Thursday 25 February 2016

बंदरबांट

खैरात सूखाग्रस्त को बांटते हैं वो इस नाज़ोअन्दाज भरे हाथ
मानो खज़ाना लूटा रहे मेहनत्त भरा,जेब में अपनी डाल के हाथ।
बहुत बड़े नेता बन आपके, लूटते हैं आपको  हर बार
फिर खींचते हैं संग सेल्फ़ी आपका चूमते हुए हाथ।
ज़मीनी हकीकत से परचित नहीं,उड़ते जो हवा में आज
ज़ल्द ही देखेंगे वो अपनी गिरेबान में,कसते हुए हाथ।
चल रहा मौसम सारे जहाँ का बेढंगा,कोढ़ में जैसे खाज़
ये बचेंगे कहाँ जब लोग मिला लेंगे अपने  हाथ से हाथ।
चुपचाप सह  लेते हैं जो नियति समझ कर बंदरबांट
"उस्ताद" पिसते रहेंगे वो तो सदा ही बस  इनके हाथ।


Saturday 20 February 2016

तिरंगे तू मेरे वतन की आन-बान और शान रहा है




तिरंगे तू मेरे वतन की आन-बान और शान रहा है
तू ही तो प्यारे असल में मेरे भारत का ताज रहा है।
रंग केसरी,श्वेत,हरा जब-जब तू फरफराता रहा है
शौर्य,शांति,विकास का गीत तू हमेशा गाता रहा है।
काल चक्र जैसे अनवरत सृष्टि में सदा बहता रहा है
तीली चौबीस सजा उर,दिन-रात का तू प्रतीक रहा है।
देख-देख सबका तुझे  गर्व से सीना फूल जाता रहा है
राष्ट्र-निष्ठा की शपथ तू हमेशा हमें याद दिलाता रहा है।
हर सैनिक वीर शहीद का तू सदैव प्रेरणा स्रोत रहा है
खेल-कूद में जीत का ज़ज्बा तू ही तो भरता रहा है।
वतन की मिटटी,मिटटी नहीं माँ का आँचल रहा है
तिरंगे अमर तू यही भाव तो हमें सीखाता रहा है।
ये अलग आज कि तुझ पे ही कोई सवाल उठ रहा है
दिले-महबूब से पर भला प्यार का कोई वक्त रहा है।
आसमां साफ,शुभ्र प्रकाश तब तो सवाल ये ठीक रहा है
पर घुप्प अँधेरे तुझसे ही तू उजाला हर पथ होता रहा है।
नमक-हराम,राजनीति को जो तुझसे जोड़ रहा है
कसम"तिरंगे"की वो अपनी ही कब्र खोद रहा है।
लाल भारत का हर सांस तुझसे ही जो लेता रहा है
जान न्योछावर के लिए आज वो तो  मचल रहा है।


















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Thursday 18 February 2016

साईं तेरा जादू अब सिर चढ़ के बोलता है



साईं तेरा जादू अब सिर चढ़ के बोलता है  
जहाँ देखता हूँ बस तू ही दिखाई देता है । 
मेरी क्या बिसात जो ज़रा भी कुछ कर सकूँ 
मेरा हर काम तो तू ही हर बार किया करता है।
ये नाम,ये दौलत,ये बेवज़ह वाह-वाही मेरी 
क्या करूँ ये गुरुर भी तू ही तो दिया करता है।  
मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा और गिरजाघर
रूप बदल कर बस तू ही तो रहा करता है। 
कायनात में छायी है हर तरफ तेरी खुशबू 
महसूस हो जाए अगर तो दीवाना बना देता है। 
सुख, दुःख उल्लास और बेचारगी सारी 
जिंदगी में हमारी तू ही तो भरा करता है। 
   

जब भी नाम लिया तुम्हारा




जब भी नाम लिया तुम्हारा
मुश्किलों से हुआ किनारा।
हर शख्स की जुबान पर
गुलज़ार हुआ नाम हमारा।
दिन को रात,रात को दिन बनाया
जैसा चाहा तूने मेरा वक्त बनाया।
तेरी चौखट झुका के माथा
हमने खूब नाम कमाया।
मेरी खातिर तूने जाने
 कैसा -कैसा वेष बनाया।
ज़र्रा -ज़र्रा महक रहा है
जब से तूने गले लगाया।   

Tuesday 16 February 2016

लखनपुरी हनुमान सेतु में


लखनपुरी हनुमान सेतु में,खूब सजा बांका-दरबार
बाबा नीबकरोली मंदिर,संग जुड़ा श्री राम दरबार।

मात "भवानी" स्वयं विराजी,सिंह पर कर अदभुत श्रृंगार
तो "मृत्युंजय" शिवजी बैठे,नन्दी वाहन भव्य आकार ।



नवल-वसंत,माघ मास का,शुक्ल पक्ष छाया उजियार
जाने हुआ कितने भक्तों का,शुभ्र स्वप्न आज साकार।

बाबा ने सपने में आकर,भक्त विदेशी किया तैयार
अमरीका से फिर दौड़ा आया,वो ले रुपये ढेर हज़ार।







कॉरिडोर बना ऐसे ही,और सजा फिर हर एक द्वार                                                
भक्त खड़े थे एक पाँव पर,बाबा की सुन कृपा पुकार।

प्रीत -"विनोद" बरसे "जीवन" में,उनका हम पर है उपकार
चन्द्र,"दिवाकर"निशदिन प्रस्तुत,बाबा  "सिद्धि" अपरम्पार।



तुम जो मांगो पल में देते, ऐसे हैं करुणा- अवतार 
हृदय "नलिन" "सदानंद" रहता,छूट गया माया संसार।  

Monday 15 February 2016

साईं नाम बोलो,अमृत घोलो



साईं नाम बोलो,अमृत घोलो 
साईं राम बोलो,अमृत घोलो । 
जीवन है एक ग़हरा  दरिया 
जिसमें चलती सबकी नैय्या। 
लेकिन भवसागर से पार वही हो 
जिसका साईं बने खेवैया। 
हर मुश्किल आसान करे वो
 हर संकट को दूर करे वो। 
जो जपता  है निशदिन नाम 
साईं करे उसका कल्याण।
खुदा तू ही राम तू ही है 
वाहे गुरु और महावीर भी। 
ईसा,बुद्ध सभी कुछ तू ही 
साईं मेरे सबका मालिक एक तू ही।  
साईं नाम बोलो,अमृत घोलो 
साईं राम बोलो,अमृत घोलो।  

Sunday 14 February 2016

देश के हालात दिन ब दिन बद्तर होते जा रहे



देश के हालात दिन ब दिन बद्तर होते जा रहे 
सब भांड सेक्युलर,गद्दारोँ से मिलते जा रहे। 
जाने किस मिटटी से बना है इन सबका ज़मीर 
ये तो सपोलोँ से ज्यादा विष वमन करते जा रहे।
जिस थाली में खाते उसी में थूकते इन्हें लाज नहीं 
पागलोँ को क्यों हम"बुद्धिजीवी"का तमगा देते रहे। 
अभिव्यक्ति के नाम पर नंगा नाच जो कर रहे 
खुदा जाने क्यों इन पर हम इतने मेहरबां हो रहे। 
भगत,आज़ाद,...हनुमतथप्पा से हज़ार शहीद हो गए 
देश में कैसे मगर ये राष्ट्रद्रोही खाद-पानी पा रहे। 
बहस,मुखालफ़त,झगड़े हर बात चाहे हम हज़ार करते रहें 
नेता,पुलिस,कानून,मीडिया देश की खातिर अब एक रहे। 
"शठे - शाठ्यम" की नीति से अब भी परहेज़ करेंगे अगर 
पाँव तले इंच भर जमीं भी ना फिर "उस्ताद" कल बाकी रहे। 

Friday 12 February 2016

नवल वसंत ऋतुराज का


नवल वसंत ऋतुराज का प्रकृति प्रिया से मिलन हो गया।
दसों दिशाओं  मदिर,रमणीय मधुमास देखो है छा गया।।
हर अंग-अंग प्रकृति का शोख कमनीय हो गया।
कुम्हलाये हर गात में नव रस का संचार हो गया।।
धरा,सलिल,अम्बर,समीर कौन भला जो वंचित रह गया।
चेतन-अचेतन जगत सारा प्रफुल्ल चित्त हो महक गया।।
वन-उपवन,शैल.सरिता हर कोई कृत-कृत्य हो गया।
पशु-पंछी,जीव-जलचर सब पर नशा अज़ब हो गया।।
प्रीत-पीयूष का उल्लास तन-मन वासंती रंग गया।
इन्द्रधनुष सा रंगीला, मन "नलिन" उमंगित हो गया।।