Saturday 31 December 2022

498:ग़ज़ल: उम्मीद ए रोशनी

तोहफा मेरे नए साल भला क्या तुझे दूँ।
सोचता हूँ एक अदद कोरी ग़ज़ल दे दूँ।।

झूमती,बलखाती,मौज-मस्ती की अदाएं भरी। 
सुहाने मुस्तकबिल कि आज मैं दुआएं तुझे दूं।।

यूँ तो यहां सब कुछ है फानी ओस की बूंद सा।
है मगर जब तक साँस चल रही तराने नये दूँ।।

सूरज,चांद,सितारे कुदरत के अनमोल नजारे।
सदा हर कदम इनको दामन में लुटा तेरे दूँ।।

जाने क्यों "उस्ताद" यहाँ हर चेहरे पर उदासी बिखरी है।
दिलों में उम्मीद ए रोशनी के चलो जला चिराग सबके दूँ।। 

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Thursday 29 December 2022

497: ग़ज़ल: क्या क्या कहें

बरगलाता तो बहुत है कबूल करने से पहले प्यार तेरा। चाहता है वो दरअसल बनकर बस तू रहे सदा उसका।।

यूँ ही नहीं मोहब्बत अपनी लुटाता है किसी पर।
इत्मीनान से पहले ठोक-बजा के तौलता है पूरा।।

पत्थर नहीं वो तो है असल में दरियादिल बहुत बड़ा। 
पकड़ ले जो हाथ एक बार तो फिर कभी न छोड़ता।।

ये दुनियावी रंगीन हकीकतें तो महज कोरा ख्वाब हैं। 
जो समझो तो कायनात ये सारी तिलिस्म है उसका।।

क्या-क्या कहें,क्या-क्या लिखें और कब तक भला।
ये फन भी तो हमें सारा "उस्ताद" वही अता करता।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday 28 December 2022

496: ग़ज़ल: पेंचोखम बड़े हैं

तेरी ये जुल्फें सुलझाने में पेंचोखम बड़े हैं।
मगर देख जिद पर हम भी अपनी अड़े हैं।।

माना डगर कठिन है बड़ी कूचे की तेरे यारब।
कलेजा हाथ लिए चौखट पर सजदा किए हैं।।

जाने कितनी सदियां बीत गई तलाश में भटकते।
हौसला बदलने को मुस्तकबिल अभी भी डटे हैं।।

हर तरफ अन्धेरा गजब का डसने को बेचैन है।
परवाह से बेफिक्र हम तो बेखौफ बढ़ते रहे हैं।।

मौज लेता है क्यों हम जैसे नादानों से भी "उस्ताद"।
पर चल देख ले तू भी तलबगार भला कहाँ डरते हैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday 27 December 2022

495:ग़ज़ल:छत पर चौपाल

किस मोल है गुलशन में गुलों का खिलखिलाना।
ये पता चला जब घर हमने अपना सजाना चाहा।।

यूँ सच कहें तो हमसे ज्यादा जज़्बाती हैं ये बेज़ुबान।
दोस्ती की कदर इनको ही आता है असल निभाना।।

हवाएँ करती हैं मुखबिरी तो करने दो यार उनको।
खुली किताब रहा है बेदाग सदा किरदार हमारा।।

शाम हो गई अब तो चलो घर चलें अपने-अपने।
लिखेंगे नयी ग़ज़ल कल तब तुम हमको सुनाना।।

छत की धूप में है अब तो चौपाल रोज ही जमती।
"उस्ताद" हमें आता है सर्दियों का लुत्फ उठाना।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday 26 December 2022

494:ग़ज़ल:दुनिया के मसाइल से हटकर

जिंदगी को अपनी पूरे सुकूं से गुजारिए हुजूर।
दिमाग बस मतलब भर का ही लगाइए हुजूर।।

रंजो-गम है यहाँ हम सब के पास नसीब के।
कुछ देना ही चाहें तो खुशियां बांटिए हुजूर।।

बढ़ा तो रहे हैं कुछ कदम हम तेरे कूचे की तरफ। 
कुछ आप भी तो इनायत हम पर कीजिए हुजूर।।

हवा में कलाबाजी खाते परिंदे बेखौफ,बेफिक्र दिखते। 
कभी यूँ आप भी जरा अपना हौसला दिखाइए हुजूर।। 

कौन है वो जो चलाता है "उस्ताद" सारी कायनात को। दुनिया के मसाइल से हटकर कभी ये भी सोचिए हुजूर।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday 22 December 2022

493:ग़ज़ल: खौफ न खाओगे

हर इंच पैमाइश पर क्या रिश्तो की नींव डालोगे। 
खुदा कसम  ऐसे तो कहाँ तुम साथ निभा पाओगे।।

समझौते इसलिए नहीं कि तुम कमतर हो या कभी हम। तराजू के दोनों पलड़े हर तौल बाद बराबर तो लाओगे?।।

हर बात मुकाबला ये सिफ़त तो ठीक नहीं यारब।
ऐसे तो तुम हर बार गांठ और भी बढ़ाते जाओगे।।

बाल की खाल निकालने में भला जोर क्यों है तुम्हारा।
अभी का होश है नहीं आने वाला कल क्या संवारोगे।। 

"उस्ताद" हर शै तुम्हारी गुलाम नहीं इतना जान लो।
अब सच कहो क्या खुदा से भी तुम न खौफ खाओगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday 21 December 2022

492:ग़ज़ल:चहकते मिलो

जब भी मिलो तुम किसी से तो चहकते मिलो।
गम अपने सारे तब जमींदोज कर लिया करो।।

अजब है हर बात गुणा-भाग में ही मशगूल दिखे।
दरिया ए जिन्दगी में बेवजह पत्थर मारते हो क्यों।।

नब्ज थाम कर जो दिलों का हाल बयां कर सके।
चारागर* अब भला मिलते कहाँ जरा तुम ही कहो।।*डाक्टर 

लोग गुजर जाते हैं खबर मगर अब होती ही नहीं।
नए जमाने में ये किस तरह के रिश्ते निभा रहे हो।।

धूप सेकने को गलीचा तो सबकी खातिर बिछा लिया।
दूर के कहाँ आयें जब जुटा नहीं पाते घर के लोगों को।।

ये सच तो है हम सभी अपने-अपने दर्द से बेहाल हैं।
खुदा की खातिर मगर दूसरों के भी मरहम लगाओ।।

बुझ गया एक दीप* जो रोशन करता था दिले-आंगन।
चलो "उस्ताद" चौखट पर जरा सजदा तो कर आओ।।
*डाक्टर दीप

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday 20 December 2022

491: ग़ज़ल:

बगैर तल्खी साफगोई से करनी हर बात अच्छी है।
कम से कम शीशे सी आर-पार साफ तो रहती है।। 

कौन किसको समझाएगा भला इस नए जमाने में। 
दलीलें जब बच्चे की बड़े-बड़ों के कान काटती है।।

मौसम में ठिठुरन तो थी अब कोहरा भी देख बढ़ने लगा।
जाम खाली भर दे जरा ए साकी ये तबीयत बिगड़ती है।।

हर झोंके से हो बेखौफ हवा में परिंदे उड़ते दिख रहे।
हमारी तो बस दो कदम चढ़ने पर ही सांस फूलती है।।

बेवजह अक्सर बदनाम किए जाते हैं "उस्ताद" सभी।
बगैर देखे अपना-पराया कलम जो इनकी चलती है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 18 December 2022

490: ग़ज़ल: मौज बनी रहती है

नये जमाने की हवा बहुत शातिर हो चली है।
ले अपनी गिरफ्त में हम सबको डुबो रही है।। 

मेकअप किए सारे सामान बिक रहे अब तो बाजार में।
कहाँ बात असली-नकली की समझ हमें आ सकी है।।

कभी तो अपने हाथों को भी जुंबिश दे दिया कीजिए।
रोज थाली सजी-सजाई  दस्तरख्वान मिलती नहीं है।।

दो कदम गुनगुनाते खिरामां-ख़िरामां भी चलिए हुजूर।
देखिए तो कुदरत भी किस कदर ख़ैर-म़क्दम* करती है।।*स्वागत 

अता की है बस इसलिए थोड़ी-बहुत इल्म की खुरचन।
उंगलियाँ उठें तो मौज उसकी "उस्ताद" बनी रहती है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday 17 December 2022

489: ग़ज़ल:अपने ही अशआर याद नहीं रहते

अरमानों के सूखे पत्ते ही रह गए हम तो ता-उम्र झाड़ते।
दिले-आंगन में फल तो गिरे नहीं दरख़्त से यार अपने।।

हमारे ही करम से बनेंगी-बिगड़ेंगी लकीरें ये हाथ की। कल जो बोई थी फसल आज वही तो हम हैं काटते।।

कौन कितने पानी में है सारे कच्चा-चिट्ठे पता हैं यारब। हौंसला ये अलग है कि तो भी हम अंजान हैं बने रहते।। 

जमीन पर अच्छे से चलने का थोड़ा हुनर भी सिखाइए। चांद सितारे तो छू ही लेंगे काबिल जो है आज के बच्चे।। 

लिखाता है वो हाथ पकड़ जब चाहे गाहे-बगाहे हमसे। "उस्ताद" तभी तो ये अशआर कमबख्त याद नहीं रहते।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday 16 December 2022

488: ग़ज़ल:आस्तीन से उतार फेंकिए

जमाने की तेजी से बदल रही है रफ्तार जनाब जानिए। बाबा आदम की सोच से निकल भी अब आप आइए।। 

जिसको आपने रोशनी का मसीहा,आफताब समझा। जलाकर वो राख कर गया आशियां एक घड़ी देखिए।।

दरिंदगी,वहशीपन का कितना जहर भरा है दिमाग में।
जरा घर की चौहद्दी से कभी बाहर निकलकर बूझिए।। 

शुतुरमुर्ग की तरह रेत पर सर छुपाने से हल मिलता नहीं। 
गंधारी आंखों में श्रद्धा की पट्टी चढ़ाना अब तो छोड़िए।। 

बहुत हो चुकी गंगा-जमुनाई तहजीब की रटी-रटाई बातें। "उस्ताद" जी दो मुंहे साँपों को आस्तीन से उतार फेंकिए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday 15 December 2022

487:ग़ज़ल: उम्मीद खिलने लगी है

कुछ भी कहो फिजा तो बदलने लगी है।
धुंध जो छाई थी चौतरफा छंटने लगी है।।

हर तरफ छाया था घना अंधेरा जो एक दौर से।
कम से कम अब रोशनी दस्तक तो देने लगी है।।

निजाम ए तख्त जब से बदला है कसम से।
सुदूर मैली कुचली बस्ती भी संवरने लगी है।।

ऐसा नहीं है कि दूध के धुले ही हैं यहाँ सब कोई।
मगर जो थी कभी अन्धेरगर्दी वो मिटने लगी है।।

लब खिलेंगे "नलिन" से सबके,गंगा मोहब्बत की बह कर रहेगी।
कहीं न कहीं पुरजोर उम्मीद,दिलों में "उस्ताद" ये खिलने लगी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday 14 December 2022

486: ग़ज़ल- जन्नत भी जाना है

हर रंग  जिंदगी का ग़ज़ल में हमने अपनी ढाला है।
जिया नहीं चाहे खुद से पर यकीं सबको दिलाया है।।

तूफ़ान हो,बारिश हो या बर्फबारी हो तो भी हर हाल।
हौंसला हमारे जवानों ने हर वक्त बखूबी दिखाया है।।

अमावस की रात में बन कर पूनम तुम जो मुस्कुरा दिए।
चांद के जज्बात को तुमने क्या खूब और भी उभारा है।।

रोशनी के फव्वारे दामन में हैं अपने अक्सर सुना तो है।
हाथ में कोहिनूर बमुश्किल ये कभी किसी के आया है।।

गुस्ताखियां ए ग़ज़ल-गो हद से गुजर न जाएं तू देखना। अभी "उस्ताद" को ख्वाबों में ही सही जन्नत भी जाना है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday 13 December 2022

485:ग़ज़ल: फासले मिटते नहीं

मैले दामन को कभी वो अपने देखते नहीं। 
यूँ सिखाने में शउर गैरों को हिचकते नहीं।।

तेरी जुल्फ में गुल सजाने की ख्वाहिश तो थी ए ज़िन्दगी। जो मुकद्दर के सिकंदर होते यारब तो हम भी चूकते नहीं।

शतरंज की बिसात पर भला कौन राजा,वजीर,प्यादा। कठपुतलियों सी नचाती उंगलियों से कोई बचते नहीं।। 

बहुत लंबा सफर है और कहो तो है बहुत छोटा भी।
वक्त की पैमाइश के हमें सबब याद सारे रहते नहीं।।

जिंदगी के एक  छोर पर तू और दूसरी तरफ हम खड़े हैं। तुझसे आंख चार कर के भी "उस्ताद" फासले मिटते नहीं।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Monday 12 December 2022

484: ग़ज़ल लब खोलें तो मुश्किल

दर्द को चुपचाप सहने से मसला कोई सुलझता नहीं।
दर्द तो दर्द है यार ये जमाने से कभी भी छुपता नहीं।।

नए जमाने का आफताब* अब तो शर्मोगैरत में डूबो रहा है।*सूर्य 
सफर को अकीदत* के हमारे तार-तार करने से बाज आता नहीं।।*श्रद्धा

ये किन चांद-तारों पर जा झंडे गाड़ने की बात कर रहे हो तुम।
अपनी जमीं के मसाइलों* का ही हमसे जब हल निकलता नहीं।*मुश्किलें

कहाँ तो मुतमईन* था जमाना की जमाने की फिजा बदलेगी।*निश्चिन्त 
मगर यहाँ तो दूर-दूर तक बदलता मुस्तकबिल* दिखता नहीं।।* भविष्य 

जख्म जब अपने ही दें तो कोई क्या करें "उस्ताद" कहो तुम।
लब खोलें तो मुश्किल और सिलें तो चैन जरा भी मिलता नहीं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday 9 December 2022

ग़ज़ल 483: नए जमाने का इश्क

दिल की किताब अब चेहरे से पढ़ी जाती नहीं है।
उम्र गुजर जाए तहे जिल्द उसमें इतनी चढ़ी है।।

हर टूटते दिल की आवाज में अजब खामोशी मढी है।
कम कहने को कानों में देखो सबके सांकल* लगी है।।*चिटकनी 

दर्द निगाहों से बहना भी चाहे तो भला बहे कैसे।
आंखों से कजरे की चमक जो धुल के मिटती है।।

सुनहरे ख्वाबों की तामील को जमीं तो पुख्ता चाहिए।
वर्ना बिना रगड़े कहाँ हिना भी खिलखिला सकती है।।

नए जमाने का इश्क "उस्ताद" हमारे पल्ले तो पड़ता नहीं। प्यार की एक पेंग भरने से पहले जिसकी डोर चिटकती है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday 1 December 2022

482:ग़ज़ल हमें क्या हम तो

जो हुआ सो हुआ चलो सब कुछ भूल जाएं।
गुलशन में फिर से बहारों के नए गीत गाएं।।

मौसम ए मिजाज तो है बदलना,कभी गरम कभी ठंडा।   

हालात हो बदतर तो भी हौंसला भला क्योंकर गवाएं।। 

इश्क है आसां नहीं निभाना गालिब भी जब कह गए।
 आओ पतंगा बन उम्मीद ए रोशनी में चलकर नहाएं।।

किस्मत की लकीरें जो लिखना चाहें हर कदम वो लिखें।
हमें क्या हम तो तूफानों को बस जा गले अपने लगाएं।।

दिल तो नाजुक से है टूटता है कई बार हालात बिगड़ने से। 
"उस्ताद" ए फन तो यही है हम हर बार मुस्कुराते नजर आएं।।