संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु। बाल विनय सुनि करि कृपा राम चरण रति देहु। १/ ३ ख
हे सद्गुरु मेरे साईंनाथ सरकार
आप सदा हैं निर्मल,सहृदय,उदार।
मैं तो बालक मूढ़मति अन्जान
कर दो कृपा अब हे दयानिधान।
वर्ना मैं तो रोते-रोते रह जाऊंगा
राम तुम्हारी प्रीत कहाँ पाऊँगा।
ये जीवन भी मेरा व्यर्थ चला जायेगा
तेरे होते क्या उद्धार नहीं हो पायेगा।
हे सद्गुरु मेरे साईंनाथ सरकार
आप सदा हैं निर्मल,सहृदय,उदार।
मैं तो बालक मूढ़मति अन्जान
कर दो कृपा अब हे दयानिधान।
वर्ना मैं तो रोते-रोते रह जाऊंगा
राम तुम्हारी प्रीत कहाँ पाऊँगा।
ये जीवन भी मेरा व्यर्थ चला जायेगा
तेरे होते क्या उद्धार नहीं हो पायेगा।
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