तू करीब होकर भी दूर इतना क्यों है।
समझ आता नहीं ये माजरा क्यों है।।
दिल में ही नहीं हर चप्पे-चप्पे मौजूद हूँ मैं।
नजर आता नहीं तो ये झूठ बोलता क्यों है।।
जब करता है तू सब अपनी सहूलियत से ही।
भला फिर लेता हर बार मेरा इम्तहां क्यों है।।
एड़ियां घिस गईं मेरी मगर नजरे इनायत करता नहीं।
बता तो सही आंखिर तू इतना मदहोश रहता क्यों है।।
पथराई आँखें तेरे वादे को झूठा माने तो भला कैसे।
मुँह फेरते ही अक्सर रंगीन ख्वाब दिखाता क्यों है।।
चाहत है चौखट पर तेरी सजदा करे "उस्ताद"।
अडंगे ये रास्ते में फिर बार-बार डालता क्यों है।।
@नलिनतारकेश
No comments:
Post a Comment