Tuesday, 22 June 2021

349: गजल- तेरा-मेरा रिश्ता

ये तेरा-मेरा रिश्ता कहे कौन क्या है।
कहना इसे बकलम दुश्वार बड़ा है।।

यूँ कहो तो बता भी दें जैसे-तैसे इसे।
बच्चों का खेल क्या ये समझना है।।

जाने कितनी मुद्दतों से बनके साया चल रहे।
उपजे गर कभी रूहे नूर तो भरम मिटता है।।

सफर थका देगा जो खुद से चलोगे तुम।
हर हाल हमें डोर तो उसे सौंप देना है।।

जरा कहिए आपकी हैसियत है ही क्या।
घरौंदा है बस एक रेत का जो टूटना है।।

लबों पर सबके बिखेरो हँसी यार तुम।
मकसद "उस्ताद" तो बस महकना है।।

@नलिनतारकेश

No comments:

Post a Comment