Monday, 3 August 2015

336 -राम की प्रार्थना



राम की प्रार्थना 
निरंतर आराधना। 
और भला क्या काम 
राम-राम उचारना। 
मन कपि चंचल,अरि  
विषय वासना वृक्ष की 
जड़-लताओं से निरंतर 
खेल को व्याकुल दिखे। 
पर भटकाव हो तो हो 
भीतर चले बस प्रार्थना
राम की प्रार्थना। 
वो जब उबारे तब काम बने 
जीवन को अवलंब मिले। 
वर्ना तो बस 
कूदना,फादना।
 तिक्त  फल-फूल खा कर
चीखना,चिल्लाना 
नोचना,खसोटना। 
इन सबसे बस एक ही 
बचने की बूटी  
संजीवनी है प्रार्थना। 
राम की प्रार्थना 
निरंतर  आराधना।  

No comments:

Post a Comment