Wednesday, 26 August 2015

347 -राम- तुम्हारे गुन गाऊँ


राम- तुम्हारे गुन गाऊँ 
सदा तुम्हें एकमात्र पुकारूँ। 
साँस-साँस की हर लय में 
तेरा सुन्दर गीत उचारुं। 
जाने कितने पुण्यों से 
तेरा ये प्रसाद मिला है। 
जनम-जनम,भटक-भटक 
मुझको मानव आकर मिला है। 
तो व्यर्थ इसे क्यों जाने दूँ 
तेरे पीछे क्यों न आऊँ। 
जैसे-तैसे तुझे रिझा कर 
जीवन अपना सफल बनाऊँ। 

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