Friday, 16 December 2022

488: ग़ज़ल:आस्तीन से उतार फेंकिए

जमाने की तेजी से बदल रही है रफ्तार जनाब जानिए। बाबा आदम की सोच से निकल भी अब आप आइए।। 

जिसको आपने रोशनी का मसीहा,आफताब समझा। जलाकर वो राख कर गया आशियां एक घड़ी देखिए।।

दरिंदगी,वहशीपन का कितना जहर भरा है दिमाग में।
जरा घर की चौहद्दी से कभी बाहर निकलकर बूझिए।। 

शुतुरमुर्ग की तरह रेत पर सर छुपाने से हल मिलता नहीं। 
गंधारी आंखों में श्रद्धा की पट्टी चढ़ाना अब तो छोड़िए।। 

बहुत हो चुकी गंगा-जमुनाई तहजीब की रटी-रटाई बातें। "उस्ताद" जी दो मुंहे साँपों को आस्तीन से उतार फेंकिए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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