Thursday 29 December 2022

497: ग़ज़ल: क्या क्या कहें

बरगलाता तो बहुत है कबूल करने से पहले प्यार तेरा। चाहता है वो दरअसल बनकर बस तू रहे सदा उसका।।

यूँ ही नहीं मोहब्बत अपनी लुटाता है किसी पर।
इत्मीनान से पहले ठोक-बजा के तौलता है पूरा।।

पत्थर नहीं वो तो है असल में दरियादिल बहुत बड़ा। 
पकड़ ले जो हाथ एक बार तो फिर कभी न छोड़ता।।

ये दुनियावी रंगीन हकीकतें तो महज कोरा ख्वाब हैं। 
जो समझो तो कायनात ये सारी तिलिस्म है उसका।।

क्या-क्या कहें,क्या-क्या लिखें और कब तक भला।
ये फन भी तो हमें सारा "उस्ताद" वही अता करता।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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