Monday 14 November 2022

481:ग़ज़ल =बचपन की बात

जाने क्यों भला इस जमाने ने मुझे बुड्ढा कहा।
दामन जो झांका खुद के तो एक बच्चा मिला।। 

शोख,मासूम अपनी ही दुनिया में अलमस्त रोता,हंसता। मुझे तो बच्चों का किरदार अलहदा एक नियामत लगा।।

ख्वाबों में रंग इंद्रधनुषी भरने का जब तलक जज्बा रहा। हर उस सुख़नफ़हम* शख्स में सभी को बच्चा ही दिखा।।*ज्ञानी

चांद को पकड़ने की जिद पर मचलता जिसका बचपन। अल्हड़ मिजाज वो मिट्टी में मौज से लोटता-पोटता रहा।।

उम्र महज एक सोच है चाहो तो गुणा-भाग करते रहो।
चंगुल से इसके यूॅ तो बस एक "उस्ताद" ही निकला।।

नलिनताकेश@उस्ताद

Sunday 13 November 2022

480:ग़ज़ल =तेरी जुल्फें मुझसे

तेरी काली घनी जुल्फें मुझसे सुलझती नहीं ए जिंदगी। 
जितनी करता हूँ कोशिश और-और हैं जाती उलझती।।

चुल्लू से अपने छोटे पी लूं समंदर को भला कैसे बता। 
प्यास ऐसी लगी कमबख्त बुझने का नाम लेती नहीं।।

दो कदम चलने पर ही हांफने लगता हूँ अब तो मैं।
तू है कि हर कदम बढ़ाने में लगा है मंजिल से दूरी।।

सलीका प्यार में तुझे इम्तहान लेने का नहीं आता।
हर घड़ी तुझे तो सूझती है अजब-गजब मसखरी।।

क्या करें "उस्ताद" जिद पर हम भी अड़े हैं कुछ भी हो।
यकीं तो है पूरा तू भर देगा कभी न कभी अपनी झोली।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday 12 November 2022

ग़ज़ल:479= बंजर जमीन पर

ग़ज़ल:479

झूठ एक बार गैरों से फिर भी यारब चल जायेगा। 
हर लफ्ज़ मगर खुद से झूठ का हिसाब मांगेगा।।

कोई नहीं बनाता यहाँ पर मुस्तकबिल किसी का।
तराशोगे खुद को तो नूर तेरा भी निखर आयेगा।।

जरा दिल लगाकर चप्पू तूफ़ां में तुम चलाते रहो।
ये बुलंदियों का आकाश कदमों में सजदा करेगा।।

कोई भी नहीं है यूँ तो हकीकत यहाँ अपना कहो तो।
जो देखो सभी मैं उसी को वो ही अपना कहलायेगा।।

ख्वाबों की फसल लहलहाती है तब जा कर हथेली में यारा।
बंजर जमीं हल चलाने का हौंसला "उस्ताद" जो दिखलायेगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday 11 November 2022

ग़ज़ल 478:लबे जाम का हाथ से फिसल जाना

ग़ज़ल:478
लबे जाम का यूँ हाथ से फिसल जाना।
मुश्किल है बड़ा यार तुझे भूला पाना।।

जो भी कोई बीमार तेरी वजह से शहर में।
हर शख्स वो तो चारागर* खुद को बताता।।*डाक्टर 

जिगर चाहिए बड़ा तभी मुमकिन होगा।
रकीबों के ईमान को सर-माथे लगाना।।

किस-किस का अन्दाजे बयां हम लिखें कहो।
ता-उम्र से रहा है हरेक तेरे हुस्न का परवाना।।

शोहरत,दौलत की है किसे परवाह "उस्ताद" जी।   
जब दस्ते-पाक से मिल रहा हो नायाब खजाना।। 
           
नलिनतारकेश @उस्ताद      

Thursday 10 November 2022

ग़ज़ल:477=इल्जाम मढ़ें किसपे

ऐशोआराम को बाहों में भर लिया जबसे हमने।
चुम्बनों से कसम से लहूलुहान कर दिया उसने।।

कहते तो क्या कहते लब सिल गए थे हमारे।
बड़े अदब से जब इकराम किया था सबने।।

ठोक-बजाकर चाहे जितना परख लो किसी शय को।
मौज लेने पर ही आए अगर खुदा तो कोई  क्या करे।।

निमुजी* ही जो होने लगे दुनियावी मसाइल**से हमें।*उच्चाटन  ** दिक्कतों से
रो,हंस,खीझ कर कब तलक यहाँ दिल बहलाइये।।

मुरझाए गुलाब की पंखुड़ियां भी सहेज रखी हैं। 
तेरे प्यार की बात जमाने को दिखाने के लिये।।

तेरे शहर की हर गली "उस्ताद" पहचानने लगी है। 
जो तू ही कन्नी काटे,बता फिर इल्जाम मढ़ें किसपे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday 9 November 2022

ग़ज़ल 476: फकत चलते जाना है

सच-सच कहूं उसने ये हर बार चाहा है।
मगर जब भी कहो वो तो रूठ जाता है।।

फसक* मारने का शौक उसका पुराना है।*गप्प 
हकीकत से तभी दूर उसका आशियाना है।।

चाय के तलबगार को क्या लेना मयखानों से।
हर घूंट में दिखे जब उसकी झूमता जमाना है।।

पूनम के चांद से इश्क तुम बड़े एहतियातन करना।
नाज़ो अंदाज से देना उसे झटके बखूबी आता है।।

वक्त का क्या है वो तो हर घड़ी करवट बदलेगा ही। आफताब*,चांद-सितारे तो महज उसका इशारा है।।*सूर्य 

'उस्ताद" तुम भी कहां चकल्लस में लगे हो कहो तो। 
हवा के झोंकों से उलट तुम्हें तो फकत चलते जाना है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday 4 November 2022

475: ग़ज़ल:-चिंगारी को एक अदद

देवोत्थानी एकादशी की सबको बहुत बधाई 
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चिंगारी को एक अदद झौंके की तलाश जारी है।
लौ लगनी तेरे दीदार की अभी भी यार बाकी है।।

रूह तो सिसकियां भर के जार-जार रो रही है।
मांग भर सकूंगा कभी इसकी ये उम्मीद पूरी है।।

जन्मों से कस्तूरी की दौड़ में बस भटकता ही रहा हूँ।
शुक्र है पता तो चला वो कहीं अपने भीतर ही रही है।।

ख्वाहिशों के जंगल में ख्वाब कब तलक बटोरें कहो तो। हकीकत में जन्नत की राह इतनी आसान होती नहीं है।।

बस एक बार दामन तेरा मिल जाए सर छुपाने को।
ये दिले अरदास अभी कसम से "उस्ताद" अधूरी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday 2 November 2022

ग़ज़ल:474=गम ये अपना बिसार लूँगा

सोचा था तेरी जुल्फों की छांव में,उम्र गुजार लूँगा। 
इस तरह रूठी हुई तकदीर को,अपनी संवार लूँगा।।

सोचने से मगर,होता है कहाँ कुछ भी यहाँ यारब।
चलो देर ही सही,चढ़ी हुई खुमारी भी उतार लूँगा।।

रास्ते हो जाएं जुदा?जब एक मोड़ पर पहुंचकर।
चाहते न चाहते,बेमन तेरी,जुदाई स्वीकार लूँगा।।

तूफान आता तो है,जिंदगी में हरेक की एक बार।
चलो तिनके-तिनके घौंसले के,मैं भी बुहार लूँगा।।

हर फैसला,फैसला है गलत सही कुछ भी,मान के चलो।
"उस्ताद" बमुश्किल ही सही,गम ये अपना बिसार लूँगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

ग़ज़ल :473 आओ तो सही

फुर्सत निकालकर थोड़ी कभी आओ तो सही।
पहलू में हमारे आकर बेवजह ही बैठो तो सही।।

वक्त का क्या,वो तो बहता ही चला जायेगा यूँ ही।
निगाहों के जरा दो अपने जाम टकराओ तो सही।।

वो देखो दूर कहीं उम्मीद ए रोशनी टिमटिमा रही है।
बुझ न जाए वो कहीं आकर उसे जलाओ तो सही।।

हालात के थपेड़ों से डरते रहोगे तो भला कैसे चलेगा। 
मंझधार में दिल लगा पुरजोर चप्पू चलाओ तो सही।।

रंगे मस्ती बसती तो है दिल में हर किसी के "उस्ताद"।
नजरों में काजल,शादाब ए उल्फ़त का लगाओ तो सही।।

शादाब:हरा-भरा/प्रफुल्लित 

नलिनतारकेश @उस्ताद