Thursday, 24 June 2021

352:गजल :ये जुगत करता हूँ

दिल को बहलाने की खातिर ये जुगत हर रोज करता हूँ।
कभी पुरजोर गीत गाता हूँ तो कभी अशआर लिखता हूँ।।

दर्द तो है गजब का पोर-पोर गहरे धंसा हुआ।
मगर दे उसे चकमा खुलकर मैं जोर हंसता हूँ।।

हवाएं भी कहाँ चुप हैं करती हैं साजिशे मेरे खिलाफ।
जुनून है पर कुछ अजब ऐसा दरवाजे सब खोलता हूँ।।

पूनम की रात है आज तो बिखरी है चाँदनी चप्पे-चप्पे में।
आ न पाएगा वो सताने बस यही सोच मलाल करता हूँ।। 

शुमार हो गया है "उस्ताद" रोजमर्रा की आदत में अब तो।
गले लगा दर्द,गम,तकलीफ सारी बेसाख्ता बस चूमता हूँ।।

@नलिनतारकेश 

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