगदिल ही बनोगे तुम यार।*पत्थर 
सजाने को ख्वाब कूची उठाने की करो बात।।
मंजिल दूर है अभी जाना है सभी को उस पार। 
सो पकड़ के हाथ साथ चलने की चलाओ बात।।
"उस्ताद" जिंदगी को बनाने सुरमई और भी।
 दिलों को जोड़ें जो तराने तुम वही सुनाओ बात।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday 8 January 2020

303/20:गजल आँखों में आँख डाल पूछो उसे

आँखों में आँखें डाल पूछो उसे।
जो है दिल में बेखौफ कहो उसे।।
जब हमने दिल में बैठाया नाज से।
फिर रुलाता है वो क्यों बोलो उसे।।
दूर खड़ा हो क्यों बनता है तमाशबीन।
पहचान बस इमदाद*की तुम मांगो उसे।।*सहयोग 
जो रूठे तो जाके वो घर बैठा करे अपने।
नकाब उतार उसका चेहरा दिखाओ उसे।।
कब तलक हम जान कर भी अनजान बने रहें।
सीधे रस्ते पर चलने को अब मजबूर करो उसे।।
बहुत चला एकतरफा वफा का सिलसिला।
यूँ न निभेगी ऐसा साफ बतलाओ उसे।।
ज्यादा मुरव्वत की "उस्ताद" जरूरत नही।
 जो ना माने अगर तो बस पकड़ ठोको उसे।।
@नलिन#उस्ताद

302:गजल-बांहों में भरे हम

आओ एक दूजे को बांहों में भरें हम। 
मासूम छोटे बच्चे से चलो बनें हम।। 
प्यार है शय,सरअंजाम*जो चाहती नहीं।*प्रतिफल  
पते की बात,आज ये गांठ बांध लें हम।। 
तरक्की की इबारत लिखने लीक से हटी।
रखके ईमान मुसलसल*दो कदम बढ़ें हम।।*लगातार
जो चाहते हैं हमें बाँटना बस मज़हबों में।
इरादे उनके नापाक अब तो समझें हम।।
हुकूक* की बातें भली चाहे पुरजोर करें रोज।*अधिकार 
फ़र्ज की फिक्र भी थोड़ी बहुत करते रहें हम।।
अपने भले की खातिर तो सब जूझ रहे यहाँ।
मिसाल नई खैरात की "उस्ताद" गढ़े हम।।
@नलिन #उस्ताद

Tuesday 7 January 2020

301:गजल-बुझा कर ये रोशनी आए हैं

बुझा कर ये सभी रोशनी के चिराग आए हैं।
तालिबे इल्म के नाम बदनुमा दाग आए हैं।।
आलिम,फाजिल ये जो हैं पढ़ा रहे पट्टी इन्हें।
नामचीन नहीं ये तो असल खटराग आए हैं।।
जहर,नफ़रत,गद्दारी खून में जो भरी है इनके।
बस रचाकर ये उसे ही एक नया स्वांग आए हैं।।
पूरे ही मुल्क जब छनके बंटती हो लत लगाने को।
बेमानी है ये पूछना कहाँ से पीकर भांग आए हैं।।
सर अपना पीटने से होगा क्या कहो "उस्ताद"। 
दूध पिलाया था जिन्हें ये वही काले नाग आए हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday 6 January 2020

300: -गजलःबात तब बिगड़ती है

506/20:

खुद से ही हो पर्दादारी बात तब बिगड़ती  है।
वरना कहो,कहाँ खुदा की नजर तंग होती है।।
माना होंगी बहुत ऐसी शय*जो तुझे नसीब न हुईं।*चीज
जो हुईं मयस्सर*उस पर क्यों नहीं नज़र रहती है।।*सुलभ
तवज्जो ही न दो बार-बार किसी के अहसास पर अगर।
दिल सिसकने से चिटक के फिर तो दोस्ती टूट जाती है।।
निराई-गुड़ाई तो करनी ही होगी अच्छी फसल की खातिर।
वरना तो उर्वरा-धरती भी बंजर धीरे-धीरे बनती जाती है।।
जज़्बात में बहक के अलाव-तापना घर फूंक अपना ही।
तेरी ये आदत "उस्ताद" दिमागी-दिवालियापन बताती है।।@नलिन #उस्ताद

Saturday 4 January 2020

299:गजल-दो दिन आए हैं



दो दिन ही टिकिए जहाँ आप ससम्मान आए हैं।
वरना कहेंगे लोग करने ये हमें परेशान आए हैं।।
जाने क्यों लोग उम्र को इतनी तवज्जो हैं देते।
हम सभी तो यहाँ बस बनके मेहमान आए हैं।। 
रहिए कहीं दो घड़ी या की फिर एक दौर तलक।
कहें सब तो बस यही कि मेरे अभिमान आए हैं।।
लड़ा रहे जो हमको महज़ अपने फायदे के लिए।
घर वोट मांगने वही नेता चोर,बेईमान आए हैं।।
कहो तुम भी कहो यार इल्जाम सब झूठ ही सही।
आब-ए-तल्ख* पी कर हम बड़े इत्मीनान आए हैं।।*आँसू 
"उस्ताद" देख कहते उनके नक्श-ए-पा*दहलीज पर।
*पाँव के निशान 
चलो देर सही मगर आज खिलके मेरे अरमान आए हैं।।
@नलिन #उस्ताद

जागो-जगाओ

जागो-जगाओ,अपने भीतर में जीजिविषा एक नई। 
यूँ थक-हारकर न बैठो,खोजो मंजिल अब एक नई।।
कठिन हैं रास्ते सफर के,ये तो पता ही है सबको।
फौलादी सोच मगर,बरकरार रखो भीतर एक नई।।
डूब कर गहरे,जो भी खोजता है अपने लक्ष्य को।
पाता है सब कुछ वो,उम्मीद जो रखता एक नई।।
सुबह से रात तक,दौड़ते निरंतर रहते हैं अश्व सूर्य के।
थकते हैं वे कहाँ-कब,दिशा-अनुसंधान करते एक नई।।
असंभव कुछ नहीं इस जग में,बस जो ये मान के चलो।
सोच रखनी होती है हमें,सदा सकारात्मक और एक नई।।
@नलिन #तारकेश

298:गजल-कैक्टस जरा सोचिए

कैक्टस में हैं फूल खिल रहे जरा सोचिए।
संवारता वो हुनर कैसे-कैसे जरा सोचिए।।
सांसे चलती कितने सुकून से जनाब कभी सोचा।
वहीं जब दो घड़ी को मुश्किल पड़े जरा सोचिए।।
हेकड़ी पाली जब तलक रहे जिस्मो जान। 
पूछेगा कौन मरने के बाद ये जरा सोचिए।।
सूरज,चांद,सितारे रहते हैं चुपचाप मशरूफ। 
कामयाबी हम जरा सी इतराते जरा सोचिए।।
जहां जाएंगे आयेगा दबे पांव नसीब भी वहीं। 
हर वक्त बस यही कदम रखते जरा सोचिए।।
खुदा ए फजल से ही होते हर काम छोटे-बड़े।  
नजूमी*वरना कैसे बता सकते जरा सोचिए।।*ज्योतिषी
धूप-छांव तो बस एक खेल है कुदरत का।
"उस्ताद" रख कुछ फासले जरा सोचिए।।
@नलिन#उस्ताद 

Thursday 2 January 2020

297:गजल- खोलने होंगे



खिड़की,दरवाजे सब खोलने होंगे।
कब तलक यूँ अरमान घोटने होंगे।।
बेवजह तकदीर आप कोसने से बचिए। 
रास्ते नए खुद ही तदबीर से गढ़ने होंगे।।
यूँ तो जर्रे सी हैसियत है आदमी की कायनात में।
होगी वही पर मुट्ठी में सारी बस पंख पसारने होंगे।।
निकलेगा जो भी अंधेरी बस्तियां रोशन करने।
घेरने हर कदम खतरे मुस्तैदी से उसपे तने होंगे।।
नूरे रोशनी जो देखनी हो परवरदिगार की।
मुखौटे तुम्हें "उस्ताद"सारे उतारने होंगे।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday 1 January 2020

2020:राम जी कृष्ण जी

अपनी # 501वीं # रचना के माध्यम से नवर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएं।आप सभी के जीवन में नित्य मंगल एवं आनंद की कृपा होती रहे।
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         "श्रीराम -श्रीकृष्ण" जग में सुन्दर दो नाम 
卐卐卐卐卐卐卐卐ॐ卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
 
श्री कृष्ण बह्म हैं जैसे सृष्टि के,श्रीराम भी तो समरूप  ब्रह्म हैं।
भेद नहीं जरा दोनों में,हाँ कथन को बस नाम-रूप विलग हैं।। 
जो कहो श्रीकृष्ण षोडशकला,परिपूर्ण परम दिव्यपुरुष हैं।
तो श्रीराम युगानुरूप,स्वतः रखते बस संकुल कलारूप हैं।।
श्रीकृष्ण जो प्रेम-रूप,धर्म-ग्लानि से समस्त संसार को उबारते हैं। 
श्रीराम स्नेह-रूप वहीं,जगत को सिखाते पाठ मर्यादा का हैं ।। 
गोचर-अगोचर दोनों ही,निर्मल नील"नलिन"कांति बिखेरते हैं।
तारकेश्वर पूजते सदा इन्हें जिनको वो मानते अपना इष्ट देव हैं।।
श्रीराम,दिवाकर के समस्त तेजपुंज को,धरा पर लेकर होते अवतरित हैं।
वहीं श्रीकृष्ण,रहस्यमई घटाटोप मध्य-यामिनी,चंद्रवंश अवतंस* हैं।।*मुकुट/श्रेष्ठ 
श्रीकृष्ण अधर-सज्ज,वंशी सुनाती सुधा रसभरे नित्य गीत है।।
श्रीराम की वैखरी* वहीं,हृदय वीणा को बार-बार छेड़, जाती है।।*वाणी की शक्ति  
पीतांबरी ही दोनों को प्रिय,जो मृदुल नील-देह,फबती खूब है।
हृदय-द्वय नवनीत,भक्त करुण-पुकार,पिघलता निमिष मात्र  है।।
@नलिन#तारकेश