Wednesday 28 December 2022

496: ग़ज़ल: पेंचोखम बड़े हैं

तेरी ये जुल्फें सुलझाने में पेंचोखम बड़े हैं।
मगर देख जिद पर हम भी अपनी अड़े हैं।।

माना डगर कठिन है बड़ी कूचे की तेरे यारब।
कलेजा हाथ लिए चौखट पर सजदा किए हैं।।

जाने कितनी सदियां बीत गई तलाश में भटकते।
हौसला बदलने को मुस्तकबिल अभी भी डटे हैं।।

हर तरफ अन्धेरा गजब का डसने को बेचैन है।
परवाह से बेफिक्र हम तो बेखौफ बढ़ते रहे हैं।।

मौज लेता है क्यों हम जैसे नादानों से भी "उस्ताद"।
पर चल देख ले तू भी तलबगार भला कहाँ डरते हैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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