राम जी की असीम अनुकम्पा से आ रही नवरात्रियों में "मानस सुधा मंजरी" और "साईं कृपा याचना" इन दो पुस्तकों का प्रकाशित रूप में सामने आने का सपना साकार होने जा रहा है। फिलहाल आज थोड़ी चर्चा आपके साथ "मानस सुधा मंजरी"पर करने के लिए उत्सुक हूँ।
"मानस सुधा मंजरी" -
यह पुस्तक एक संकलन है श्रीरामचरितमानस के कुछ मार्मिक प्रसंगों को लेकर।जैसे शिव जी का पार्वती जी को राम तत्व का निरूपण ,केवट की भावुकता ,कोल -किरतो का राम जी के प्रति निश्छल प्रेम ,भारत जी का राम जी से मिलन ,भारत जी की राम चरण पादुका के प्रति निष्ठा आदि-आदि अनेक मार्मिक प्रसंग।
संकलन का उद्देश्य :
दरअसल आज कल के आपाधापी वाले युग में श्रीरामचरितमानस का समग्र पाठ सबके भाग्य में नहीं दिखता क्योंकि इस हेतु दो दिन अवकाश और इत्मिनान की जरुरत होती है। यही कारण है की अब पहले से समग्र पाठ के लिए बुलावा घर-घर से आना बंद हो गया है। जबकि पहले लगभग हर माह निमंत्रण मिलता ही था। आजकल सुन्दरकांड के द्वारा इसकी कुछ हद तक पूर्ति की जाने की कोशिश होती दिखती है। लेकिन जो श्रीरामचरितमानस के ह्रदय को छूने वाले अनेक प्रसंगों से जुड़ने की बात है वो हमसे वंचित रह जाती है। खासतौर से सामूहिक रूप में। सामूहिकता का अपना बल और विशेषता है यह सब को ही ज्ञात है अत इस संस्करण को लाने की इच्छा मन में उपजी और राम जी की कृपा से वो साकार भी होने जा रही है।
पुस्तक की प्रेरणा :
यह बात मेरे मन में पिथौरागढ़ के अपने शैक्षणिक प्रवास (इण्टर के दो वर्ष ) के दौरान आई। पिथौरागढ़ मेरा पैतृक निवास है सो अपनी दादी के साथ लखनऊ से यहाँ पढने आ गया था। वास्तव में लखनऊ छोड़ना व्यवाहरिक रूप में मूर्खता लग सकती है पर पूर्व में हाईस्कूल हेतु दो वर्ष अल्मोड़ा बिता के आया था सो ये विकल्प भी आजमाना बुरा नहीं था। ईश्वर की इच्छा प्रबल होती है सो कारण न होते भी कारण बन जाते हैं। मूलतः यह सब मेरे पढाई में बहुत कमजोर होने के कारण था। खैर यह एक लम्बा प्रसंग है। अस्तु,पिथौरागढ़ में सदगुरू हेड़ाखान बाबा जी का साकार सा ध्यानावस्थित संगमरमरी विग्रह स्थापित था जिसे मेरे दोनों चाचाजी द्वारा जयपुर से आदमकद रूप में बनवा कर रखा गया था। बाबा जी महर्षि योगानंद जी(ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी के रचियता) के दादा गुरु श्यामाचरण लाहड़ी जी के गुरु महावतार बाबा जी हैं। वर्तमान में भी इनके दर्शन हो जाते हैं ,मुझे भी दो बार ऐसे सौभाग्य की अनुभूति रही है। अस्तु,बाबा जी के सम्मुख उनकी प्रीत प्राप्ति हेतु दिव्य पाठ और रामचरितमानस के कुछ ६-७ ख़ास प्रसंगो का पाठ हर रविवार होता था। १५-२० लोग शाम को घर में जुटते और पाठ लगभग एक घंटा चलता। मेरा संगीत के प्रति कुछ रुझान होने से तबला बजाने में मुझे चाचाजी द्वारा लगा दिया था यद्यपि पहाड़ों में शाम के वक्त लोग घूमने ,बाजार आदि हेतु जरूर निकलते हैं। उस पर युवा तो अवश्य ही रहते हैं। चाचाजी के आग्रह रुपी आदेश को टालना पर मेरे लिए उचित नहीं था सो चाहते न चाहते मैं भजन -पाठ में सहभागी रहा। यहीं से इस पुस्तक की नीव पड़ी होगी ऐसा अनुमान है।
हैड़ाखान बाबा जी बायें दाहिने उनके शिष्य महेंद्र बाबा
पाठ की अवधि :
मानस सुधा मंजरी का पाठ ५-६ घंटे में आसानी से हारमोनियम तबले पर हो जाएगा अतः भक्त अपने रविवार या अवकाश का उपयोग आसानी से कर सकेंगे और कम से कम थोड़ा और व्यापक रूप में श्रीरामचरितमानस से जुड़ाव बनाये रख पाएंगे ऐसा विश्वास है। अब श्रीरामचरितमानस जी की उपयोगिता कितनी है इस पर कुछ कहना तो सूरज को चिराग दिखाने जैसा है। सब इससे भली-भांति परचित हैं।
हमारे समाज में जिस तरह से संस्कारों का लोप हो रहा है उसका एकमात्र समाधान है रामचरितमानस का पाठ! यह एक बहुत ही पवित्र कार्य है. हमारे समाज के नवयुवकों को एक नयी दिशा जरूर मिलेगी. साधुवाद !
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