Wednesday, 21 December 2022

492:ग़ज़ल:चहकते मिलो

जब भी मिलो तुम किसी से तो चहकते मिलो।
गम अपने सारे तब जमींदोज कर लिया करो।।

अजब है हर बात गुणा-भाग में ही मशगूल दिखे।
दरिया ए जिन्दगी में बेवजह पत्थर मारते हो क्यों।।

नब्ज थाम कर जो दिलों का हाल बयां कर सके।
चारागर* अब भला मिलते कहाँ जरा तुम ही कहो।।*डाक्टर 

लोग गुजर जाते हैं खबर मगर अब होती ही नहीं।
नए जमाने में ये किस तरह के रिश्ते निभा रहे हो।।

धूप सेकने को गलीचा तो सबकी खातिर बिछा लिया।
दूर के कहाँ आयें जब जुटा नहीं पाते घर के लोगों को।।

ये सच तो है हम सभी अपने-अपने दर्द से बेहाल हैं।
खुदा की खातिर मगर दूसरों के भी मरहम लगाओ।।

बुझ गया एक दीप* जो रोशन करता था दिले-आंगन।
चलो "उस्ताद" चौखट पर जरा सजदा तो कर आओ।।
*डाक्टर दीप

नलिनतारकेश @उस्ताद

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