Wednesday, 2 November 2022

ग़ज़ल :473 आओ तो सही

फुर्सत निकालकर थोड़ी कभी आओ तो सही।
पहलू में हमारे आकर बेवजह ही बैठो तो सही।।

वक्त का क्या,वो तो बहता ही चला जायेगा यूँ ही।
निगाहों के जरा दो अपने जाम टकराओ तो सही।।

वो देखो दूर कहीं उम्मीद ए रोशनी टिमटिमा रही है।
बुझ न जाए वो कहीं आकर उसे जलाओ तो सही।।

हालात के थपेड़ों से डरते रहोगे तो भला कैसे चलेगा। 
मंझधार में दिल लगा पुरजोर चप्पू चलाओ तो सही।।

रंगे मस्ती बसती तो है दिल में हर किसी के "उस्ताद"।
नजरों में काजल,शादाब ए उल्फ़त का लगाओ तो सही।।

शादाब:हरा-भरा/प्रफुल्लित 

नलिनतारकेश @उस्ताद

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