Thursday, 2 January 2020

297:गजल- खोलने होंगे



खिड़की,दरवाजे सब खोलने होंगे।
कब तलक यूँ अरमान घोटने होंगे।।
बेवजह तकदीर आप कोसने से बचिए। 
रास्ते नए खुद ही तदबीर से गढ़ने होंगे।।
यूँ तो जर्रे सी हैसियत है आदमी की कायनात में।
होगी वही पर मुट्ठी में सारी बस पंख पसारने होंगे।।
निकलेगा जो भी अंधेरी बस्तियां रोशन करने।
घेरने हर कदम खतरे मुस्तैदी से उसपे तने होंगे।।
नूरे रोशनी जो देखनी हो परवरदिगार की।
मुखौटे तुम्हें "उस्ताद"सारे उतारने होंगे।।
@नलिन#उस्ताद

No comments:

Post a Comment