344:गजल- जज्बाए कबीर होना चाहिए

 कब तक नजर रखेंगे कहो तो उस पर।                                                                                          कुछ तो उसमें भी जमीर होना चाहिए।।
 हालात हों चाहे यार कितने मुफ़लसी के हमारे।
 जिगर तो किसी भी कीमत अमीर होना चाहिए।।
 सफर में अड़चने आती हैं लेने इम्तहां हमारा।
 तरकस में निपटने को बस तीर होना चाहिए।। 
 पलटने से जुबान बार-बार साख गिरा करती है।
 जो कह दिया वह पत्थर की लकीर होना चाहिए।।
 यूँ तो कौड़ियों के भाव बिक रहे आलिम आजकल।
"
उस्ताद" भीतर तो जज्बा--कबीर होना चाहिए।।



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