Sunday 27 June 2021

354:गजल कोविड-19 महामारी

पहले ही लोग कतराने लगे थे मिलने से।
अब लगता सचमुच डर है साथ बैठने से।।

लो मुँह में बांध पट्टी सबने होंठ सिल लिए हैं।
दुआ-सलाम हो रही आहिस्ता बड़े सलीके से।।

घर में कैद था बुढ़ापा अब तो हुई जवानी भी। 
धमाचौकड़ी मचाते हैं कहाँ चुन्नू-मुन्नू सहमे से।।

जश्न,दावतनामे,मौज-मस्ती की बातें अब भूलिए हुजूर।
दरकिनार पड़े हैं ये सब होकर बड़े मायूस ठंडे बस्ते से।।

मुलजिम है कौन,है कौन ये गुनाहों को छुपाने वाला।
हम मुफ्त बेमौत मर रहे जैसे घुन गेहूँ में पिसने से।। 

लोग बिठाएंगे कैसे अजब इन हालातों से तालमेल कहिए।फकीर "उस्ताद" तो देखो बतिया रहे भीतर उतर खुद से।।

@नलिनतारकेश 

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