Monday 30 November 2015

साईंमय हैं हम

साईंमय हैं हम
बस इसका आभास हो जाए।
बीच में जो पाली है
हमने खुद से
तेली की दीवार
वो ढह जाए।
बस फिर कहाँ है
दुःख,कष्ट,पीड़ा
हमारे जीवन जगत में।
सब तरफ तो है छाया
आनंद ही आनंद
मात्र परमानंद।
जिसमें हम निमग्न
तिरते हैं हर छन सदा।

Wednesday 25 November 2015

मेरे मन बसे में हो तुम




मेरे मन बसे में हो तुम
मुझको पर दिखते नहीं हो तुम।
ऐसा क्यों हो रहा है
कहीं रूठ तो नहीं गए हो तुम।
अगर कहीं कुछ ऐसा है भी
तो भी कभी झलक दिखा दो तुम।
मैं बैचैन माया में लटपटाया पड़ा हूँ
 फासलों को पाट गले लगा लो तुम। 

Sunday 18 October 2015

दिल में मुझे अपने बसा ले तू

दिल में मुझे अपने बसा ले तू
मेरे दिल में या कुटिया छवा ले तू।
जिधर भी कदम चलें मेरे उधर चले तू
मेरे पावों को या अपनी मंजिल बना ले तू।
हर शख़्स में अपना दीदार करा दे तू
मेरे अक्स में या अपना रूप दिखा दे तू।
हर हंसी,हर गम,हर ज़ज्बात में समाया है तू
इस बात के अहसास की लियाकत दिला दे तू।
ए खुदा!मुझे अपना बना के मशहूर कर दे तू
तेरे लिए सब भुला दूँ या ये कूवत दिला दे तू।























Friday 16 October 2015

मेरे बाबा की महिमा है बड़ी न्यारी




मेरे बाबा की महिमा है बड़ी  न्यारी 
देख-देख मंत्रमुग्ध है दुनिया सारी। 
कहते थे बाबा ही अपने श्री-मुख से 
आयेंगे भक्त हज़ार देश-विदेश से। 
होगा कैंची धाम फिर कौतुक हर रोज़ 
पाकर भोग-प्रसाद होगी सबकी मौज़। 
अटूट भाईचारे की बन गया ये मिसाल 
बाबा ने चुपचाप ही ,ऐसा किया कमाल। 

Thursday 15 October 2015

मेरे अंतर्मन में



राम तुम हो मेरे अंतर्मन में 
मेरे क्या सबके ही उर में। 
फिर भी लेकिन ये क्यों होता 
दिखते नहीं कभी तुम मुझ में। 
यदि हो रहते,नहीं हो दिखते 
तो भी ऐसी कोई बात नहीं । 
पर ये तो सोचो,जब तुम बसते  
फिर क्यों रहते पाप ह्रदय में। 
जो भी हो कुछ तो है गड़बड़ 
जिसका करो अब इलाज हरे। 
वरना तो मेरा क्या,बेशर्म मै ठहरा 
होगा प्यारे!तेरा ही उपहास जगत में। 


गुरुदेव सुन लो मेरी करुण पुकार



गुरुदेव सुन लो मेरी करुण पुकार
देखो खड़ा हूँ मैं कब से तेरे द्वार।

यद्यपि विनय मेरी बड़ी भोली है सरकार
 तथापि भीतर तो है मल की गठरी अपार।

तो भी जो तेरे आगे लगा रहा हूँ गुहार
जानता हूँ अवश्य तू लेगा मुझे उबार।

करुणा निधान,वात्सल्य के अनुपम भण्डार
कब गिनेगा तू भला मेरे दुर्गुण अनेक हज़ार।

तू तो सदा है  प्रस्तुत करने मेरा उपकार
देकर ह्रदय को मेरे निर्मल नाम आधार।


Monday 12 October 2015

माँ जानकी



माँ जानकी तेरे श्री चरण नलिन की महिमा अदभुत न्यारी
इन युगल चरणों की नख कांति पर मैं तोजाऊँ बलिहारी।
जितना वैभव सम्पूर्ण सृष्टि के लोक-लोक  में कुल संचित होगा
वो सब देख-देख एक छटा बस तेरी,प्रतिपल लज्जित होता होगा।
ज्ञान-विज्ञान,कलाऔर दर्शन आदि जो कुछ भी है इस ब्रह्माण्ड में
तेरे मात्र  भ्रू विलास का ही तो सारा खेल छुपा है माता रानी इनमें।
श्री राम चरण रति,निर्मल "नलिन" मति निशिदिन हो जाए
ऐसी अति उत्तम कृपा तू कर दे,जीवन सफल मेरा हो जाए। 

Wednesday 16 September 2015

351 -शिर्डी साईं बाबा के गुरु लाहड़ी महाशय ?

ड़ी 




बहुत समय पूर्व एक पुस्तक "पुराण पुरुष योगिराज श्री शयामचरण लाहड़ी "पढ़ने का सौभाग्य मिला था उसमे शिर्डी के साईं बाबा के गुरु के रूप में श्री श्यामाचरण लाहड़ी जी के होने की संभावना व्यक्त की गयी है। व्यक्तिगत रूप से मुझे भी इस मान्यता को स्वीकार करने का मन कर रहा है। लाहड़ी महाशय पर लिखी इस पुस्तक की प्रमाणकिता पर किंचित संदेह नहीं हे क्योंकि यह पुस्तक लाहड़ी जी के सुपौत्र श्री सत्यचंरण लाहड़ी  ने अपने दादा जी की हस्तलिखित डायरीयों के आधार पर डॉ अशोक कुमार चट्टोपाधयाय से लिखवाई है,वैसे इसका बांग्ला से मूल अनुवाद श्री छविनाथ मिश्र जी ने किया है।
आध्यात्मिक विषय में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए श्री लाहड़ी महाशय का नाम अपरचित नहीं होगा। लाहड़ी महाशय के गुरु महावतार बाबा जी थे (थे के स्थान पर हैं शब्द अधिक उपयुक्त है) जिनकी चर्चा योगानन्द परमहंस जी महाराज की बहुचर्चित,विश्वप्रसिद्ध पुस्तक "ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी "में अपने दादा गुरु के रूप में की गयी है। महावतार बाबा जी को हमारे उत्तराखंड में हेड़ाखान बाबा जी  के रूप में स्मरण,पूजन और आदर के साथ स्वीकारा जाता है ,क्योंकि मेरा भी उत्तराखंड पैतृक स्थान रहा है और हेड़ाखान जी का दिव्य विग्रह पैतृक घर की हाल तक शोभा बढ़ाता रहा ,वर्तमान में वह वृन्दावन के लोहवन   स्थित आश्रम में है। अस्तु, इस पुस्तक के अनुसार लाहड़ी जी की डायरी में इस बात का उल्लेख है कि उन्होंने नानकपंथी साईं बाबा को क्रिया योग की दीक्षा दी थी। यूँ शिर्डी बाबा ने कभी अपने गुरु का नाम उजागर नहीं किया ,हाँ धर्म सम्बंधित विचारोँ और साधना पद्धिति की दृष्टि से दोनों में अवश्य मेल दिखाई देता है। साईं बाबा कबीर पंथी थे या नानक पंथी यह स्पष्ट नहीं है न ही ये की वे कहाँ के थे। दूसरी और लाहड़ी महाशय के जीवनकाल में भारतवर्ष में एकमात्र शिर्डी साईं बाबा का नाम मिलता है अन्य का नहीं। आशा है विज्ञ पाठक यदि इस पर अधिक प्रकाश डाल सकें तो सूचित करें। 

Sunday 13 September 2015

350 - मुण्डक उपनिषद से (हिंदी दिवस पर )


गुरुवर अत्यंत विनत भाव से 
पूछता हूँ एक प्रश्न आपसे 
ज्ञान कौन सा है कहिये मुझसे
समस्त विश्व जान लूँ जिससे।
  


ओम ,परम पूज्यनीय आप हमारे  

 करते हैं प्रार्थना मिल हम सारे 
कान सुने हमारे जो शुभ हो
 देखें नेत्र वही जो शुभ हो
 यज्ञादि कर्म हमारे शुभ हों 
 दक्ष बनें,अंग-प्रत्यंग पुष्ट हों
जीवन अवधि योग पूर्ण हो
देव सभी तेज़ बुद्धि बलदायक हों 
सबके प्रति कल्याण भाव हो। 
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निः सीमिता के अनंत तट पर सर्वत्र 
यह संसार तो है एक कण मात्र। 
तो करो जरा ठीक से विचार 
कहाँ टिकता है "स्व" का सार। 
जन्म-मृत्यु,प्रकाश-अन्धकार 
दिन-रात,सत-असत का गुबार।
उत्कट द्वैध,जो अंशतः दृष्टिगोचर मात्र 
अंततः तिरोहित होता अक्षय ब्रह्म पात्र। 
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परमात्मा तो है सनातन,शुद्ध 
अंतर,बाह्य,सर्वत्र व्याप्त,बुद्ध। 
जीवन-मृत्यु दोनों से परे  
साकार-निराकार कौन भेद करे। 
असंख्य ब्रह्माण्ड उदरस्थ उसके 
निमिष में जन्म लेते,मरके। 
स्वांस-प्रच्छवास,इंद्री-मन हमारे 
पंच-तत्व के गुण विभाग सारे। 
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Thursday 27 August 2015

349 - राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।




राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा जीवन राम-राम,मेरा मरना राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा विश्वास राम-राम,मेरा अविश्वास राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा अनुराग राम-राम,मेरा विराग राम-राम।। 
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा क्रन्दन राम-राम,मेरा हास्य राम-राम।। 
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा मौन राम-राम,मेरा वाक राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा बल राम-राम ,मेरा अबल राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा सत्य राम-राम,मेरा असत्य राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा जयगान राम-राम,मेरा अपमान राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा ज्ञान राम-राम,मेरा अज्ञान राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा सर्वस्व राम-राम ,मेरा शून्य राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 

348 - घर ओ मेरे प्यारे घर तू तो है सबसे न्यारा घर।



घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर। 
कितना प्यार करता हूँ -मैं तुझे 
और तू भी तो करता है -प्यार मुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
एक दूजे से हो गया है 
प्यार ही प्यार-तुझे मुझे। 
दरअसल हम बनें ही हैं 
कि प्यार करे तू मुझे 
और में करूँ प्यार तुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
बाँहों में बाहें डाल के मैं 
चलता हूँ  तुझे 
तू भी तो अपनी बाँहों में 
झूलता है मुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
तू कितना न्यारा और सजीला है 
ओ मेरे दिलदार,घर मेरे 
देखने आते हैं सब तुझे 
जोहता है बाट तू मुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
जाने कितने सपने दिखाए हैं 
तेरी आँखों ने मुझे 
हकीकत के रंग से सजे 
सब न्योछावर हैं तुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
"नलिन" सी खिलती जिन्दगी मेरी 
भेंट है तेरी मुझे 
उपकृत जीवन भर हूँ सदा तेरा 
और क्या कहूँ भला तुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।

Wednesday 26 August 2015

347 -राम- तुम्हारे गुन गाऊँ


राम- तुम्हारे गुन गाऊँ 
सदा तुम्हें एकमात्र पुकारूँ। 
साँस-साँस की हर लय में 
तेरा सुन्दर गीत उचारुं। 
जाने कितने पुण्यों से 
तेरा ये प्रसाद मिला है। 
जनम-जनम,भटक-भटक 
मुझको मानव आकर मिला है। 
तो व्यर्थ इसे क्यों जाने दूँ 
तेरे पीछे क्यों न आऊँ। 
जैसे-तैसे तुझे रिझा कर 
जीवन अपना सफल बनाऊँ। 

Monday 24 August 2015

346 -राम तो अब करो कुछ ऐसा


राम सोचता हूँ मैं  
रो कर तुम्हें अब न पुकारूँ। 
अश्रु वेदना भरे घट से 
चरंण तुम्हारे अब न पखारूँ। 
तुम तो हो आनंद सागर 
विश्व के उदार-नायक।
जी को तुम्हारे न जलाऊँ 
खुद हँसू तुम्हें हँसाऊँ । 
अटपटे रस भरे बोल से 
तुम्हें अब मैं सदा रिझाऊँ। 
अश्रु कण दरअसल नमकीन हैं 
पर तुमको पसंद मधु अर्क है। 
पर करूँ क्या भगवन 
मैं भी तो विवश हूँ। 
मुझे तो तुमसे मिली 
यही कृपापूर्ण सौगात है। 
राम तो अब करो कुछ ऐसा 
तुम्हारा भी बन जाए काम। 
मेरा भी छूटे हर घडी का रोना 
खिल जाए "नलिन" मुख सलोना। 
मेरे दुखों के उबलते सैलाब में 
कृपा का अपनी मधु उड़ेलो। 
चाशनी एक तार की बने जब 
पंच तत्वी  देह तब मेरी डुबो दो। 
इस तरह से रोम-रोम में 
पंचामृत का संचार होगा। 
नर जीवन जो दिया तुमने
 उसका वास्तविक उद्धार होगा।   
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Sunday 23 August 2015

345 -"तत्वमसि"



रंग अनूठा इस दुनिया का प्यारा 
हम को हर रोज निमंत्रण  देता है।
लेकिन इसके जाल जो भी फंसता 
वो जीवन भर बस रोता ही रहता है। 

जीवन की इस आपाधापी में 
मन तो बहुत कलपता है। 
हाँ जब अपने से नैन मिलाता 
तब वो खिलने लगता है। 

जीवन घट जब भरने लगता है 
स्वर भी बदलने लगता है।
जब जीवन घट पूरा भर जाता  
स्वर मौन हुआ मिट जाता है। 

जनम-जनम की रगड़ निखरता 
मिटटी से फिर कंचन होता है। 
उसमें तुझमें भेद कहाँ कुछ 
#"तत्वमसि" तू हो जाता है।
(#तू वही हो जाता है )

Thursday 20 August 2015

कैंची बाबा का भंडारा 





कैंची में बाबा का भंडारा
चल रहा, जोर-शोर से आज।
जैसा कि हर बरस इसी दिन
लगता है ये हर बार।
ऋद्धि-सिद्धि की करनी का
कौन कर सके गुणगान
बाबा जिसको यश दिलवाते
जग में वो पाता सम्मान।
भक्तों का ताँता लगता है
कैंची धाम में आज।
जैसा भाव ले यहाँ जो आता
वैसा फल पाता तत्काल।
मालपुआ प्रसाद में पाकर
तन-मन तृप्त, करे अपार।
जन्म-जन्म के बंधन कटते                                                                        
 ऐसा सब जन का विश्वास।
बाबा अदृश्य रूप विचरते
गली-गली हर धाम।
श्रद्धा- विश्वास यदि हो तुमको
दर्शन होते हाथों-हाथ।
कभी कृपा-स्वरुप बन स्वयं ही
देखो करते हमें निहाल।
बाबा के श्री चरण-प्रताप से
कटता सारा माया-जाल।
आओ फिर छोड़ सभी कुछ
कर लें बाबा का गुणगान।
जीवन सफल हो जाए अपना
पाएं जो हम ऐसा वरदान।

Wednesday 19 August 2015

344 -राम-राम बस एक राम



राम तुम्हारा उपकार
दर्द का यह सैलाब।
कराता है तुम्हारा ही स्मरण
छन-छन,प्रतिपल।
कुछ और नहीं सूझता
अन्धकार को जो दे विराम।
केवल एक तुम्हारा ही नाम
राम-राम बस एक राम।
यही एक आधार
मुझमें भरता आत्मविश्वास।
घटाटोप अन्धकार भी हटेगा
मेरा रूठा मीत मिलेगा। 
भानु शिरोमणि अपने प्रकाश से
उर "नलिन" खिला देगा।
हर संताप मिटा देगा
रोम-रोम महका देगा।
 तेरी अमृत सुवास से
अक्षयवट बनेगा जीवन।
बहेगा-निर्मल आनंद
हर पल,हर छन निरन्तर। 

Tuesday 18 August 2015

343 - राम-मैं खड़ा चतुष्पथ पर



राम-मैं खड़ा चतुष्पथ पर 
किंकर्तव्यविमूढ़ बन कर। 
स्थितियां परिस्तिथियाँ अधिक क्लिष्ट 
जैसी थीं अर्जुन के वक्त पर। 
तो भला क्यों करते हो विलम्ब 
आओ चक्षु खोलने श्री कृष्ण बन कर। 
यद्यपि नहीं रहा कभी पुरुषार्थ वैसा 
जो हुआ हो विस्मृत आ इस पथ पर। 
पर तुम तो ठहरे वही अनित्य करुण मीत 
सौगंध बंधे-अरी मर्दन,सदैव प्रस्तुत हो कर। 
जीव की एक व्याकुल पुकार पर 
ह्रदय की गहरी एक आह पर। 
तो आओ शीघ्र अत्ति शीघ्र नाथ,सखा 
क्लीवता मेरी,जग उपहास करेगा तुम पर। 

Monday 17 August 2015

342 - मन-मंदिर को तिरंगा रंगा दें



स्वतंत्रता का जयघोष जो गगन में हो रहा आज उल्लास से 
आओ मिल कर हम सभी उन स्वरों को अब एक आकार दें। 
जाने कितने वर्ष बीत गए राह पथरीली पर चलते हुए मगर 
आओ आज मिल कर हम सभी डगर प्यारी फूलों की बना दें। 
वृद्ध,युवा,बाल जाति-पाति के भेद सब छोड़ समवेत उठकर
आओ मिल कर हम सभी परस्पर नया एक जोश जगा दें।
दुनिया जो लिख रही गाथा नित नयी ऊंचाई की हर दिशा में 
आओ मिल कर हम सभी देश अपना उसमें अग्रणी बना दें। 
प्यार,मोहब्बत,भाईचारा ये तो हमने हर रोज घुट्टी में है पीया 
आओ मिल कर हम सभी इस संस्कार से धरा को स्वर्ग बना दें।
रंग तो बहुत हसीन हैं इस दुनिया में इन्द्रधनुष से फैले हुए   
आओ मिल कर हम सभी मन-मंदिर को बस तिरंगा रंगा दें। 

Friday 14 August 2015

341 - प्रार्थना तो बहुत हुई

प्रार्थना तो बहुत हुई
अब कृपा का वरदान दीजिये।
मेरे प्रभु श्रीराम अब तो
चरणों में स्थान दीजिये।
मैं दीन,हीन मलिन मति
दुर्भाग्य को मिटाइये।
भग्न ह्रदय,सुरहीन गीत
अब और न  भटकाइये।
अतृप्त "नलिन" नैन बस कर
मेरे भाग्य तो सवारिये। 

Tuesday 11 August 2015

340 - राम-रमैया, नाच-नचैया,ता-ता थैया



राम-रमैया 
नाच-नचैया 
ता-ता थैया
ता-ता थैया।
जिसको जैसा नाच नचाए
 वैसा ही वो नाचे भइया। 
राम-रमैया  ....... 
भेद तो अपना वो ही जाने
 ऐसा नटखट बाल कन्हैया। 
राम-रमैया   …… 
कभी पकड़ कर अंग लगाये 
छन में ओझल,मेरी दइया। 
राम-रमैया   …… 
आँख मिचली बस अब और नहीं अब
 तुझको सौं है,पकडूँ मैं पैयाँ। 
राम-रमैया   ……
तेरी मोहक,बांकी चितवन पर 
पल-पल मैं नित लेउँ बलैयां। 
राम-रमैया 
नाच-नचैया 
ता-ता थैया
ता-ता थैया।

















Friday 7 August 2015

339 - राम तुम मनमीत बनो

राम तुम मनमीत बनो
मेरी अब तुम प्रीत बनो।
जीवन की हर लय में
तुम मेरा संगीत बनो।
चाहे कुछ विषाद रहे
या मन उल्लास रहे।
सांसों में  तुम प्राण भरो
जीवन में सत्यार्थ भरो।
हर छन,हर पथ साथ रहो
ध्यान में मेरे सदा रहो।
उर का दृढ विश्वास बनो
मेरे तुम मनमीत बनो।

Thursday 6 August 2015

338 -जमीं दरकती है पाँव तले

चमक रहे बरक़रार,ये ध्यान तो बहुत है अगले को
जमीं दरकती है पाँव तले,फ़र्क कहाँ पर अगले को।

अपने अहम में दिखता है डूबा आज सभी का किरदार
जलती जा रही रस्सी मगर कौन समझाए अगले को।

तृष्णा उकसाती है सदा लूट,आतंक से जीवन बसर को
भला सुख,शांति एक पल फिर मिले कैसे बता अगले को।

"उस्ताद" बन जो उम्र भर पिलाते रहे ज़हर सारे जहाँ को
 बखूबी वही मज़लूम  देगा सबक एक वक़्त अगले को। 

Wednesday 5 August 2015

337 - आलोक में हे नाथ अपने



आलोक  में हे नाथ अपने,हमको शरण अब दीजिये 
तमसाच्छादित इस नरक से,शीघ्र दूर अब कीजिये।
हमने ही हाथ से खुद ही,पट उर के हैं बंद कर लिए   
 बल,शील,बुद्धि दे हमें आप,थोड़ी मदद तो कीजिए। 
बुद्धि-लाघव जगत के व्यापार का,है कहाँ कुछ भी पता 
इस लिए जरा मतिमूढ़ पर,वरद-हस्त अपना कीजिए।
जन्म-जन्मों से श्वासोच्छवास का,सिलसिला ही चल रहा 
कभी मुरली की टेर से,राधा सा मोहित हमें कर लीजिये।
मधु-मिलन की हो हर चाह पूरी,स्वप्न मैंने जो संजोयी  
काल-ग्रह गणित की चाल ऐसी,अनुकूल श्रीहरि कीजिए।
खिलता रहे जग-पंक में सदा,निर्मल-सरल रूप में 
नाथ ऐसी दिव्य दृष्टि,अपने "नलिन" पर कीजिए।     

Monday 3 August 2015

336 -राम की प्रार्थना



राम की प्रार्थना 
निरंतर आराधना। 
और भला क्या काम 
राम-राम उचारना। 
मन कपि चंचल,अरि  
विषय वासना वृक्ष की 
जड़-लताओं से निरंतर 
खेल को व्याकुल दिखे। 
पर भटकाव हो तो हो 
भीतर चले बस प्रार्थना
राम की प्रार्थना। 
वो जब उबारे तब काम बने 
जीवन को अवलंब मिले। 
वर्ना तो बस 
कूदना,फादना।
 तिक्त  फल-फूल खा कर
चीखना,चिल्लाना 
नोचना,खसोटना। 
इन सबसे बस एक ही 
बचने की बूटी  
संजीवनी है प्रार्थना। 
राम की प्रार्थना 
निरंतर  आराधना।  

Sunday 2 August 2015

335 - "उस्ताद" आगे डर है......

मसीहा मानकर खुदा का दर्ज़ा देते रहे हम-आप आए
देख वही डॉक्टर यमराज सा,मरीज़ खुद ही मर न जाए।
आँखों में पट्टी बांध हमारे छद्मवेशी बुद्धिजीवी महान
अब फोड़ खुद दोनों आँख अपनी धृतराष्ट्र न हो जाए।
मीडिया जो हाथ में दोनों लड्डू लिए है इतराती सिरफिरी
सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही हर रोज़ मुक़दमे न लड़ जाए।
कहते हैं वकील वो कील जो गड़ कर उखड़ती नहीं कभी
अब ताबूत बना समाज को खुद आखिरी ही न बन जाए।
नेताओं के किस्से तो कौन गिने उँगलियों में भला आज
आस्तीन के दुमुहां सांप सा कहीं और मशहूर न हो जाए।
पुलिस,प्रशासन तो क्या कहें पहले से हमाम में नंगे ठहरे
भविष्य में इनका न कहीं खुले-आम जंगलराज हो जाए।
"उस्ताद" आगे डर है बहुत हालात कुछ ये न हो जाए
किसी आतंकी को ही "भारत-रत्न" की मांग न हो जाए।  

Saturday 1 August 2015

334 -राम रटन कर ले मनवा



राम रटन कर ले मनवा 
राम रटन कर ले। 
जीवन घट जाने कब रीते 
राम सुधा रस पी ले। 
साँझ सकारे,भोर,मध्य में 
सुधि राम की ले ले। 
खाते-पीते,हँसते-रोते 
ह्रदय ओट तू कर ले। 
जैसा मन भाव बसे बस 
राम रूप तू लखि ले। 
कुछ न सोच पागल मनवा 
राम-राम बस कर ले। 
उलटे-सीधे,मन-बेमन से
राम चरण रति को जी ले। 
दग्ध-तिक्त जीवन विष के बदले 
राम नाम पर मर ले। 
राम रटन कर ले मनवा 
राम रटन कर ले। 

Wednesday 29 July 2015

333 - दो नावों में पैर से अब तो भला तौबा करो



हौसले से डटे रहो या नसीब पे यकीं करो
दो नावों में पैर से अब तो भला तौबा करो।

ये कौन हैं शान में पढ़ रहे कसीदे उनके जी भर
भूखे-प्यासे मर रहे,कुछ उनका भी जिक्र करो।

हर तरफ हादसों का दौर कुछ ऐसा चल रहा
खुद पर यकीं  भी भला अब कब तक करो।

बहुत दूर निकल आये सुकून की तलाश में हम सभी
"उस्ताद" रास्ते पहचान कर अब तो कदम चला करो।


332 - भारत कलाम





सरल-सहज,मोहक,निर्मल व्यक्तित्व तुम्हारा
धरा उदास आज,बिछुड़ा जबसे साथ तुम्हारा। 

करें परिश्रम हम जी-तोड़ से,आँखों में हो सपना न्यारा
भारत बने विश्व-गुरु पुनः से,यह था स्वप्न तुम्हारा। 

धर्म-जाति की संकीर्ण सोच से,सदा किया किनारा 
मानव का देवत्व उभारें,बस एक था लक्ष्य तुम्हारा।

ज्ञान-विज्ञान रहा अप्रतिम,बुद्धि-लाघव तुम्हारा 
बाल-समान बड़ा निष्कपट,कोमल ह्रदय तुम्हारा।

"भारत-रत्न"अब्दुल कलाम,सब वंदन करें तुम्हारा
सम्पूर्ण विश्व में सदा रहेगा,चिरंतर नाम तुम्हारा। 









Monday 27 July 2015

331 - राम - अब तो सुन लो पुकार



 राम - अब तो सुन लो पुकार 
मुझको लो तुम उबार। 
मंझधार में फँसी नौका 
मिले कहाँ कोई खेवैया। 
सब आस अब तुम पर टिकी है 
साँस की हर लय तुमसे जुडी है। 
गज की पुकार पर 
कहाँ देखे अपने पाँव के छाले। 
बाल प्रह्लाद के लिए भी 
नरसिंह अवतार लिए। 
निमिष भर में तुमने प्रभु 
भक्त के सब कष्ट हरे। 
ऐसे ही मेरे लिए भी
कुछ तो तुम उपकार करो। 
अपनी कृपा का जरा शीश पर 
वरदहस्त धरते चलो। 
मैं अनाथ,तुम नाथ बनो 
मृगतृष्णा भरे पावौं को 
शीतल,सघन नेह भरा 
अमृत-विश्राम दो।  
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Thursday 23 July 2015

330 - राम - कह तो दो तुम इतना



राम - कह तो दो तुम इतना
की तुम मेरे बस अपने हो।

मेरे ह्रदय सरोवर में तुम
"नलिन-नलिन"से खिलते हो।

जान भी पाऊँ,भेद को ऐसे
नयन-अंधता दूर भगाओ।

तुम मेरे बीएस अपने हो
ऐसा दृढ विश्वास जगाओ।

माया जनित विश्व प्रपंच से
मेरे प्रभु श्री राम बचाओ।
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Wednesday 22 July 2015

329 - राम -कृपानिधान




राम -कृपानिधान 
तुम जगत आधार। 
कब सुनोगे व्याकुल पुकार 
विकल तो  हुए 
मेरे तन,मन,प्राण।
हर छन ,हर पल काटता
बनाता मुझे बेहाल। 
किंकर्तव्यविमूढ़ आज 
कैसे करूँ भविष्य निर्माण। 
 सोचो न,करो अब 
शीघ्र  तुम "नव प्रभात"। 
दे दो कृपा का  
तुम मुझे वरदान। 
मैं अकिंचन क्या दूँ 
सिवा एक  प्रणाम। 
ह्रदय घट का 
 भयभीत,काँपता 
नन्हा उपहार। 
स्वीकार हो यदि  तो  
और भी करुँ अर्पण 
अवगुणों का विपुल भण्डार।
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Tuesday 21 July 2015

328 - योग शक्ति




भारत माँ की योग शक्ति का जगह-जगह जयकार हुआ
निखिल चेतना का फिर ऐसे,जन-जन दिव्याभास हुआ।

जगदगुरु के रूप में अपने,राष्ट्र का पुनः श्रेष्ठ सम्मान हुआ
योग दिवस के श्रीगणेश से योग का अप्रतिम विस्तार हुआ।

असंख्य मन,प्राण,देह का समवेत अकल्पित योग हुआ
तुमुल उठे उल्लास से फिर,धरा का कण-कण पावन हुआ।

नर-नरेंद्र हो गए सभी,कायाकल्प कुछ ऐसा हुआ
धर्म-जात,ऊँच-नीच का,भेद समूल फिर नष्ट हुआ।

इंद्रप्रस्थ पर नई-नई सी भोर लिए,दिनकर का प्रकाश हुआ
साथ चलेंगे हाथ पकड़ सब,स्वर्णिम भविष्य आश्वस्त हुआ। 

Monday 20 July 2015

327 -सपने हर कदम टूटते हैं....तेरे-मेरे

सपने हर कदम टूटते रहे,हर बार कांच से  तेरे- मेरे
चल ये भी लिखा रहा होगा,नसीब में भोगना तेरे-मेरे।

हर कोई अपने में इस कदर मशगूल दिखता है यहाँ
कोई मिले,किससे मिले,भला कब तक यहाँ यार मेरे।

बारिश जो हुई रात बाहर,छींटे भिगो गए कुछ मुझे
ये अलग बात है ख्वाब अधूरे,ठगे से रह गए सब मेरे।

आकाश छूने के लिए,नारियल से लम्बे तो होते चले गए
भाग्य के श्रीफल मगर, टूट कर जमीं पर बिखरते रहे मेरे।

"उस्ताद" तुम्हारी तो हर बात ही अलहदा है जमाने से
ग़मों का बोझ मेरा,उठा  चलते रहे हो हर घड़ी साथ मेरे। 

326- तेरा गम - मेरा गम

तेरा गम मुझसे कहाँ छुपा है, मेरा दर्द तुझसे भला कहाँ
रास्ता एक ही अपने सफर का,जाने अपनी मंजिल कहाँ।

बस चलते ही चले जाना,मील के पत्थर नहीं जहाँ
ये तो तू भी जान रहा,नसीब में अपने उजाला कहाँ।

हर दिन,हर घड़ी एक आह सी,भरती रहती अपनी सांस 
मुस्कुराना भूल गया तू तो यारा,मुझको आता भला कहाँ।

झूठ,बेईमानी,मतलबपरस्त,ढलती जा रही ये दुनिया
पाक ईमान मिज़ाज लिए,मिलता भला "उस्ताद" कहाँ। 

Thursday 5 March 2015

325 - को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली {हास्य-व्यंग}







को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।  
करंट है मारे ठंडा पानी ,खेले डरूं होली गीली।।
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली। 
रंग गुलाल कहाँ से लाऊँ ,जेब है मेरी ढीली।।
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।
गुझिया खिलाऊँ ,काहू से सबको ,खोया मिले है नकली।। 
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।  
गले लगाऊं राधा कैसे ,स्वाइन फ्लू हर गली।।
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।  
यदि खेलन चाहो देवर-भौजी,जीजा-साली 
जोरू मैं हाथ फेसबुक,ऐप खेलो बस होली।।

Wednesday 4 March 2015

324 - भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम



भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम 
मैं तो रंग में रंग चुकी तेरे ही एक श्याम। 


अब सब छोड़ लोक-लाज,आयी तेरे पास 
बाहों में भर ले मुझे, एक यही अब आस। 


जहाँ देखती खड़ा वहीँ तू,रोके मेरी राह 
पकडूँ तो छल कर,बेगि छुड़ावत बांह।


दिनभर भटक-भटक कर थक जाते हैं पाँव 
जाने कब आओगे बसने मेरे दिल की ठाँव। 


"नलिन" नयन व्याकुल हैं कबसे,ओ निष्ठुर दिलदार 
देर करो न पल भर अब तो, सुन लो करून  पुकार। 



Tuesday 3 March 2015

323 - गिरगिट भी हैरत में क्या चीज़ हैं आप।

रंग बदलते हैं जिस तरह जिंदगी में आप
गिरगिट भी हैरत में क्या चीज़ हैं आप।
एक पल भी आगे का जब नहीं ठिकाना आज
वादे जन्नत के मगर खूब दिखा रहे हैं आप।
दाने-दाने को मोहताज बना रहे जो आज
वही मसीहा खुद को  बता रहे हैं आप।
कागज़ के जो फूल लिए गाते राग बहार
रंगे सियार से वो ही हू आ करते आप।
झूठ-मक्कारी फ़िज़ा में घुली-मिली है आज
"उस्ताद" वही जो आईना दिखा सके है आप। 

Monday 2 March 2015

ग़ज़ल-77 फलों से लद गया

फलों से लद गया जो दरख़्त आम का।
सहा तो होगा इसने वक्त घाम का।।

यूँ ही नहीं सबके दिलों में बस रहा होगा।
नब्ज़ पर हाथ होगा उसके जरूर राम का।।

कुछ है बात जो मिटती नहीं हस्ती हमारी।
दौड़ता रहा है लहू अमन के पैगाम का।।

वो बेबस,लाचार जी रहा है तन्हा अपनों में।
अरसे से मर गया है यहां चलन दुआ-सलाम का।।

बाँध पाँव अंगारे और ले दुआ के फूल चले। 
है वारिस असल वो अपने "उस्ताद" के कलाम का। 

@नलिन #उस्ताद

Sunday 1 March 2015

ग़ज़ल-89

मुझे हर घड़ी क्यों ख्याल तेरा बना रहता है।
जबकि मुझसे तू अक्सर नाराजगी ही रखता है।। 

कारवां वक्त का कब ठहर जाए किसी के लिए।
दिल में डर तो अब यही सदा बना रहता है।।

चन्द सिक्के हलक में डाल कर कोई भी।
काम मुश्किल अब आसान बना सकता है।।

दूर-पास का फासला अब कहाँ रहा कोई।
हर वक्त,सदा कोई ऑनलाइन दिखता है।।

"उस्ताद" हुनर को तुम्हारे पूछता कौन है।
अब तो गूगल ही सच का निज़ाम-ए-देवता है।। 

@नलिन #उस्ताद 

Thursday 26 February 2015

320 - विभीषण - गीता

संत तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस के लंकाकाण्ड  - दोहा 79 पश्चात से दोहा 80 तक  


                                 रावण गर्व से भरा सुसज्जित स्वर्ण रथ पर था सवार 
                            वहीँ राम रथ विहीन युद्ध को नग्न पाँव खड़े थे तैयार।
यह देख फिर विभीषण के मन विछोभ अति होने लगा 
अतिशय प्रीति के चलते उसे जीत पर संदेह होने लगा। 
नील "नलिन" चरण राम के दंडवत हो कहने लगा 
नाथ रावण है बली पर आप तो विहीन शीश पगा। 
अब धुरंधर यह दुष्ट भला कहिये शीघ्र कैसे मर पायेगा 
सत्यं,शिवं सुन्दरं का परचम क्या कभी फहर पायेगा। 
तब आश्वस्त कर प्रेम,करुणा से भर राम ने ये कहा 
हे *धर्मरुचि युद्ध विजय चूमे वह रथ और ही रहा। 
शौर्य,धीरज हैं इस विजयश्री रथ के दो पहिये बड़े 
जिन पर सत्य,सदाचार के झंडे मजबूती से हैं गड़े। 
बल,विवेक,इन्द्री-जीत,परहित हैं इसके अश्व चार 
छमा,दया,समत्व की डोर से बंधे सँभालते भार। 
हरिस्मरण करता भक्त ही इसका सारथी सुजान 
विरक्ति की ढाल लिए चले संतोष की थाम कृपान। 
दान का फरसा उठा वह प्रचंड बुद्धि की ताकत लिए 
उत्कृष्ट कोटि ज्ञान से संपन्न धनुष भीषण हाथ लिए। 
मन स्थिर,निर्मल तरकश,यम-नियम,संयम के आयुध रहे
विप्र,गुरु आशीष रक्षा कवच वह विजय पर शंकित क्यों रहे।
मित्र,बंधु,सखा,प्रिय भक्त मेरे तुम क्यों हो भला डरते 
इस दिव्य रथ के आगे शत्रु भला है कौन हैं शेष रहते। 
भवसागर से अजेय रिपु को भी जीत सकता है हर "धर्मरुचि"
मन-प्राण से दृढ विश्वास हो और सदा रखे जो भगवद रूचि।
आराध्य अपने श्री राम के मुखारविंद से सुन पावन वचन 
गदगद हर्ष से वह "नलिन"नयन,दंडवत हो गया प्रभू चरन।

*धर्मरुचि : विभीषण का पूर्व जन्म का नाम 


नोट: यह प्रसंग मुझे अतिप्रिय है। इसके पीछे एक किस्सा भी याद आता है। एक बार इस प्रसंग पर एक स्वामीजी लखनऊ में व्याख्यान दे रहे थे। मैं भी गया था। रात लौटते समय साइकिल  का टायर पंचर मिला। शायद १० - १०. ३० का वक्त होगा  तो पंचर ठीक करने वाला मिलना नहीं था। ख़ैर उसको घसीटते और स्वामीजी के विरथ रघुवीरा के बल से अनुप्राणित ३-४ किलोमीटर चला कि इंद्रा ब्रिज के नीचे एक निद्रामग्न पंचर ठीक करने वाला मिल गया,मगर थका होने से उसने मदद तो नहीं की हां अलबत्ता पंप से खुद हवा भरने की इजाज़त दे दी। ऐसे में टायर और घिसने का डर था पर क्या करता  दूरी अभी बहुत थी तो यह मदद भी काफी लगी। आधे रास्ते में हवा फिर निकल गयी। और अब तो जैसे-तैसे घर पहुँचना ही था ,सो पहुंचा। मगर तब और आज भी सांसारिक साधन जब-जब  पंचर हो जाते हैं तो अनायास यही प्रसंग ऊर्जा भरता है और कदम घिसट-घिसट ही सही मंजिल को बढ़ने लगते हैं। जय श्री  राम।  
   

Tuesday 24 February 2015

319 - महाभिमानी दसशीश



काल के कपाल पर पढ़ कर भी स्पष्ट अंकित लेख 
                                   ब्रह्मा की चेतावनी को समझता रहा बच्चों का लेख। 
ऐसे महाभिमानी दसशीश को सोचो तो तुम जरा 
कौन समझाए,चाटुकारों से दरबार जिसका भरा। 
वैसे कहो चेताया किस-किस ने नहीं हर बार उसे 
सुत,प्रिया,बंधु- बांधव और पिता ने सौ बार उसे। 
और तो और हनुमान ने स्वर्णनगरी को जलाकर 
क्या नहीं दिया सन्देश ? मूढ़ को झकझोर कर। 
पर वो कहाँ माना खुद राम ने भी जब चेताया 
भेज अंगद सा दूत अपना प्रीत का हाथ बढ़ाया। 
वो तो खुद रहा जिम्मेदार,अपनी मौत का 
तो व्यर्थ क्यों शोक करे,कोई भला उसका। 
मगर त्रेता से चली यह कहानी कहाँ ख़त्म हो रही 
कलयुग में तो यह बीमारी बड़ी ही आम हो रही। 
अब तो हर कोई आदमी रावण को अंगूठा दिखा रहा 
छल-कपट से अपने अहम को स्वाभिमान बता रहा।
जिसने उसे ऊँचा मुकाम,धन,पद नाम दिलाया 
उसी को उसने हर बार बलि का बकरा बनाया।  

Monday 23 February 2015

318 - तू तो है भाव का भूखा

                                                               
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तू तो है भाव का भूखा 
मैं रसहीन-शुष्क हूँ।  
तू पर-कातर,कृपा-पुंज 
मैं खुद में क्यों निमग्न हूँ। 
तू है जब भला भक्त सबका 
मैं कहाँ,कैसा भक्त हूँ। 
हर साँस पर तेरा नियंत्रण 
मैं कहां करता कुछ कर्म हूँ। 
यूँ ही कृपा करते रहना 
मैं तो बस तेरा एक क़र्ज़ हूँ। 

317 - साईं की शागिर्दी कर


                                                             
साईं की शागिर्दी कर 
जीवन की रखवाली कर।  
सब उसपे छोड़ कर बन्दे 
श्रद्धा और सबूरी कर। 
फूल मिले या शूल मिले 
राम नाम बस सुमिरन कर।  
सबमें रहता है बस वो ही 
नज़र जरा तू सीधी कर। 
सबका पालनकर्ता साईं 
जान यही,अलमस्त रहा कर। 
करम करे तू जो भी बन्दे 
साईं चरण पर अर्पित कर।

Thursday 19 February 2015

316 - वृन्दावन बनी ये सृष्टि सारी



राधे-श्याम कहते-कहते
वृन्दावन बनी ये सृष्टि सारी।
हर गलियों,हर मोड़ों पर
दिख जाती है तेरी झांकी।
कहीं लाल-गोपाल कान्हा की
लीला मधुर है दिख जाती।
कहीं-कहीं राधा रानी जी
खूब बनी-ठनी हैं इतराती।
ग्वाल-बाल संग हंसी-खुशी
कहीं चौपड़ी है जमी हुई।
तो गोपी-बाला संग कहीं
रास रचाते गिरधारी।
ता ता थय्या,धुम तिरकिट धुम
नर रूप बना नाचे ये जोड़ी।
धन-धन भाग मैं अपने जाऊँ
खूब घुमाई तूने ये नगरी।
बांकी छवि के दर्शन से तेरी
नैन #नलिन#निर्मलता आई।