जेठ मंगल का श्री गणेश
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लखनपुरी आज दिखता है,सब जन उल्लास भारी।
शुभ जेठ मंगल की हो गई लो,यहाँ शुरूआत न्यारी।।
प्रेम इस नगरी से विशेष करते हैं,अपने प्यारे बजरंगी।
पता है उन्हें कि,जन-जन यहाँ का,है मस्तमौला,तरंगी।।
मीलों परिक्रमा,नंगे पांव लेटकर जेठ की भरी दुपहरी।
परवाह करते नहीं मिलने को वृद्ध,बाल,किशोर,नारी।।
लगाते जाते जयकारा सभी,जय लाल लंगोट वाले तेरी। जगह-जगह मीठे शरबत से होती है उनकी खातिरदारी।।
यूँ होता अब वृहद भंडारा जिसमें प्रसादी विविध रहती।
पवनपुत्र को तो अपने तृप्ति बेसन के लड्डू से मिलती।।
जाति-धर्म?वर्ण-भेद की सब,टूटती जंजीर रूढ़िवादी।
भावयुक्त हो भक्त कहते,दे दो हमें दुःखों से आजादी।। भक्त-कातर अपने हनुमान त्वरित हरते सबकी विपत्ति। कौन सी है कहो तो भला उनके सम्मुख असंभव मनौती।। चलो भक्तों आओ करें प्रार्थना में अब एक पल न देरी। महामारी मिटा प्रभु करेंगे खुशहाली की अरदास पूरी।।
@नलिनतारकेश
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