Monday, 24 August 2015

346 -राम तो अब करो कुछ ऐसा


राम सोचता हूँ मैं  
रो कर तुम्हें अब न पुकारूँ। 
अश्रु वेदना भरे घट से 
चरंण तुम्हारे अब न पखारूँ। 
तुम तो हो आनंद सागर 
विश्व के उदार-नायक।
जी को तुम्हारे न जलाऊँ 
खुद हँसू तुम्हें हँसाऊँ । 
अटपटे रस भरे बोल से 
तुम्हें अब मैं सदा रिझाऊँ। 
अश्रु कण दरअसल नमकीन हैं 
पर तुमको पसंद मधु अर्क है। 
पर करूँ क्या भगवन 
मैं भी तो विवश हूँ। 
मुझे तो तुमसे मिली 
यही कृपापूर्ण सौगात है। 
राम तो अब करो कुछ ऐसा 
तुम्हारा भी बन जाए काम। 
मेरा भी छूटे हर घडी का रोना 
खिल जाए "नलिन" मुख सलोना। 
मेरे दुखों के उबलते सैलाब में 
कृपा का अपनी मधु उड़ेलो। 
चाशनी एक तार की बने जब 
पंच तत्वी  देह तब मेरी डुबो दो। 
इस तरह से रोम-रोम में 
पंचामृत का संचार होगा। 
नर जीवन जो दिया तुमने
 उसका वास्तविक उद्धार होगा।   
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