Sunday, 2 August 2015

335 - "उस्ताद" आगे डर है......

मसीहा मानकर खुदा का दर्ज़ा देते रहे हम-आप आए
देख वही डॉक्टर यमराज सा,मरीज़ खुद ही मर न जाए।
आँखों में पट्टी बांध हमारे छद्मवेशी बुद्धिजीवी महान
अब फोड़ खुद दोनों आँख अपनी धृतराष्ट्र न हो जाए।
मीडिया जो हाथ में दोनों लड्डू लिए है इतराती सिरफिरी
सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही हर रोज़ मुक़दमे न लड़ जाए।
कहते हैं वकील वो कील जो गड़ कर उखड़ती नहीं कभी
अब ताबूत बना समाज को खुद आखिरी ही न बन जाए।
नेताओं के किस्से तो कौन गिने उँगलियों में भला आज
आस्तीन के दुमुहां सांप सा कहीं और मशहूर न हो जाए।
पुलिस,प्रशासन तो क्या कहें पहले से हमाम में नंगे ठहरे
भविष्य में इनका न कहीं खुले-आम जंगलराज हो जाए।
"उस्ताद" आगे डर है बहुत हालात कुछ ये न हो जाए
किसी आतंकी को ही "भारत-रत्न" की मांग न हो जाए।  

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