Saturday 12 November 2022

ग़ज़ल:479= बंजर जमीन पर

ग़ज़ल:479

झूठ एक बार गैरों से फिर भी यारब चल जायेगा। 
हर लफ्ज़ मगर खुद से झूठ का हिसाब मांगेगा।।

कोई नहीं बनाता यहाँ पर मुस्तकबिल किसी का।
तराशोगे खुद को तो नूर तेरा भी निखर आयेगा।।

जरा दिल लगाकर चप्पू तूफ़ां में तुम चलाते रहो।
ये बुलंदियों का आकाश कदमों में सजदा करेगा।।

कोई भी नहीं है यूँ तो हकीकत यहाँ अपना कहो तो।
जो देखो सभी मैं उसी को वो ही अपना कहलायेगा।।

ख्वाबों की फसल लहलहाती है तब जा कर हथेली में यारा।
बंजर जमीं हल चलाने का हौंसला "उस्ताद" जो दिखलायेगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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