वो मासूम,प्यारी, नन्ही परी

 

वो मासूम,प्यारी, नन्ही परी
जाने कितने ढेर सपने संजोये
आने को बेताब बहुत  रहती है
जब हमारी इस धरा पर
रिश्तो  में पायल की रुनझुन 
मीठी सरगम के स्वर भरते
बेटी,बहन, माँ के स्वरुप में 
दिलो में इंसानियत जगाने 
धरा के हर घर-आंगन को
खुशियौं के हजार-हजार रंग से 
सरोबार करने, उसे महकाने
अपने इत्र में डूबे जज्बात से
तो हमारा समाज क्योँ  भला 
घौंट देता है बेदर्दी से उनका गला 
जानते बूझते की उनसे ही सदा
सृष्टि क्रम आगे बढ़ सकेगा

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