साईं कृपा याचना यही मेरी आराधना
हर छन,हर साँस बस यही एक कामना।
दरअसल तो इसमें बस स्वार्थ की है साधना
कल्पवृक्ष छोड़ भला अन्य को क्यों चाहना।
उसका रूप आगार बड़ा अदभुत है जानना
सो कृपा मन्दाकिनी,गोता लगाना हूँ चाहता।
यद्यपि दुर्बल बड़ा,मन मलिन खुद को हूँ मानता
उतारे पार मुझको राम मेरा,ये भी हूँ जानता।
प्रीत भरी रीत की जो,भक्त रखता पराकाष्ठा
सूर,तुलसी के सदृश उर जमे हूँ यही चाहता।
साईं राम की माला जपने से ही उधर हो सकता है.
ReplyDeleteसाईं राम की माला जपने से ही उधर हो सकता है.
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