Tuesday 23 September 2014

228 - जीन्स और हमारे पूर्वज



आश्विन मास का कृष्ण पक्ष जब-जब हर नववर्ष में  आता।
श्राद्ध क्रिया से पितरों का सुमिरन करलें ,ऐसी याद दिलाता।।

हम रहे हैं जिनके वंशज,कुल-गोत्र से सात पुश्त तक जुड़े हुए। 
उनके आशीष,तेज़पुंज से सप्तलोक में "भूलोक "तक पहुँच गए।।

मात-पिता के पितरों का,भाव से करें स्मरण यदि हम। 
प्रभू भी करें कृपादान,सदा रहे खुशहाल,तृप्त तभी हम।।

चन्द्र चमकता है गगन में जैसे,अपनी 28*नक्षत्रमाला के साथ। 
वैसे अपने पिता भी भीतर रखते,28 कला जीन्स का सदा ही साथ।।

इन्हीं 28 कलायुक्त पिंड के 21अंशों से फिर पिता है निर्मित करता। 
अपनी भावी संतति के जीन्स में तब ऐसे योगदान उसका है रहता।।

पौत्र हेतु फिर उन्हीं 21 अंशों में से जो दिए अपनी संतति को। 
15 अंश दिलवाता है अपने ही पुत्र से भावी सुकुमार पौत्र को।।

वंशवृद्धि के इसी क्रम का फिर चलता है ये सिलसिला आगे से आगे। 
10 कला के रूप में फिर मिलने से वो प्रपोत्र में बढ़ता आगे से आगे।।

उसकी फिर ये शेष 6 कलाएं वृद्ध प्रपोत्र के निर्माण में काम हैं आती। 
जिनमें से फिर 3 कलाएं अतिवृद्ध प्रपोत्र को हैं जा कर के  मिलती।।

चलते-चलते फिर इस क्रम से आगे एक कला वो अपनी है देता। 
वृद्धातिवृद्द प्रपोत्र जिसमें अपनी 7 पुश्तो के हिसाब को है रखता।।

इस तरह प्राचीन विज्ञान श्राद्ध का भाव है सूक्ष्म बड़ा अलबेला अपना।
7 पीढ़ी से संबंधों के तार जोड़-जोड़ जो करता है आया संवाद अपना।।

*27 नक्षत्रों में चन्द्रमा का संचरण होता है। वैसे मुहूर्त शास्त्र  में "अभिजीत " नाम का 28 वां  नक्षत्र मान्य है। 

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