Wednesday, 23 June 2021

351:गजल-हर महफिल के

चलो लिखें अफसाने कुछ अपने दिल के।
गमों और खुशियों का दें हिसाब मिल के।।

ख्वाबों को मुकम्मल मंजिल दिलाने की खातिर।
मरते देखे हैं लोग अक्सर हमने तो तिल-तिल के।।

गमों के थपेड़े हमने हर कदम पर हैं सहे।
कहा ना कुछ मगर रहे बस होंठ सिल के।।
 
देखी है जब से झलक जलवाए हुस्न यार की। 
चढा है रंग इश्के हिना का अब कहीं खिल के।। 

शम्मा ये जलती,बुझती हैं तो बस कनखियों से। 
यूँ ही नहीं रहे "उस्ताद" जान हर महफिल के।।

@नलिनतारकेश 

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