Monday 22 September 2014

227 - करुणानिधान






वात्सल्य से करुणानिधान तुम
जाने कितनों को हो उबार चुके।
पर जाने क्या बात है राम मेरे
मुझको तो जैसे बिसरा चुके।
जाने कब से बाट जोह रहा
कभी तो पथ प्रशस्त मिले।
तेरे कृपाधाम का मुझको
अब तो प्रमाण-पत्र मिले।
निश्चित ही निर्भीक,मगन हो
तब मैं गीत तुम्हारे गाऊँगा ।
भूल जगत के दुःख-दर्द ये सारे
नित चरणों में शीश झुकाऊँगा ।  

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