भलमनसाहत का बेवज़ह मखौल उड़ाते क्यों हो
पीठ न थपथपाओ,मगर सरेआम चिढ़ाते क्यों हो।
बहुत दूर तलक चलोगे तब मिलेगी मंजिल तुम्हें
दो कदम में फकत ए दोस्त हौसला हारते क्यों हो।
वो महबूब हो,दुश्मन हो या कोई भी हो तुम्हारा
आपसी रिश्तों को भला बेवजह उलझाते क्यों हो।
नफरत ही जो भरे दिलों में,प्यार न जानता हो
भला "उस्ताद" तुम उसे अपना बनाते क्यों हो।
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