Friday, 11 November 2022

ग़ज़ल 478:लबे जाम का हाथ से फिसल जाना

ग़ज़ल:478
लबे जाम का यूँ हाथ से फिसल जाना।
मुश्किल है बड़ा यार तुझे भूला पाना।।

जो भी कोई बीमार तेरी वजह से शहर में।
हर शख्स वो तो चारागर* खुद को बताता।।*डाक्टर 

जिगर चाहिए बड़ा तभी मुमकिन होगा।
रकीबों के ईमान को सर-माथे लगाना।।

किस-किस का अन्दाजे बयां हम लिखें कहो।
ता-उम्र से रहा है हरेक तेरे हुस्न का परवाना।।

शोहरत,दौलत की है किसे परवाह "उस्ताद" जी।   
जब दस्ते-पाक से मिल रहा हो नायाब खजाना।। 
           
नलिनतारकेश @उस्ताद      

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