Tuesday, 27 December 2022

495:ग़ज़ल:छत पर चौपाल

किस मोल है गुलशन में गुलों का खिलखिलाना।
ये पता चला जब घर हमने अपना सजाना चाहा।।

यूँ सच कहें तो हमसे ज्यादा जज़्बाती हैं ये बेज़ुबान।
दोस्ती की कदर इनको ही आता है असल निभाना।।

हवाएँ करती हैं मुखबिरी तो करने दो यार उनको।
खुली किताब रहा है बेदाग सदा किरदार हमारा।।

शाम हो गई अब तो चलो घर चलें अपने-अपने।
लिखेंगे नयी ग़ज़ल कल तब तुम हमको सुनाना।।

छत की धूप में है अब तो चौपाल रोज ही जमती।
"उस्ताद" हमें आता है सर्दियों का लुत्फ उठाना।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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