ये गलतफहमी थी लोग चाहते हैं मुझे।
काम पड़ने पर बस पुचकारते हैं मुझे।।
न शर्म,न लिहाज,बेगैरत हैं ये पूरे कसम से।
दुआ,सलाम भी कहॉं बेवजह करते हैं मुझे।।
हर आदमी यूँ गरज की खातिर जिंदा नहीं।
लोग बस सिमटे अपने दायरे लगते हैं मुझे।।
काली करतूतों में शामिल हैं जितने भी सफेदपोश।
शफ्फाक* होने का दावा ठोकते वही दिखते हैं मुझे।।*पवित्र
अमां छोड़ो तुम भी किस का रोना रोते हो अक्सर।
खुदा भी हैरान है ये दिल में क्यों नहीं देखते हैं मुझे।।
नाचीज की हकीकत से यूँ तो रूबरू है सभी लोग।
जाने फिर खुशफहमी भला"उस्ताद"मानते हैं मुझे।।
@नलिनतारकेश
No comments:
Post a Comment