Saturday, 12 June 2021

गजल:341उफनता है

उफनता है सैलाब आपके दिल तो क्या कीजिए।
ग़ज़ल नहीं तो कुछ अशआर ही लिखा कीजिए।। 

तीर-तुक्के भी यूँ कभी निशाने पर लग जाते हैं। 
गलतफहमी का शिकार बनने से बचा कीजिए।।

मदहोशी की खातिर चढ़ाते हैं क्यों पैग पर पैग।
एक नजर तबीयत से बस खुद को देखा कीजिए।।

मौज-मस्ती सूझती है आपको तो बस चारों पहर।
कभी जमीनी हकीकत से भी रूबरू हुआ कीजिए।।
 
किसी "उस्ताद" को खुदा अपना बनाने से पहले।
वो भी  रहा है उसका ही शागिर्द समझा कीजिए।।

@नलिनतारकेश

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