सो तुम जानहु अंतरजामी। पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी। ६/५/१४
हे प्रभु श्री राम मेरे,देखे जो मैंने नलिन चरन आपके।
खिल उठे मन सरोवर में,नलिन दल अगनित सारे।
अब तो हर कामना करतलगत,हुई हर साधना पूर्ति।
आप से क्या छुपा है ज़रा भी,चरन रज रखिए ज़रा सी।
जन्म-जन्मों के पाप-ताप से,मुक्त करें इस जीव को भी।
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