Wednesday, 9 November 2022

ग़ज़ल 476: फकत चलते जाना है

सच-सच कहूं उसने ये हर बार चाहा है।
मगर जब भी कहो वो तो रूठ जाता है।।

फसक* मारने का शौक उसका पुराना है।*गप्प 
हकीकत से तभी दूर उसका आशियाना है।।

चाय के तलबगार को क्या लेना मयखानों से।
हर घूंट में दिखे जब उसकी झूमता जमाना है।।

पूनम के चांद से इश्क तुम बड़े एहतियातन करना।
नाज़ो अंदाज से देना उसे झटके बखूबी आता है।।

वक्त का क्या है वो तो हर घड़ी करवट बदलेगा ही। आफताब*,चांद-सितारे तो महज उसका इशारा है।।*सूर्य 

'उस्ताद" तुम भी कहां चकल्लस में लगे हो कहो तो। 
हवा के झोंकों से उलट तुम्हें तो फकत चलते जाना है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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