Monday, 14 November 2022

481:ग़ज़ल =बचपन की बात

जाने क्यों भला इस जमाने ने मुझे बुड्ढा कहा।
दामन जो झांका खुद के तो एक बच्चा मिला।। 

शोख,मासूम अपनी ही दुनिया में अलमस्त रोता,हंसता। मुझे तो बच्चों का किरदार अलहदा एक नियामत लगा।।

ख्वाबों में रंग इंद्रधनुषी भरने का जब तलक जज्बा रहा। हर उस सुख़नफ़हम* शख्स में सभी को बच्चा ही दिखा।।*ज्ञानी

चांद को पकड़ने की जिद पर मचलता जिसका बचपन। अल्हड़ मिजाज वो मिट्टी में मौज से लोटता-पोटता रहा।।

उम्र महज एक सोच है चाहो तो गुणा-भाग करते रहो।
चंगुल से इसके यूॅ तो बस एक "उस्ताद" ही निकला।।

नलिनताकेश@उस्ताद

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