जानता हूँ भगवन
हर बार पसोपेश में
डाल देता हूँ मैं तुम्हें।
कभी धूप तो कभी
छाया के लिए अक्सर
बेवजह तंग करता हूँ।
जबकि तुम्हारी कृपा से
जानता हूँ कि न दुःख
न ही सुख रुकेगा मेरे लिए।
वो तो सदा बहेगा
हवा के झोंको की तरह।
कभी सर्द कभी गर्म
ये मौसम का मिजाज जो है।
और फिर ये भी की
कठिन दौर चले कितना ही
मुश्किल हो बड़ी साँस भरनी।
पर हर हाल में जीत
पक्की होगी मेरी ही।
क्योंकि जन्म से पहले ही
लिख के दी है मुझे
तुमने अपनी आश्वस्ति पक्की।
हर बार पसोपेश में
डाल देता हूँ मैं तुम्हें।
कभी धूप तो कभी
छाया के लिए अक्सर
बेवजह तंग करता हूँ।
जबकि तुम्हारी कृपा से
जानता हूँ कि न दुःख
न ही सुख रुकेगा मेरे लिए।
वो तो सदा बहेगा
हवा के झोंको की तरह।
कभी सर्द कभी गर्म
ये मौसम का मिजाज जो है।
और फिर ये भी की
कठिन दौर चले कितना ही
मुश्किल हो बड़ी साँस भरनी।
पर हर हाल में जीत
पक्की होगी मेरी ही।
क्योंकि जन्म से पहले ही
लिख के दी है मुझे
तुमने अपनी आश्वस्ति पक्की।
प्रभु की माया कहीं धूप कहीं छाया है. जब ईश्वर की शरण में आ गए है तो फिर क्या डरना !
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