Sunday, 13 June 2021

गजल:343 - बरसात में

हुई जो बरसात भारी तो खुद को भिगा दिया।
बचपन की नादानियां को फिर से जिला दिया।।

गीत गाने तो आते हैं रोज परिंदे छत पर।
आज उनको ही जाकर गीत सुना दिया।।

बनाकर कश्ती कागज की तेरा दी गली में।
उम्र है पचपन की राज खुद से छिपा दिया।।

कुदरत के ऑंचल कितने नायाब रतन जड़े।
मेहरबानी है उसकी जो हम पर लुटा दिया।।

गरजते देखा जब बरसते बादलों को खुल के।
पग बांध नूपुर "उस्ताद" ने मुझको नचा दिया।।

@नलिनतारकेश
 astrokavitarkesh.blogspot.com

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