सर खुद का मैं हलाल कर पाता नहीं।
जलवा रब तभी अपना दिखाता नहीं।।
उसकी चाहत में फना होना आसां कहाँ।
बच्चा मासूम खुद को मैं बना पाता नहीं।।
बातें कर लें चाहे जितनी बड़ी-बड़ी हम।
ये गुरूर है कि दिल से अपने जाता नहीं।।
यूँ तो चप्पे-चप्पे कायनात में है तू ही तू।
नजरों में जाने क्यों उतर के दिखता नहीं।।
जब तलक खूं नापाक रहेगा एक बूंद भी।
दीदार कभी हमें खुद का रब कराता नहीं।।
"उस्ताद" झुके तो हम सजदे में हजार बार।
कमबख्त दिल ये काबू में मगर आता नहीं।।
@नलिनतारकेश
astrokavitarkesh.blogspot.com
No comments:
Post a Comment