Friday 19 September 2014

224 -संत सरल चित

संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु। बाल विनय सुनि करि कृपा राम चरण रति देहु। १/ ३ ख




हे सद्गुरु मेरे  साईंनाथ  सरकार
आप  सदा हैं निर्मल,सहृदय,उदार।

मैं तो बालक मूढ़मति अन्जान
कर दो कृपा अब हे दयानिधान।

वर्ना मैं तो रोते-रोते रह जाऊंगा
राम तुम्हारी प्रीत कहाँ पाऊँगा।

ये जीवन भी मेरा व्यर्थ चला जायेगा 
तेरे होते क्या उद्धार नहीं हो पायेगा।   

No comments:

Post a Comment