Monday, 6 January 2020

300: -गजलःबात तब बिगड़ती है

506/20:

खुद से ही हो पर्दादारी बात तब बिगड़ती  है।
वरना कहो,कहाँ खुदा की नजर तंग होती है।।
माना होंगी बहुत ऐसी शय*जो तुझे नसीब न हुईं।*चीज
जो हुईं मयस्सर*उस पर क्यों नहीं नज़र रहती है।।*सुलभ
तवज्जो ही न दो बार-बार किसी के अहसास पर अगर।
दिल सिसकने से चिटक के फिर तो दोस्ती टूट जाती है।।
निराई-गुड़ाई तो करनी ही होगी अच्छी फसल की खातिर।
वरना तो उर्वरा-धरती भी बंजर धीरे-धीरे बनती जाती है।।
जज़्बात में बहक के अलाव-तापना घर फूंक अपना ही।
तेरी ये आदत "उस्ताद" दिमागी-दिवालियापन बताती है।।@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment